
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव (Madhya Pradesh Assembly Election) में 70 साल से अधिक उम्र के 14 उम्मीदवारों को मैदान में उतारने का बीजेपी (BJP) का फैसला फायदेमंद साबित हुआ. क्योंकि इन 14 उम्मीदवारों में से 11 ने जीत हासिल की. जबकि इनमें सबसे अधिक आयु का व्यक्ति 80 साल का है. हालांकि, साल 2019 के लोकसभा चुनाव के समय अमित शाह ने कहा था कि, पार्टी ने 75 की उम्र वाले लोगों को टिकट नहीं देने का फैसला किया है.
भाजपा ने 230 सदस्यीय विधानसभा में 163 सीटें जीतकर राज्य में सत्ता बरकरार रखी और कांग्रेस को 66 सीटों के साथ दूसरे स्थान पर धकेल दिया, जो कि 2018 के चुनाव में कांग्रेस को मिली 114 सीटों से कम है.
सतना और रीवा में बुजुर्ग प्रत्याशी की जीत
राज्य के पूर्व मंत्री नागेंद्र सिंह नागौद (80) ने सतना जिले के नागौद से जीत हासिल की, जबकि नागेंद्र सिंह (79) रीवा जिले के गुढ़ से विजयी हुए. एक राजनीतिक पर्यवेक्षक और मध्य प्रदेश में पंडित दीनदयाल विचार प्रकाशन द्वारा निकाली जाने वाली मासिक पत्रिका 'चरैवती' के पूर्व संपादक जयराम शुक्ला ने कहा, ‘‘पिछली विधानसभा के सदस्य नागोद और सिंह, दोनों ने लगभग पांच महीने पहले चुनाव लड़ने की अनिच्छा व्यक्त की थी.
70 साल से ज्यादा उम्र वाले उम्मीदवारों की स्थिति
दमोह से जयंत मलैया (76), अशोक नगर जिले के चंदेरी से जगन्नाथ सिंह रघुवंशी (75), नर्मदापुरम के होशंगाबाद से सीताशरण शर्मा (73), और अनुपपुर सीट से बिसाहूलाल सिंह (73) भी चुनाव जीत गए.
2023 के चुनावों में विधानसभा में पहुंचने वाले भाजपा के अन्य उम्र दराज नेताओं में राजगढ़ जिले के खिलचीपुर से हजारीलाल दांगी (72), नर्मदापुरम के सिवनी-मालवा से प्रेमशंकर वर्मा (72), शहडोल जिले के जैतपुर से जयसिंह मरावी (71) , सागर जिले के रहली से गोपाल भार्गव (71) और जबलपुर पाटन से अजय विश्नोई (71) भी शामिल हैं.
हालांकि, श्योपुर सीट से दुर्गालाल विजय (71), बालाघाट से गौरीशंकर बिसेन (71) और ग्वालियर पूर्व से माया सिंह (73) चुनाव हार गये.
बीजेपी के पुराने फैसले
2016 में, सरताज सिंह (तब 76 वर्ष) को कथित तौर पर उम्र बढ़ने के कारण शिवराज सिंह चौहान मंत्रिमंडल से बाहर कर दिया गया था. जब वह 78 वर्ष के थे, तब उन्हें 2018 के विधानसभा चुनाव में टिकट देने से इनकार कर दिया गया था. सिंह ने भाजपा छोड़ दी और होशंगाबाद सीट से कांग्रेस के टिकट पर लड़े लेकिन असफल रहे.
इसी तरह, उस समय मंत्री रहीं कुसुम महदेले (अब 80) को भी 2018 के चुनावों के लिए टिकट नहीं दिया गया था.
उम्र का मुद्दा और इस पर भाजपा का रुख 2019 के लोकसभा चुनावों में केंद्र में तब आया जब पार्टी के संरक्षक लालकृष्ण आडवाणी और अनुभवी मुरली मनोहर जोशी को टिकट नहीं दिया गया.
उस समय, तत्कालीन भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि पार्टी ने 75 वर्ष से अधिक उम्र वालों को लोकसभा चुनाव का टिकट नहीं देने का फैसला किया है.
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राजनीतिक पर्यवेक्षक जयराम शुक्ला ने कहा कि इस बार 70 से अधिक उम्र वालों को टिकट देने का भाजपा का कदम 2018 के चुनावों में मिली मामूली हार के कारण हो सकता है.
2018 में अधिक मत प्रतिशत होने के बावजूद, भाजपा सिर्फ 109 सीटें जीतने में सफल रही, जबकि कांग्रेस 114 सीटों पर विजयी हुई, जो 230 सदस्यीय सदन में बहुमत से कुछ ही कम थी.
शुक्ला ने याद किया कि रामकृष्ण कुसमरिया (81) को 2018 में टिकट नहीं दिया गया था और उन्होंने दमोह और पथरिया से निर्दलीय चुनाव लड़ा था. शुक्ला ने बताया, ‘‘कुसमरिया को दमोह में 1,133 वोट और पथरिया में लगभग 13,000 वोट मिले थे. भाजपा दमोह में कांग्रेस से सिर्फ 798 वोटों से और पथरिया में बहुजन समाज पार्टी (बसपा)से 2,205 वोटों से हार गई थी.'
शुक्ला ने कहा, संयोग से, कुसमरिया बाद में भाजपा में लौट आए और 2023 के चुनावों से पहले उन्हें मध्य प्रदेश राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग का अध्यक्ष बनाया गया ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वह फिर से बुंदेलखंड में भाजपा की जीत की संभावनाएं प्रभावित नहीं करें.
शुक्ला ने कहा, फरवरी 2020 में वीडी शर्मा (50) को मप्र भाजपा प्रमुख बनाए जाने के बाद, पार्टी ने कई युवा चेहरों को जिला अध्यक्ष के रूप में नामित करके युवा नेतृत्व का निर्माण शुरू किया.
उन्होंने दावा किया कि पार्टी का यह कदम दिग्गजों को पसंद नहीं आया और उनमें से कई ने अपने कनिष्ठों की अध्यक्षता में होने वाली पार्टी बैठकों में आना बंद कर दिया.
इससे पहले, राजनीतिक पर्यवेक्षक गिरजा शंकर ने ‘पीटीआई-भाषा' को बताया था कि भाजपा ने कभी भी आधिकारिक घोषणा नहीं की है कि वह 75 वर्ष से अधिक उम्र के लोगों को टिकट नहीं देगी. उन्होंने कहा कि किसी भी पार्टी के लिए जीत की संभावना सबसे ज्यादा मायने रखती है.
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