
Ban on The Open Sale of Meat and Eggs in Madhya Pradesh : मध्य प्रदेश में जहां ओर जिला प्रशासन मुख्यमंत्री डॉक्टर मोहन यादव (Dr Mohan Yadav Chief Minister of Madhya Pradesh) की पहली कैबिनेट (First Cabinet Meeting Order) के आदेशों को पालन करने में पूरी तरह से जुट गया है वहीं दूसरी एक बड़ी ही चौंकाने वाली खबर सामने आयी है. खुले में मांस विक्रय को तो सरकार रोकने तो जमकर लगी हुई लेकिन खराब मांस के नियंत्रण को लेकर मध्यप्रदेश में बिकने वाले मांसाहार की गुणवत्ता की जांच के लिए एक भी सरकारी प्रयोगशाला नहीं है. इतना ही नहीं इस मामले में इंदौर हाईकोर्ट ने 'मीट शॉप मानक प्रबंधन' में होने वाली अनिमियतता को लेकर दायर एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए वर्ष 2019 में आदेश दिया था. जिसके बाद सरकार द्वारा एक शपथ पत्र पेश किया गया था लेकिन अब तक अपने ही शपथ पत्र पर अमल नहीं हो पाया है.
खाद्य सुरक्षा के प्रति लचर है शासन का रवैया
इंदौर हाईकोर्ट (Indore High Court) ने राज्य सरकार (Madhya Pradesh Government) को मीट शॉप (Meat Shop) से निकलने वाले अपशिष्ट का उचित प्रबंधन करने और दुकानों व अन्य प्रतिष्ठानों से बिकने वाले मांस की गुणवत्ता की जांच के लिए एक सक्षम लैब भी स्थापित करने के आदेश दिए थे.
निजी लैब के भरोसे है सरकार
उधर शासन के जिम्मेदार खाद्य अधिकारी मांस की जांच की आवश्यकता पड़ने पर निजी लैब से जांच करवाने का तर्क दे रहे हैं. इसके साथ ही इंदौर में निर्माणाधीन प्रयोगशाला के जल्द शुरू होने की बात भी कही जा रही है. जबकि एक्टिविस्ट का कहना है कि जिस तरह शाकाहारी खाद्य सामग्री की समय-समय पर सरकार मुहिम चलाकर गुणवत्ता सुनिश्चित करती है. उसी तरह मांसाहार सामग्री की भी खाद्य सुरक्षा के मद्देनजर मुहिम चलाकर जांच की जानी चाहिए. प्रशासन की इस तरह की कोताही से करोड़ों नागरिकों की सेहत से खिलवाड़ होने की संभावना बनी रहती है.
कोर्ट में क्या मांग की गई थी?
इंदौर हाई कोर्ट में लगाई गई इस याचिका में मांग की गई थी कि जो आवारा कुत्ते हैं, वह यहां-वहां फेका गया कहीं का भी मांस खा लेते हैं, जिससे उनके व्यवहार में परिवर्तन आ जाता है और वह हिंसक हो जाते हैं या उनकी जान पर बन आती है. इसीलिए खराब मांस कहीं पर भी ना फेंका जाए साथ ही मांस से बनने वाले खाद्य पदार्थों की शुद्धता की जांच के लिए सरकारी प्रयोगशाला स्थापित की जाए.
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