Vultures In Rewa: मध्य प्रदेश (Madhya Pradesh) में सरकार का जटायु संरक्षण अभियान (Jatayu Conservation Campaign) जारी है. इसी के अंतर्गत रीवा जिले में 16 ,17 और 18 फरवरी को गिद्ध गणना का काम किया गया. यहां इससे पहले 2021 में हुई गणना के मुकाबले इस बार दोगुने से ज्यादा गिद्ध (Vultures) पाए गए. पिछली गणना में क्षेत्र में 345 गिद्ध नजर आए थे. जब्कि इस बार ये आंकड़ा 700 के पार पहुंच गया है.
ये भी पढ़ें :- शादी का लालच देकर किया विवाहिता से दुष्कर्म, पुलिस ने लिया क्विक एक्शन, सलाखों के पीछे पहुंचा आरोपी
इन गिद्धों की तादात ज्यादा
रीवा में सबसे ज्यादा इंडियन लॉन्ग बिल्ड वल्चर, जिसे 'देसी गिद्ध' भी कहा जाता है, नजर आए. सफेद या इजिप्शियन गिद्ध भी देखे गए. साथ में कुछ मात्रा में काले या सिनेरियस गिद्ध और एक राज गिद्ध जिसे 'किंग गिद्ध' कहते हैं, देखा गया. व्हाइट बैक्ड या सफेद पीठ वाले गिद्ध भी इस इलाके में नजर आए. गिद्धों के घोसले में उनके बच्चे भी काफी संख्या में नजर आए.
वातावरण अच्छा होने का संकेत
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इस बार गिद्धों ने अपने अंडे पहले ही दे दिए थे. गिद्धों की संख्या ज्यादा होने का सीधा सा अर्थ है कि रीवा जिले और उसके आसपास के इलाकों में इन दिनों जहरीली कीटनाशक दवा का इस्तेमाल कम हो रहा हैं. वन्य प्राणी विशेषज्ञ इसे वातावरण के लिए बेहतर मानकर चल रहे हैं.
तीन दिनों तक हुई गिद्धों की गणना
पूरे प्रदेश के साथ रीवा में गिद्धों की गणना तीन दिनों तक चली. पहले दिन, 16 फरवरी को मौसम खराब होने के कारण गिद्ध ना के बराबर नजर आए. वहीं दूसरे दिन जैसे ही मौसम साफ हुआ तो कई तरह के गिद्ध नजर आए. पहले दिन 266 गिद्ध नजर आए तो दूसरे दिन 275 और तीसरे दिन यह आंकड़ा बढ़कर 700 के आसपास पहुंच गया. जिसमें लगभग 100 बच्चे भी नजर आए.
गिद्धों की होती हैं पांच मुख्य प्रजातियां
आमतौर पर गिद्धों की पांच प्रजातियां होती हैं. इंडियन लॉन्ग बिल्ड जिसे देसी गिद्ध कहते हैं, सफेद या इजिप्शियन गिद्ध, काले या सीनेरियस गिद्ध, सफेद पीठ या व्हाइट बैक्ड गिद्ध और राज गिद्ध या किंग गिद्ध. इन पांचों प्रजातियों के गिद्ध एक ही जगह पर पाया जाना वन प्राणी एक्सपर्ट एक अच्छा संकेत मानते हैं.
ग्लोबल वार्मिंग का असर
वन्य प्राणी एक्सपर्ट का कहना है कि इस बार मौसम के बदलाव की वजह से गिद्धों ने एक महीने पहले ही बच्चे दिए हैं. जिन बच्चों को अभी 15 से 20 दिन का होना था, वो एक से डेढ़ महीने के नजर आ रहे हैं. इसे ग्लोबल वार्मिंग का असर माना जा सकता है.
ये भी पढ़ें :- बुझ गया घर का इकलौता चिराग! नर्मदा नदी में डूबा युवक, अस्पताल पहुंचने से पहले तोड़ा दम