Makar Sankranti 2025 : मध्य प्रदेश की बेतवा नदी को लोग मां मानते हैं, तो कुछ इसे भगवान राम की नदी कहते हैं. मकर संक्रांति के खास दिन, 14 जनवरी को इस नदी पर आस्था का ऐसा दृश्य देखने को मिलता है जो हर किसी का दिल छू ले. इस दिन कोई किसी को बुलाता नहीं, न निमंत्रण दिए जाते हैं. अमीर-गरीब, साधु-संत, और आम लोग, सब बिना किसी बुलावे के यहां पहुंचते हैं. बेतवा की लहरों में एक खास आकर्षण है, जो हर किसी को अपनी ओर खींच लाती है. ठंड और ठिठुरन के बावजूद, हर कोई यहां एक डुबकी लगाने की ख्वाहिश लिए आता है. ये एक ऐसी ख्वाहिश है, जो जीवन की हर चाहत से बड़ी मानी जाती है. बेतवा नदी के पानी को अमृत समान माना जाता है. ऐसी मान्यता है कि हजारों साल पहले भगवान राम वनवास के दौरान इस नदी के तट पर ठहरे थे. कहा जाता है कि उनके चरणों के निशान आज भी इस नदी के किनारे मौजूद हैं. यही वजह है कि ये नदी लाखों लोगों की आस्था का केंद्र बनी हुई है.
क्या है इस नदी में स्नान की मान्यता ?
मकर संक्रांति पर बेतवा के तट पर लाखों श्रद्धालु पहुंचते हैं. ये परंपरा सदियों से चली आ रही है. लोग दूर-दराज के गांवों और शहरों से यहां आते हैं. ठंड से कांपते शरीर और बेतवा का ठंडा पानी भी इनकी आस्था को डिगा नहीं पाता. इनकी मान्यता है कि बेतवा नदी में डुबकी लगाने से सारे पाप धुल जाते हैं और आत्मा शुद्ध हो जाती है.
नदी से जुड़ी हैं लोगों की आस्था
इस खास दिन, बेतवा नदी किसी को चिट्ठी या दावत नहीं भेजती. न कोई बुलावा होता है, न कोई आयोजन. फिर भी लोग यहां खींचे चले आते हैं. ऐसा लगता है, जैसे इस नदी की लहरें और यहां की फिजाएं उन्हें बुला रही हों. शहर से लेकर गांव तक हर जगह से लोग यहां जुटते हैं.
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गंदगी के बावजूद अटूट आस्था
बेतवा नदी के तट पर कई प्राचीन मंदिर हैं. यहां पुजारी पूजा-पाठ कराते हैं. श्रद्धालु अपने मन की शांति और सुख-समृद्धि के लिए पूजा करते हैं. स्नान और पूजा के बाद लोग संतोष के साथ अपने घर लौटते हैं. हालांकि आज बेतवा नदी का पानी गंदा हो चुका है. पानी में काला रंग और बदबू है. फिर भी श्रद्धालुओं की आस्था में कोई कमी नहीं आई है. उनका विश्वास है कि इस पानी में एक डुबकी भी उन्हें पवित्र कर देती है. ये परंपरा कभी खत्म नहीं होगी. बेतवा हर साल ऐसे ही लाखों लोगों को अपनी ओर बुलाती रहेगी.