MP Assembly History: आज का दिन यानि बुधवार 17 दिसंबर मध्यप्रदेश के लिए बेहद खास है क्योंकि ठीक 69 साल पहले, 17 दिसंबर 1956 को ही प्रदेश की विधानसभा की पहली बैठक हुई थी. इस ऐतिहासिक मौके को यादगार बनाने के लिए आज विधानसभा का विशेष सत्र बुलाया गया है. यह राज्य के इतिहास में सिर्फ चौथी बार है जब कोई 'स्पेशल सेशन' हो रहा है. यह खबर आज इसलिए भी अहम है क्योंकि यह सिर्फ सत्रों की गिनती नहीं, बल्कि उन 4,499 विधायकों की मेहनत और प्रदेश की 8 करोड़ जनता के सपनों की कहानी है, जो 1956 से लेकर अब तक इस लोकतंत्र के मंदिर में रची गई है.
192वां सत्र: इतिहास का चौथा अहम पड़ाव
बता दें कि 1 नवंबर 1956 को एक नए राज्य के रूप में मध्यप्रदेश का जन्म हुआ. इसके ठीक डेढ़ महीने बाद, 17 दिसंबर 1956 को उस लोकतांत्रिक यात्रा की औपचारिक शुरुआत हुई, जिसे आज हम मध्यप्रदेश विधानसभा के रूप में जानते हैं.उस पहले सत्र से लेकर आज सोलहवीं विधानसभा के वर्तमान कार्यकाल तक, बीते 69 वर्षों में मध्यप्रदेश विधानसभा के 191 सत्र आयोजित हो चुके हैं. अब जो सत्र आहूत हुआ है, वह 192वां सत्र है. विशेष बात यह है कि यह विधानसभा के इतिहास का चौथा विशेष सत्र है. विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर के अनुसार, यह सत्र न केवल राज्य की 8 करोड़ जनता के विकास को समर्पित है, बल्कि लोकतंत्र की उस लंबी यात्रा को याद करने का अवसर भी है, जिसे हजारों जनप्रतिनिधियों ने मिलकर रचा.

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साढ़े चार हजार विधायकों की मेहनत का नतीजा
इन 69 वर्षों में मध्यप्रदेश विधानसभा में कुल 4,499 निर्वाचित विधायकों ने पक्ष और विपक्ष की भूमिका निभाई. इन जनप्रतिनिधियों ने राज्य के सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक विकास में अपनी वैचारिक आहुति दी है. लोकतंत्र के इस पवित्र मंदिर में बैठकर उन्होंने नीतियां गढ़ीं, बहसें कीं, असहमति जताई और सहमति बनाई. इसी मंथन से प्रदेश की लोकशाही की आत्मा जीवंत रही है.

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'जनता का भरोसा ही है लोकतंत्र की असली ताकत'
विधानसभा अध्यक्ष नरेंद्र सिंह तोमर ने इस मौके पर कहा कि लोकतंत्र में जनता और जनप्रतिनिधियों के रिश्ते की धुरी 'विश्वास' होती है. संसद हो या विधानसभा, इन्हें लोकतंत्र का मंदिर इसलिए कहा जाता है क्योंकि जैसे धर्म में ईश्वर सर्वोच्च है, वैसे ही लोकतंत्र में विधानसभा वह स्थान है जहां जनता से जुड़े हर मुद्दे पर निर्णय लिए जाते हैं.
विशेष सत्रों का ऐतिहासिक क्रम मध्यप्रदेश विधानसभा के इतिहास में अब तक केवल चार विशेष सत्र आयोजित हुए हैं:
- 1997: आज़ादी की स्वर्ण जयंती पर विशेष सत्र.
- 2000: राज्य विभाजन (छत्तीसगढ़ गठन) के समय विशेष सत्र.
- 2015: मध्यप्रदेश के विकास पर केंद्रित विशेष सत्र.
- 2025: वर्तमान का यह चौथा विशेष सत्र, जो अतीत, वर्तमान और भविष्य को जोड़ने वाला है.
राजनीतिक पूर्वजों का अमूल्य योगदान
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव और अन्य नेताओं ने इस अवसर पर कहा कि राज्य के गठन से लेकर आज तक, पक्ष और विपक्ष दोनों के राजनीतिक पूर्वजों का योगदान समान रूप से अहम रहा है. पहली से लेकर सोलहवीं विधानसभा तक,हर कालखंड के जनप्रतिनिधियों ने विकास यात्रा को दिशा दी है. आज के 230 वर्तमान विधायक इस विशेष सत्र के जरिए उस विरासत का हिस्सा बन रहे हैं, जिसमें 4,499 पूर्व विधायकों का श्रम शामिल है.
पंडित कुंजीलाल दुबे की वो बात जो आज भी सच लगती है
इस लोकतांत्रिक यात्रा की नींव रखने वाले पहले अध्यक्ष पंडित कुंजीलाल दुबे ने 18 दिसंबर 1956 को अपने पहले उद्बोधन में कहा था, “इस मध्यप्रदेश की भव्य भूमि में विभिन्न युगों की संस्कृतियां खेलती रही हैं. इसके अतीत का गौरव भारत का गौरव रहा है और मुझे विश्वास है कि भविष्य के गौरव में भी मध्यप्रदेश का गौरव शामिल रहेगा. ऐसा प्रयत्न हम सबको करना चाहिए.” आज सात दशक बाद भी वे शब्द उतने ही प्रासंगिक हैं. यह यात्रा सिर्फ आंकड़ों की कहानी नहीं, बल्कि जनता की आकांक्षाओं और लोकतंत्र की जीवंत आत्मा की कहानी है.