
MP Flood News: शिवपुरी से लेकर श्योपुर, भिंड से लेकर गुना और ग्वालियर तक हर ओर एक जैसी कहानी है. पानी ने खेत बर्बाद कर दिए, छतें ढहा दीं और किसानों की उम्मीदें बहा दीं. हजारों गांवों में पानी भर गया है, लाखों हेक्टेयर में खड़ी फसलें खत्म हो चुकी हैं. जहां पहले फसलें लहलहाती थी, वहां अब नावें चल रही हैं.
खेतों में फसलें उम्मीद लेकर उगने लगी थीं, लेकिन तभी बारिश ने कहर बरपा दिया. यह बारिश वरदान नहीं, बर्बादी बनकर आई. किसान का पूरा साल का बजट, मेहनत और उम्मीद सब पानी में बह गया.
शिवपुरी में खेती बर्बादी के कगार पर
शिवपुरी में खरीफ की बुआई 4.40 लाख हेक्टेयर में होनी थी, लेकिन सिर्फ 1.38 लाख हेक्टेयर में ही हो पाई. उसमें भी 65 प्रतिशत फसल बारिश से बर्बाद हो गई. किसान रामप्रसाद कुशवाह और भोलाराम रघुवंशी बताते हैं कि इस बार तो लागत भी वापस नहीं आई, और खेतों में दोबारा बुआई की हालत भी नहीं बची है.
कोलारस-बदरवास: न फसल बची, न ज़मीन
यहां 15,000 हेक्टेयर खेतों की फसल बर्बाद हो चुकी है. किसान प्रभुदयाल जाटव ने बताया कि धान की पौध खुद तैयार की थी, लेकिन सब गल गया. उधारी में बीज-खाद लिया था, अब चुकाने का रास्ता नहीं बचा.
श्योपुर में दोगुनी बारिश, दोगुनी बर्बादी
श्योपुर में इस साल दोगुनी बारिश हुई, लेकिन फायदे की जगह नुकसान ही मिला. किसान मनीराम मीणा और कन्हैयालाल आदिवासी ने बताया कि मिट्टी भी बह गई, खेत की उर्वरता ही खत्म हो गई. अब तो खेत बोने लायक भी नहीं रहे.
अब किसान खेती छोड़ने की सोच रहे हैं
हालात इतने खराब हो गए हैं कि कई किसान जैसे रघुनाथ पाल और दौलतराम गुर्जर अब गांव छोड़कर हरियाणा या दिल्ली जाकर मजदूरी करने की बात कर रहे हैं. खेतों में सिर्फ पानी, रेत और बर्बादी है. उन्हें इस बात की चिंता सता रही है कि अब बच्चों की पढ़ाई और परिवार की ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी, यह सबसे बड़ा सवाल है.
छतरपुर में मिट्टी भी बह गई, खेत अब बोने लायक नहीं
लगातार बारिश से खेतों की समतल ज़मीन भी खराब हो गई है. किसान रमाकांत पटेल और बलवंत अहिरवार कहते हैं कि अब अगर दोबारा बुआई करनी पड़ी, तो खर्च उठाना मुश्किल होगा. खेती अब घाटे का सौदा बन चुकी है.
गुना में मक्का और सोयाबीन गल चुकी है
यहां मक्का और सोयाबीन की अच्छी बुआई हुई थी, लेकिन बारिश ने सब खत्म कर दिया. किसान भगवतीप्रसाद और भूपेंद्र सिंह का कहना है कि खेतों में नाव चल रही है, सर्वे कब होगा और मुआवज़ा कब मिलेगा – किसी को कुछ नहीं पता.
ग्वालियर-चंबल संभाग में दो सौ से ज़्यादा गांव डूबे
चंबल संभाग में डबरा, करेरा, भिंड, दतिया जैसे इलाकों में दो सौ से अधिक गांव ऐसे हैं, जहां न खेत बचे हैं, न छत. तिलहन और दलहन की फसलें कई जगह पूरी तरह नष्ट हो चुकी हैं. सौ फ़ीसदी तक का नुकसान हो चुका है और जिन किसानों पर पहले से ही कर्ज़ था, वे अब अपने खेत की तरफ देखने से भी डरते हैं. ग्वालियर जिले के हबीपुरा गांव को बांधों से छोड़े गए पानी ने गांव को चारों तरफ से घेर लिया है. डेढ़ सौ लोगों को रेस्क्यू किया जा चुका है, लेकिन सौ से ज़्यादा लोग अब भी फंसे हुए हैं. मकानों में ऊपर तक पानी भर चुका है. छतें शरणस्थली बन चुकी हैं. हर घर की आवाज़ एक ही है --- हम जिंदा तो हैं, लेकिन सुरक्षित नहीं. वहीं, इसके पीछे हबीबपुरा गांव है, जिसके चारों तरफ पानी भरा हुआ है, इसमें लगातार एसडीआरपीफ लोगों को रेस्कयू करने की कोशिश कर रहे हैं. यहां तिलहन और दलहन की पूरी फसल बर्बाद हो चुकी है. किसान संतोष धाकड़ और मुकेश कुशवाह घरों में पानी भरने से छतों पर रहने को मजबूर हैं. राशन-पानी की भारी कमी है, बच्चे भूखे हैं.
भिंड में नदियों ने कहर ढाया, लोग हुए बेघर
चंबल, सिंध और क्वारी नदियों के उफान से किसान रामदयाल सिंह और नरेश तोमर जैसे लोगों के घर और खेत दोनों बह गए हैं. अब ये लोग मंदिरों, स्कूलों और सार्वजनिक भवनों में शरण ले रहे हैं. हर साल बाढ़ आती है, लेकिन स्थायी समाधान नहीं मिलता.
अब सिर्फ फसल नहीं, पूरी ज़िन्दगी बर्बादी की कगार पर
किसान की परेशानी सिर्फ फसल की नहीं है. बच्चों की पढ़ाई, दवा, शादी — सब कुछ इसी खेत से चलता है. अब खेत डूब चुका है, और साथ ही डूब गई है, उसकी ज़िन्दगी की बुनियाद.
सरकार ने मुआवज़े की बात कही, लेकिन देरी चिंता की वजह
प्रदेश के कृषि मंत्री राहुल लोधी का कहना है कि नुकसान के आंकलन के लिए सर्वे टीमें भेजी गई हैं, और किसानों को जल्द ही राहत मिलेगी. लेकिन ज़मीनी हकीकत यह है कि सर्वे के इंतज़ार में किसान बर्बादी झेल रहा है. कहीं कोई मदद नहीं पहुंची है.
विपक्ष का अल्टीमेटम: जल्द मुआवज़ा दो वरना आंदोलन
कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष जीतू पटवारी ने चेतावनी दी है कि अगर सरकार ने एक हफ्ते के भीतर मुआवज़े की प्रक्रिया शुरू नहीं की, तो कांग्रेस पूरे प्रदेश में चक्का जाम करेगी. उनका कहना है कि कई किसानों को 15-20 लाख रुपये तक का नुकसान हुआ है और सरकार की चुप्पी दुर्भाग्यपूर्ण है.
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यह सिर्फ एक गांव, एक खेत या एक किसान की कहानी नहीं है. ये उस मध्य प्रदेश की सच्चाई है जहाँ बारिश अब सिर्फ राहत नहीं, तबाही का दूसरा नाम बन चुकी है. अब किसान सिर्फ धूप नहीं, मदद की किरण खोज रहा है. मिट्टी, मेहनत और मौसम जब एक साथ धोखा दें , तो उसके पास सिर्फ उम्मीद ही बचती है. अब सवाल यह नहीं कि फसल कब उगेगी, सवाल यह है कि किसान और कितना सह पाएगा.
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