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फेक सर्टिफिकेट से बन बैठा मलेरिया टेक्निकल सुपरवाइजर, 12 साल नौकरी करता रहा, अब हाई कोर्ट ने हटाया

Fake Certificate Government Job: फर्जी सर्टिफिकेट दिखाकर पिछले 12 साल से मलेरिया टेक्निकल सुपरवाइजर पद पर तैनात गौरव भार्गव को हाई कोर्ट ने तुरंत प्रभाव से हटाने का आदेश दिया. सुनवाई में खुलासा हुआ कि आरोपी ने जिस प्रमाण पत्र को पेश कर चयन प्रक्रिया में अतिरिक्त अंक प्राप्त किए, वो फर्जी था.

फेक सर्टिफिकेट से बन बैठा मलेरिया टेक्निकल सुपरवाइजर, 12 साल नौकरी करता रहा, अब हाई कोर्ट ने हटाया
High court Removed Government employee for Fake Certificate

Fake Certificate Employee:  ग्वालियर जिले में फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर 12 साल से सरकारी नौकरी कर रहे एक जालसाज को हाई कोर्ट ने तुरंत प्रभाव से नौकरी हटाने का आदेश जारी किया है. मंगलवार को हाईकोर्ट में दायर एक याचिका की सुनवाई के दौरान खुलासा होने के बाद उच्च न्यायालय ने युवक को नौकरी से हटाने आदेश दिया.

फर्जी सर्टिफिकेट दिखाकर पिछले 12 साल से मलेरिया टेक्निकल सुपरवाइजर पद पर तैनात गौरव भार्गव को हाई कोर्ट ने तुरंत प्रभाव से हटाने का आदेश दिया. सुनवाई में खुलासा हुआ कि आरोपी ने जिस प्रमाण पत्र को पेश कर चयन प्रक्रिया में अतिरिक्त अंक प्राप्त किए, वो फर्जी था.

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फर्जी प्रमाण पत्र को दिखाकर आरोपी ने हासिल किए थे अधिक अंक

गौरतलब है पिछले 12 साल से जिस फर्जी प्रमाण पत्र को दिखाकर आरोपी गौरव भार्गव ने दूसरे उम्मीदवारों से अधिक अंक हासिल किए थे, वो फर्जी थे. इसका खुलासा नितिन गौतम व अन्य की याचिका पर सुनवाई के दौरान हुआ. गौरव भार्गव की नियुक्ति को दूषित बताते हुए हाई कोर्ट ने तुरंत मलेरिया टेक्निकल सुपरवाइजर पद रिक्त घोषित करने का आदेश दिया.

गौरव भार्गव व अन्य उम्मीदवारों के चयन को कोर्ट में दी गई थी चुनौती 

रिपोर्ट के मुताबिक मामला 2013 में मलेरिया टेक्निकल सुपरवाइजर के पद पर हुईं भर्ती की प्रक्रिया से जुड़ा हुआ है. इसी भर्ती गौरव भार्गव पर फेक सर्टिफिकेट लगाने का आरोप हैं. भर्ती प्रक्रिया को दूषित बताते हुए अभ्यर्थी नितिन गौतम व अन्य ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी और गौरव भार्गव समेत कई उम्मीदवारों के चयन को चुनौती दी थी.

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दरअसल, गौरव भार्गव की नियुक्ति मामले में खुलासा हुआ कि उसने जिला अस्पताल शिवपुरी में 24 जनवरी से लेकर 24 अप्रैल 2006 तक बतौर ड्रेसर सेवाएं दीं. इस संबंध में तत्कालीन सीएमएचओ ने 25 अप्रैल 2006 को प्रमाण पत्र जारी किया, लेकिन RTI में यह तथ्य झूठा निकला.

लिखित परीक्षा अधिक अंक होने के बाद दूसरों को इंटरव्यू में कम अंक मिले

पीड़ितों ने कोर्ट में बताया कि लिखित परीक्षा में ज्यादा अंक प्राप्त करने के बाद भी उनका चयन केवल इसलिए नहीं हो पाया, क्योंकि इंटरव्यू में उन्हें जानबूझकर कम अंक दिए गए. कोर्ट को बताया गया कि नियुक्ति के लिए एक कमेटी का गठन किया गया था, जिसमें स्थानीय कलेक्टर, CMHO व स्वास्थ्य विभाग के अन्य अधिकारी बतौर सदस्य शामिल थे.

सुनवाई के दौरान असली तथ्य का पता चला तो हाई कोर्ट ने भी आश्चर्य जताया

मामले की सुनवाई में हाई कोर्ट को जब असली तथ्य का पता चला तो हाईकोर्ट ने गौरव भार्गव की नियुक्त को दूषित बताते उसको नौकरी से हटाने का आदेश जारी कर दिया. कोर्ट को बताया गया कि गौरव ने बतौर वॉलंटियर सेवाएं दी थीं. हाई  कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि ड्रेसर जैसे महत्वपूर्ण पद पर कोई वॉलंटियर के रूप में कैसे सेवाएं दे सकता है ?

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