Ginnodgarh Fort: जब मध्यप्रदेश सरकार ने हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति रेलवे स्टेशन किया, तब देशभर में यह नाम चर्चा का विषय बना. पर एक बड़ा सवाल आज भी अनुत्तरित है- क्या हम जानते हैं कि रानी कमलापति का वास्तविक किला कहां है ? जवाब है- भोपाल
जी नहीं, बल्कि लगभग 50 किलोमीटर दूर रायसेन जिले की ओबेदुल्लागंज तहसील में स्थित गिन्नौदगढ़ का किला, जो आज भी घने जंगलों के बीच शांत खड़ा है… मानो सदियों से किसी के पुकारने का इंतजार कर रहा हो. NDTV इस ऐतिहासिक स्थान पर पहुंचा और पहली बार आपके लिए लेकर आया है... उस किले की जमीनी हकीकत, जिसके पत्थर आज भी रानी कमलापति की गाथा सुनाते हैं.

गिन्नौदगढ़: 18वीं सदी की एक जीवित धरोहर
घने जंगलों, पथरीली चट्टानों और नर्मदा क्षेत्र की हवाओं से घिरा गिन्नौदगढ़ किला तीन सौ से अधिक वर्षों का इतिहास समेटे हुए है. यहां पहुंचते ही लगता है जैसे समय ठहर गया हो- ऊंची-ऊंची दीवारें, जिन्हें कोई भी आक्रमणकारी कभी भेद नहीं पाया.
प्राचीन स्थापत्य जो गोंड साम्राज्य की शक्ति दर्शाता है और काई से ढंके वे पत्थर जो सदियों पुरानी कहानियों के साक्षी हैं. यह सिर्फ एक धरोहर नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश के इतिहास की रीढ़ है.

कौन थीं रानी कमलापति ? सत्य, साहस और रणनीति का अद्वितीय संगम
रानी कमलापति का नाम आज भी गोंड वंश के गौरव का प्रतीक माना जाता है. 16वीं–17वीं सदी के दौरान भोपाल गोंड रियासतों के अधीन था और यहीं से शुरू होती है कमलापति की कहानी. उनका विवाह गोंड शासक सूरज सिंह शाह के पुत्र निजाम शाह से हुआ था. निजाम शाह की सात रानियां थीं, लेकिन कमलापति उनकी सबसे प्रिय थीं. वो रणनीतिक सोच, साहस और कुशल प्रशासन के लिए वे जानी जाती थीं. हालांकि उनकी कहानी में एक अंधेरा मोड़ भी है.

आलम शाह: सत्ता-पिपासु भतीजा और विश्वासघात की काली रात
इतिहास के हर महान अध्याय की तरह यहां भी खलनायक मौजूद है- आलम शाह. निजाम शाह का भतीजा, जिसके मन में सत्ता की भूख और लालच बढ़ चुका था.
सन् 1720 की एक शाम...परिवार के भोजन में जहर मिलाया गया और कुछ ही समय में निजाम शाह की मृत्यु हो गई. वो रात आज भी गिन्नौदगढ़ की दीवारों पर दर्द की परतें छोड़ गई है.

नवल शाह को लेकर भोपाल की ओर— संघर्ष की नई शुरुआत
पति की मृत्यु के बाद रानी कमलापति ने अपने बेटे नवल शाह को लेकर गिन्नौदगढ़ से भोपाल के महल में शरण ली.
लेकिन वो टूटीं नहीं. उन्होंने न्याय और बदले की लड़ाई जारी रखी.
कहते हैं कि कमलापति की रणनीति, दृढ़ता और नेतृत्व ने भोपाल क्षेत्र की राजनीतिक दिशा ही बदल दी. कई इतिहासकारों के अनुसार, वो मध्यभारत की उन गिनी-चुनी रानियों में से थीं, जिन्होंने अपनी रियासत को अकेले संभाला.
आज की सच्चाई: जितना समृद्ध इतिहास, उतनी ही उपेक्षा
NDTV टीम ने जब गिन्नौदगढ़ पहुंचकर जमीनी हालात देखे तो एक बात स्पष्ट हुई— यह किला इतिहास नहीं खो रहा… यह हमारी सरकारी उदासीनता की वजह से मिट रहा है. यह पूरा क्षेत्र फॉरेस्ट डिपार्टमेंट के अधीन है. वर्तमान स्थिति यह है कि-
- जंगल बेहद घना
- रास्ते कच्चे और दुर्गम
- संरक्षण का अभाव
- कोई गाइडलाइन नहीं, कोई सुरक्षा नहीं
- संरचनाएं लगातार टूट रही हैं
सरकार ने स्टेशन का नाम बदलकर भले ही रानी कमलापति की स्मृति को सम्मान दिया हो, लेकिन जिस किले पर उनका वास्तविक इतिहास दर्ज है, वो आज भी खंडहरों में अपनी आखिरी सांसें गिन रहा है.

स्थानीय लोगों की आवाज: “किला बचाना सरकार की जिम्मेदारी”
स्थानीय ग्रामीणों, जंगल गाइडों और रेंज स्टाफ ने NDTV से कहा, 'यह क्षेत्र सिर्फ इतिहास नहीं, बल्कि इको-टूरिज्म का बड़ा केंद्र हो सकता है. जंगल सफारी के कई महत्वपूर्ण स्थल यहीं हैं. रानी कमलापति का किला इन सबका केंद्रबिंदु बन सकता है... सिर्फ थोड़ा विकास, थोड़ी सुरक्षा और सही प्रचार की जरूरत है. उनका ये भी कहना है कि अगर सरकार चाहे तो यह किला मध्य प्रदेश का सबसे बड़ा नया पर्यटन सर्किट बन सकता है.
जंगलों के बीच खामोश खड़ा इतिहास
जहां-जहां NDTV की टीम ने कदम रखा- वहां टूटी सीढ़ियां, जर्जर दीवारें और काई से ढंकी पुरानी ईंटें दिखाई दीं, लेकिन दिलचस्प बात यह है कि यह किला अभी भी पूरी तरह ढहा नहीं है. यह आज भी मजबूती से खड़ा है, मानो कह रहा हो-
'हम अब भी यहां हैं… हमें सिर्फ संरक्षण चाहिए.'
ज़रूरत सिर्फ संरक्षण की नहीं, बल्कि दृष्टि की है... अगर यह किला विकसित किया गया. यहां पहुंचने के लिए रास्ते बनाए जाएं...संरचनाओं को सुरक्षित किया जाए, शोध और डॉक्यूमेंटेशन हो... इको-टूरिज्म को योजनाबद्ध तरीके से शुरू किया जाए तो यह किला राष्ट्रीय धरोहर बन सकता है. इतिहास, पर्यटन और प्रकृति— तीनों के लिए यह जगह सोने की खान साबित होगी.
रायसेन की पहचान: प्रकृति, इतिहास और संभावनाओं की धरती
बता दें कि रायसेन जिला प्रकृति की गोद में बसा वह क्षेत्र है, जहां घने जंगल भी हैं... इतिहास के खंडहर भी और संस्कृति की अनगिनत परतें भी... यहां का हर पत्थर कहता है—“हमारा इतिहास किताबों में नहीं, इन जंगलों में छुपा है.”रानी कमलापति सिर्फ एक नाम नहीं— एक विरासत हैं. रानी कमलापति का वास्तविक किला सदियों से अपनी पहचान बचाए हुए है. सरकार, स्थानीय निकाय और पर्यटन विभाग अगर मिलकर इसे संरक्षित करें तो मध्यप्रदेश को एक ऐसा धरोहर स्थल मिलेगा जो मोतियों की तरह चमकेगा. जो नाम आज रेलवे स्टेशन से गूंजता है, वह नाम वास्तव में इन जंगलों में बसता है.