
Female Cricket Player Kranti Goud struggle Story: मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला से लगभग 60 किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव घुवारा है... यहां 12 साल की एक लड़की कभी अपने घर के सामने नंगे पैर प्रैक्टिस करती थी. वो हर दिन सूखी और ऊबड़-खाबड़ जमीन पर क्रिकेट खेलती थी. पैरों में ना जूते, ना पूरा किट... था तो सिर्फ हौसला और जुनून. संघर्ष की यह कहानी किसी और की नहीं, बल्कि ODI में पाकिस्तान को धूल चटाने वाली महिला खिलाड़ी क्रांति गौड़ की है.
छह भाई-बहनों में सबसे छोटी क्रांति ने देखा कि उसके माता-पिता रोजमर्रा की जिंदगी जीने के लिए कितनी मेहनत करते हैं. आदिवासी समुदाय से संबंध रखने वाली क्रांति गौड़ की शुरुआत टेनिस बॉल क्रिकेट में लड़कों के साथ खेलने से हुई, क्योंकि गांव में कोई लड़कियां क्रिकेट नहीं खेलती हैं....
शुरुआत में क्रांति लड़कों के साथ क्रिकेट खेला करती थी. वो बताती हैं कि मुझे क्रिकेट का ज्ञान नहीं था... सिर्फ जुनून हुआ करता था. सबसे पहले लेदर की बॉल से मैच खेला था.
पाकिस्तान को धूल चटाने के बाद क्रांति गौड़ ने कहा यह मेरे और मेरे परिवार के लिए प्राउड मूमेंट है... मेरा डेब्यू श्रीलंका में हुआ था और यहां मुझे 'प्लेयर ऑफ द मैच' मिला. मैं चाहती हूं कि मैं और ज़्यादा स्पीड से गेंदबाजी करूं.
वनडे त्रिकोणीय सीरीज से डेब्यू,
क्रांति गौड़ अप्रैल, 2025 में श्रीलंका में हुई वनडे त्रिकोणीय सीरीज से डेब्यू किया, लेकिन उन्हें असली पहचान इंग्लैंड दौरे से मिली. 22 जुलाई 2025 को चेस्टर-ले-स्ट्रीट में तीसरे और अंतिम वनडे में क्रांति ने अपनी गेंदबाजी के दम पर भारत को 13 रनों से जीत दिलाई. उन्होंने इस मैच में 52 रन देकर छह विकेट लिए.
सबसे कम उम्र में 5 विकेट लेने वाली महिला खिलाड़ी बनीं क्रांति
21 साल 345 दिन की क्रांति गौड़ ने महिला वनडे में भारत की ओर से सबसे कम उम्र में पांच विकेट लेने वाली खिलाड़ी बन गईं. क्रांति ने यह उपलब्धि झूलन गोस्वामी के रिकॉर्ड को तोड़कर हासिल की थी.
समाज से सुनती थीं ताने
धीरे-धीरे क्रांति अपने भाई और पिता के साथ आस-पास के छोटे-छोटे टूर्नामेंट में भी हिस्सा लेने लगीं. हालांकि इस दौरान क्रांति को सामाजिक चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा. बुंदेलखंड का पिछड़ा इलाका होने के कारण इन्हें समाज से भी ताने सूनने पड़े.
दर्शक बन मैच देखने आई थीं क्रांति
छतरपुर जिले के नौगांव में अंतरराज्यीय क्रिकेट टूर्नामेंट का आयोजन प्रतिवर्ष किया जाता है. साल 2017 में क्रांति भी इस टूर्नामेंट को देखने यहां पहुंची. इसमें एक मैच लड़कियों का भी था. क्रांति इस मैच को देखने के लिए दर्शक के रूप में आई हुई थी. लड़कियों की दो टीमें थीं- नौगांव और सागर. टूर्नामेंट होना था, लेकिन इससे पहले किसी कारण से सागर टीम की एक लड़की की तबीयत खराब हो गई और इस टूर्नामेंट में क्रांति को मौका मिल गया. क्रांति को सिर्फ मौके की तलाश थी.
लेकिन किस्मत को कुछ और ही था मंजूर
वो बताती हैं कि सागर टीम के कोच सोनू ने मुझसे पूछा कि क्या तुम मैच खेलोगी? क्योंकि हमारी टीम में एक लड़की की तबीयत खराब हो गई है तो मैंने हां कर दिया... यह लेदर बॉल से मेरा पहला मैच था. इसमें मैंने 25 रन बनाए और 2 विकेट लिए... मुझे इस मैच के लिए 'प्लेयर ऑफ द मैच' चुना गया था.
क्रांति के सबसे बड़े भाई मयंक सिंह का कहना है कि चुनौतियां बहुत थीं, लेकिन परिवार ने कभी हार नहीं मानी. छह भाई-बहने हैं, जिसमें मयंक सबसे बड़े और क्रांति सबसे छोटी है.
साल 2017 में एक मैच के दौरान क्रांति की मुलाकात उनके कोच राजीव बिल्थरे से हुई. राजीव बिल्थरे छतरपुर में एक क्रिकेट अकादमी चलाते हैं. क्रांति ने अपने पिता से जिद की कि वो अकादमी में जाकर क्रिकेट सीखना चाहती हैं.
कभी मां को बेचने पड़े थे गहने, आज बल्लेबाजों को डराती है
क्रांति बताती हैं कि एक दौर ऐसा भी आया जब मां को अपने गहने बेचने पड़े, ताकि मैं क्रिकेट खेल सकूं. उस समय मेरा परिवार आर्थिक चुनौतियों का सामना कर रहा था. पिता पुलिस विभाग की नौकरी से सस्पेंड हो गए थे और भाई के पास नौकरी नहीं थी. ऐसे में कोच ने क्रांति की रहने से लेकर क्रिकेट के लिए सामान मुहैया कराने तक...की जिम्मेदारी उठाई.
क्रांति बताती हैं कि हमें खाने के लिए लोगों से रुपये उधार लेना पड़ता था और लोगों से वादा करते थे कि हम आपका पैसा जल्द वापस लौटा देंगे. बुरे वक्त में कोई साथ नहीं देता है... जब हमारा बुरा वक्त आया तो किसी ने साथ नहीं दिया.
मुझे प्रैक्टिस के लिए जाना होता था तो कोई पैसे उधार नहीं देता था. इसलिए मेरी मां ने अपने गहने बेचकर मैच खेलने भेजा था.