Javed Akhtar Father: इश्तियाक मंजिल (Ishtiyaque Manzil) यह वही ठिकाना है, जहां देश के जाने-माने गीतकार पद्मभूषण पुरस्कार विजेता के साथ पूर्व राज्यसभा सदस्य जावेद अख्तर (Javed Akhtar) का जन्म हुआ था. इश्तियाक मंजिल नाम की इस हवेली से उनकी बहुत सी यादें जुड़ी है. उनके पिता जां निसार अख्तर के साथ ही उनके मरहूम दादा मुश्तर खैराबादी (Mushtar Khairabadi) की यादें भी जुड़ी हैं, लेकिन इस भवन के साथ ही उनकी यादें भी जमींदोज हो रही है.
स्थानीय लोग बताते हैं कि सिंधिया स्टेट में मजिस्ट्रेट रहे जावेद अख्तर के मरहूम दादा मुश्तर खैराबादी इस हवेली में अपने बेटे जां निसार अख्तर और परिवार के साथ रहा करते थे, क्योंकि शिवपुरी भी सिंधिया स्टेट का ही एक इलाका माना जाता है. यह सिंधिया स्टेट की ग्रीष्मकालीन राजधानी भी हुआ करती थी. इसलिए जावेद अख्तर के दादा ने अपनी ड्यूटी के वक्त इस हवेली को बनवाया था. वह अपने परिवार के साथ यही रहा करते थे. दरअसल, बीते दिनों शिवपुरी में हुई रिमझिम बारिश के चलते यह इश्तियाक मंजिल हवेली धराशाई हो गई, जिस वजह से आसपास के रहने वाले लोगों को खतरा पैदा हो गया था. इसके बाद अब प्रशासन की ओर से इसे जमींदोज किया जा रहा है.
1942 में बनी हवेली और 1945 में जन्मे जावेद अख्तर
जहां पर जावेद अख्तर के दादा का इश्तियाक मंजिल स्थित है. वह पुरानी शिवपुरी इलाका है. इस मोहल्ले का नाम है कमली कर मोहल्ला. यहां आस-पास रहने वाले लोग दावा करते हैं कि खुद जावेद अख्तर ने इस बात को स्वीकार किया है कि उनका जन्म यही पर हुआ था और यह लोग यह भी दावा करते हुए कहते हैं कि इसी मकान में उनके दादा अपने परिवार के साथ रहा करते थे. उसी दौरान जावेद अख्तर का इसी हवेली में जन्म हुआ था.
सिंधिया रियासत में मजिस्ट्रेट थे जावे अख्तर के दादा
जावेद अख्तर दुनिया भर में किसी पहचान के मोहताज नहीं है. वे न केवल भारतीय संसद के राज्यसभा संसद सदस्य रह चुके हैं, बल्कि पद्म भूषण से उन्हें नवाज कर उनकी काबिलियत का डंका खुद भारत सरकार ने बजाया है. वह देश के लिए गौरव और एक जाने-माने गीतकार के रूप में अपनी अच्छी खासी पहचान रखते हैं. उनके दादा मरहूम मुश्तर खैराबादी सिंधिया रियासत में मजिस्ट्रेट के रूप में पदस्थ थे . उस वक्त शिवपुरी सिंधिया रियासत का एक हिस्सा था और ग्रीष्मकालीन राजधानी भी थी. ऐसे में उनका यह मकान जिसे लोग इश्तियाक मंजिल के नाम से जानते हैं, वह अब अपना अस्तित्व खोने जा रहा है.
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इसलिए गिराई जा रही है इश्तियाक मंजिल
1942 में बनी यह मशहूर हवेली इलाके में अपना अच्छा खासा रुतबा रखती है. लोग इसे इश्तियाक मंजिल कहते हैं, लेकिन बारिश और देखरेख के अभाव में यह हवेली पूरी तरह से खंडर हाल हो गई. यही वजह है कि बीते दिनों लगातार रिमझिम बारिश में इसकी दीवारें फूल गई और बुधवार-गुरुवार की दरमियानी रात सुबह 3:00 बजे जोरदार धमाके के साथ इसकी 40 बाई 40 फुट की एक लंबी चौड़ी दीवार जमींदोज हो गई. इससे आसपास रहने वाले लोगों के लिए खतरा पैदा हो गया था. यही वजह है कि एहतियातन प्रशासन ने इश्तियाक मंजिल नाम की इस हवेली को गिराना शुरू कर दिया है.
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