Differently Abled Sarpanch: 'ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है.' यह शेर अल्लामा इकबाल का है. हर किसी को जीवन में इस शेर को अपना लेना चाहिए... मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) के विदिशा (Vidisha) के एक गांव की सरपंच इस शेर को यथार्त करती नजर आती है... यह एमपी की ऐसी दिव्यांग महिला सरपंच है, जो विकलांगता को पीछे छोड़ते हुए अपने गांव को विकास की नई ऊंचाइयों तक पहुंचा रही है. यह हैं विदिशा संसदीय क्षेत्र की खातेगांव जनपद पंचायत की ग्रामपंचायत बरछाबुजुर्ग की सरपंच सुनीता भलावी (Sunita Bhalavi), जो अन्य महिला सरपंचों के लिए मिसाल बन गई हैं. बल्कि, इनसे हर महिला को सीखने की जरूरत है...
घर जाकर लोगों की सुनती हैं समस्याएं
ग्रामपंचायत बरछाबुजुर्ग की सरपंच सुनीता भलावी बैसाखी से चलती हैं, लेकिन गांव की समस्याओं को सुलझाने के लिए किसी बैसाखी के आसरे नहीं रहती हैं. सुनीता संघर्षों के कई पड़ाव पार कर सरपंच बनी हैं. अब अपने गांव को विकास की नई दिशा देने का सपना देखती हैं. बता दें कि गांव की आबादी करीब तीन हजार है. वह हर घर में जाकर लोगों से उनकी समस्या सुनती हैं और उसका समाधान करती हैं. खास बात ये है कि 174 ऐसी पंचायत हैं, जहां दिव्यांग सरपंच हैं.
खुद चलाती हूं अपना पंचायत-सुनीता
सुनीता भलावी, सरपंच कहती है कि, 'मैं अपनी ग्राम पंचायत खुद चलाती हूं. विकलांग हूं पर मेरी मेहनत में कोई कमी नहीं आती है.' सरपंच रहते हुए सुनीता ने ग्राम पंचायत में सड़क, बिजली, पानी और गोशालाओं का निर्माण कराया है. गांववालों को भी उनपर गर्व है.
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सरपंच सुनिता पर गर्व-ग्रामीण
सुनिता के गांव के ही रहने वाले लेखराम गुर्जर कहते है कि हमें गर्व है कि हमारी सरपंच सुनीता इतनी मेहनती हैं. प्रशासन कहता है, सुनीता भलावी दूसरी महिला सरपंचों के लिए प्रेरणा हैं. लोगों को उनके मेहनत और लगन पर पूरा भरोसा है और उनके सरपंच रहने पर ग्रामीणों को विकास कार्यों को लेकर कोई परेशानी नहीं होती है.
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