Ek Bagiya Maa Ke Naam: इंदौर में सरकार एक ओर “एक बगिया मां के नाम” जैसी भावनात्मक और आकर्षक परियोजनाओं का ढोल पीट रही है, तो दूसरी ओर विकास के नाम पर शहरों की सांसें बेरहमी से छीनी जा रही हैं. सवाल यह नहीं है कि पौधे लगाए जा रहे हैं या नहीं... सवाल यह है कि जो पेड़ आज जीवित हैं, जो शहर और पक्षियों को जीवन दे रहे हैं, उन्हें बचाने की इच्छाशक्ति आखिर कहां है?
15 अगस्त से शुरू हुई “एक बगिया मां के नाम” परियोजना को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के “एक पेड़ मां के नाम” अभियान से जोड़कर प्रदेश में बड़े स्तर पर प्रचारित किया गया. उद्देश्य भी सराहनीय बताया गया—स्व-सहायता समूह की महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाना, वायु प्रदूषण कम करना, बारिश में हो रही देरी जैसी समस्याओं से निपटना. कागज़ों में यह योजना हरियाली, आजीविका और पर्यावरण—तीनों का सुंदर संगम है. लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट तस्वीर पेश कर रही है
इंदौर जैसे शहर में मेट्रो परियोजना के नाम पर जिस अंधाधुंध तरीके से पेड़ों की बलि दी जा रही है... वह इस पूरे अभियान की सच्चाई पर सवाल खड़े करती है. अगर वास्तव में सरकार को पर्यावरण की चिंता होती, तो नए पौधे लगाने से पहले पुराने, वर्षों से खड़े पेड़ों को बचाने की प्राथमिकता तय की जाती
रानी सराय: जहां हर सुबह चहचहाहट गूंजती है
इंदौर के रीगल चौराहे पर स्थित रानी सराय, पुलिस मुख्यालय परिसर में मौजूद सालों पुराने पेड़ केवल लकड़ी का ढांचा नहीं हैं, बल्कि हजारों तोतों और पक्षियों का सुरक्षित घर हैं. भोर होते ही यह इलाका पक्षियों की चहचहाहट से जीवंत हो उठता है. तोते, कबूतर और कई दुर्लभ प्रजातियां यहां पीढ़ियों से रह रही हैं, लेकिन अब यही हरियाली मेट्रो स्टेशन की भेंट चढ़ने वाली है.
अंडरग्राउंड मेट्रो स्टेशन, एग्जिट-एंट्री पॉइंट, पार्किंग और कमर्शियल स्ट्रक्चर—इन सबके लिए रानी सराय का बड़ा हिस्सा उजाड़ने की तैयारी है. निर्माण सामग्री पहले ही यहां जमा की जा चुकी है और जल्द ही अंडरग्राउंड खुदाई शुरू होने वाली है. इसके साथ ही सालों पुराने पेड़ों की कटाई का प्लान भी तैयार है, जिससे नन्हें तोतों और पक्षियों के घोंसले मिट्टी में मिल जाएंगे.
विकास बनाम विनाश
मेट्रो रेल परियोजना के पहले 6 किलोमीटर के सफल संचालन के बाद अब 16 किलोमीटर के नए ट्रैक का काम तेज़ी से चल रहा है. इस दायरे में रानी सराय का इलाका भी शामिल है. मेट्रो कंपनी ने रीगल टॉकीज की जमीन के साथ-साथ इस हरित क्षेत्र पर भी दावा ठोक दिया है. यह वही शहर है जहां मास्टर प्लान में हर क्षेत्र में 50-50 एकड़ हरित क्षेत्र छोड़ने की बात कही जाती है, लेकिन ज़मीनी हकीकत में हरियाली विकास की सबसे पहली बलि बनती है.
पक्षी विशेषज्ञों की चेतावनी
संस्था नेचर वालंटियर्स के पक्षी विशेषज्ञ भालू मोंडे साफ कहते हैं कि इंसान ने पक्षियों को अनुपयोगी समझ लिया है, जबकि जंगलों और पर्यावरण के संतुलन में उनकी अहम भूमिका है. तोते सूखे और हरे-भरे दोनों तरह के पेड़ों पर अपने आशियाने बनाते हैं. अगर उनके घर उजड़ते हैं, तो नए सिरे से विस्थापन के लिए बड़े पैमाने पर फलदार पेड़ लगाने होंगे—जो सिर्फ कागज़ी आश्वासनों से संभव नहीं है.
करुणा सागर की मेहनत भी बेकार?
रानी सराय क्षेत्र में करुणा सागर संस्था ने पक्षियों के लिए पेड़ों पर मिट्टी के मटकों से घोंसले बनवाए थे, ताकि वे हर मौसम में सुरक्षित रह सकें. वर्षों की मेहनत से यहां एक छोटी-सी पक्षी कॉलोनी बसाई गई. लेकिन मेट्रो के अलाइनमेंट में आते ही यह पूरी व्यवस्था टूटने के कगार पर है. संस्था के सदस्य राजू सागर का कहना है कि मेट्रो प्रबंधन को इस विषय में अवगत कराया जाएगा, ताकि पक्षियों को वैकल्पिक स्थान पर शिफ्ट किया जा सके—लेकिन क्या यह सिर्फ औपचारिकता बनकर रह जाएगी?
30 हजार एकड़ पर बगिया, शहर में उजाड़
सरकार दावा कर रही है कि प्रदेश की 30 हजार से अधिक महिलाओं की 30 हजार एकड़ निजी भूमि पर “एक बगिया मां के नाम” परियोजना के तहत पौधरोपण होगा. करीब 1000 करोड़ रुपये की लागत से 30 लाख उद्यानिकी पौधे लगाए जाएंगे. पौधे, खाद, फेंसिंग, जल कुंड और प्रशिक्षण—सब कुछ योजनाओं में दर्ज है. लेकिन सवाल यह है कि क्या इन आंकड़ों से उन हजारों तोतों को नया घर मिल पाएगा, जिनका बसेरा आज उजाड़ा जा रहा है?
सवाल यह भी है कि अगर वास्तव में पर्यावरण और आने वाली पीढ़ियों की चिंता है, तो “एक बगिया मां के नाम” सिर्फ एक सरकारी स्लोगन नहीं होना चाहिए. पेड़ काटकर पौधे लगाने की नीति हरियाली नहीं, पाखंड है.
आज जरूरत नई बगिया बनाने से पहले पुरानी हरियाली को बचाने की है, ताकि कल हमारी आने वाली पीढ़ियों को यह न कहना पड़े कि हमने विकास के नाम पर उनका भविष्य खुद काट दिया.
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