
NDTV Ground Report: मध्य प्रदेश की 84 हज़ार आशा कार्यकर्ता (Asha Workers in Madhya Pradesh) सरकार (Madhya Pradesh Government) की वादा खिलाफ़ी और बेरुखी से नाखुश व नाराज हैं. विधान सभा चुनाव (Assembly Election 2024) से पहले इन आशा कार्यकर्ताओं से वादा किया गया था, उनसे कहा गया था कि बढ़ा हुआ मानदेय दिया जाएगा. मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान (Former Chief Minister Shivraj Singh Chouhan) जब सत्ता में थे तब उनके द्वारा किया गया वादा कैबिनेट से मंजूर भी हुआ, पैसा भी मिले लेकिन महज दो महीने के लिए, उसके बाद बढ़ा हुआ मानदेय तो छोड़िए उनको मिलने वाली प्रोत्साहन राशि भी में भी कटौती होने लगी. देखिए एनडीटीवी (NDTV) की यह ग्राउंड रिपोर्ट.
पहले सुनिए तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह ने क्या कहा था?
अब आशा, ऊषा कार्यकर्ताओं और आशा पर्यवेक्षकों को सेवानिवृत्ति के पश्चात एक लाख रुपया दिया जायेगा और... pic.twitter.com/bpI1dVevHZ
— Shivraj Singh Chouhan (@ChouhanShivraj) July 29, 2023
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल के लाल परेड ग्राउंड में आशा, उषा कार्यकर्ताओं और आशा पर्यवेक्षकों के सम्मेलन को संबोधित करते हुए तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने घोषणा करते हुए कहा था कि " आशा और उषा कार्यकर्ता स्वास्थ्य विभाग का पर्याय बन गयी हैं."

MP News: आशा, उषा कार्यकर्ताओं और आशा पर्यवेक्षकों के सम्मेलन में किए गए वादे

MP News: आशा, उषा कार्यकर्ताओं और आशा पर्यवेक्षकों के सम्मेलन में किए गए वादे

MP News: आशा, उषा कार्यकर्ताओं और आशा पर्यवेक्षकों के सम्मेलन में किए गए वादे
जुलाई 2023 में तत्कालीन सीएम शिवराज सिंह चौहान ने वादा किया गया था कि इनके मानदेय में 4000 की बढ़ोतरी कर 6000 कर दिया जाएगा. हालांकि वादा पूरा हुआ लेकिन सिर्फ दो महीने के लिए. उसके बाद अक्टूबर के महीने से इनके मानदेय में कटौती की जाने लगी जो लगातार जारी है. जिसकी वजह से इनकी न सिर्फ इनको आर्थिक बल्कि मानसिक और पारिवारिक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है. कई आशा कार्यकर्ता और पर्यवेक्षक अपने परिवार की अकेली पालक हैं, ऐसे में उनके लिए बच्चों की पढ़ाई और पालन पोषण करना चुनौती बन चुका है.

आशा कार्यकर्ता संघ की प्रदेश संगठन मंत्री कौसर जहां
अधिकारियों से पूछते हैं तो कहा जाता है कि बजट ही नहीं है: कौसर जहां
आशा कार्यकर्ता संघ की प्रदेश संगठन मंत्री कौसर जहां भोपाल के ग्राम घाँसीपुरा की आशा कार्यकर्ता भी हैं. 2006 से आशा कार्यकर्ता के रूप में काम कर रही हैं. बता रही हैं कि उन्हें जन्म से लेकर मृत्यु तक स्वास्थ्य विभाग का पूरा काम करना होता है. जन्म पंजीयन, मृत्यु पंजीयन, विवाह पंजीयन आदि. बच्चों का टीकाकरण, गर्भवती की जांच, टीबी, मलेरिया और कुष्ठ सहित कई राष्ट्रीय उन्मूलन कार्यक्रमों में सहयोग करना पड़ता है.
भोपाल के डीआईजी बंगला सरकारी अस्पताल में एक महिला की डिलीवरी करवाने लेकर आई थीं. बता रही हैं कि 2000 मानदेय मिलता था. उसको तत्कालीन सीएम शिवराज ने जुलाई मे इसे बढ़ाकर 6000 किया था. लेकिन जुलाई से अब तक सिर्फ दो बार मिला है. जब भी विभाग के अधिकारियों से पूछते हैं तो कहा जाता है कि बजट ही नहीं है. जबकि हमसे लगातार काम करवाया जा रहा है.
वे आगे कहती हैं कि हम लोगों को सबसे ज्यादा अभी समस्या ऑनलाइन काम में आ रही है. टीकाकरण का सर्वे भी हमसे ही कराया जाता है, उसकी ऑनलाइन एंट्री भी हमसे ही कराई जा रही है. ना हमें डाटा दिया जाता है ना हमारे पास ढंग का फोन है. हमसे आयुष्मान कार्ड का वेरिफिकेशन कराया गया, अब हम से ही कार्ड बांटने का कहा जा रहा है. अपने विभाग के अलावा अन्य विभागों के भी काम करने पड़ते हैं और बदले में जीरो पैसा मिल रहा है. जहां भी फरियाद लेकर जाते हैं वह कह देते हैं कि बजट नहीं है. आशा कार्यकर्ताओं की वजह से मातृ मृत्यु और शिशु मृत्यु दर में कमी आई है. इनके लिए हम रात दिन काम कर रहे हैं. लेकिन पैसे नहीं मिल पा रहे हैं.

आशा कार्यकर्ता मिथिलेश गौर
कैंसर से जूझ रही हैं, काम में कोई कमी नहीं, लेकिन पूरा पैसा नहीं मिल रहा
ग्राम अरवलिया सानी की आशा कार्यकर्ता मिथिलेश गौर कैंसर पेशेंट हैं. वह कहती है पूरा काम लिया जाता है. अपने विभाग के साथ पंचायत विभाग के भी काम करने पड़ जाते हैं. मैसेज पूरे मानदेय का आता है लेकिन पैसा कट कर मिल रहा है, जिससे इलाज कराने में परेशानी हो रही है.
जुलाई में बढ़ा हुआ मानदेय देने का वादा किया था लेकिन सितंबर में एक ही महीने का आया. अब तो 2000 जो हमारा पहले से है वह आ रहा है और एक-दो हज़ार डिलीवरी का या टीकाकरण का आता है. कभी 8000 कभी 10000 कभी 12000 मानदेय मिलने का मैसेज आता है, लेकिन मानदेय कट कर आता है. जितना मानदेय मिल रहा है उससे गुजारा नहीं हो रहा ,घर चलाना मुश्किल हो रहा है.

आशा कार्यकर्ता रुक्मणी नाथ
सारे काम करवाए जा रहे हैं लेकिन टाइम पर पैसे नहीं मिल रहे : रुक्मणी नाथ
ग्राम अरवलिया की आशा कार्यकर्ता रुक्मणी नाथ कहती हैं कि सारे काम करवाते हैं लेकिन पैसे नहीं मिल रहे. कोई काम छूट जाए तो कहते हैं कि तुम्हारे बस का नहीं है तो काम छोड़ दो.
विपक्ष को लोकसभा चुनाव से पहले मिला मौका
विपक्ष को लोक सभा चुनाव से पहले बैठे बिठाए सरकार को घेरने का एक और बड़ा मुद्दा मिल गया है. कांग्रेस विधायक और पेशे से डॉक्टर विक्रांत भूरिया का इस मामले में कहना है कि सरकार आशा कार्यकर्ताओं के साथ भेदभाव कर रही है. उनसे मानदेय बढ़ाने का वादा किया था लेकिन सिर्फ दो महीने दिया और फिर बंद कर दिया. अब उनकी प्रोत्साहन राशि में भी कटौती की जा रही है. जब किसी महिला का प्रसव हो तो आशा कार्यकर्ता याद आती है, वैक्सीनेशन करवाना हो तो आशा कार्यकर्ता याद आती है. पोषण आहार आहार बंटवाना हो तो आशा कार्यकर्ता याद आती. लेकिन जब उनके अधिकार की बात आती है सरकार उनके अधिकार को क्यों भूल जाती है. सरकार को इस पर संज्ञान लेना चाहिए और जल्द से जल्द उनको बढ़ा हुआ मानदेय देना चाहिए.
मंत्री जी काे कुछ पता ही नहीं!
वहीं जब प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री राजेंद्र शुक्ल से इस मामले में सवाल किया तो वह इस मामले से अनजान दिखाई दिए और हैरानी से अपने पीछे खड़े ओएसडी को इशारा कर बोले की क्यों क्या बोल रहे हैं यह? आशा कार्यकर्ताओं का मानदेय कटने लगा क्या? रिपोर्टर से बोले कि पहले इनको (यानी कि ओएसडी को) समझाइए.
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