
AI Scam in MP: आधुनिक दौर में इंसान टैक्नोलॉजी से इतना जुड़ चुका है कि अब फर्क करना मुश्किल हो गया है कि कौन मशीन है और कौन इंसान. लेकिन जिस टेक्नोलॉजी पर हम आंख बंद करके भरोसा करते हैं, वही आज अपराधियों का सबसे बड़ा हथियार बन गई है.
हर्षा रिछारिया आत्मिक शांति ढूंढने महाकुंभ गई थीं. वहां वह वायरल हुईं और कुछ विवाद भी पीछे पड़े लेकिन एक दिन जब उन्होंने खुद को ही इंटरनेट की गहराइयों में बिखरा पाया तो सारी दुनिया जैसे रुक गई. उनकी पहचान, उनके चेहरे और उनकी आवाज़ को किसी ने चुरा लिया था.
AI यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के इस्तेमाल से उनकी तस्वीरों और वीडियो का ऐसा फर्जी संसार रचा गया, जिसमें वो थीं लेकिन वो खुद नहीं थीं. अश्लील वीडियो, फर्जी आधार कार्ड, ऑनलाइन ठगी के झूठे दावे और उनके नाम पर लोगों से की गई उगाही... ये सब तब सामने आया जब कई लोग उनसे संपर्क करने लगे कि उन्होंने पैसा क्यों मांगा?
यह कहानी एक नहीं, हज़ारों लोगों की बन चुकी है. शैलेन्द्र उपाध्याय, भोपाल में रहते हैं, एक आम नौकरीपेशा शख्स हैं लेकिन जब उनके बैंक खाते से अचानक पैसे उड़ गए, तो उन्होंने पुलिस का दरवाज़ा खटखटाया. जवाब मिला—“ये ठगी केरल से हुई है.”
एमपी में साइबर ठगी का खतरा बढ़ा
2024 में विधानसभा में एक सवाल के जवाब में सरकार ने जानकारी दी थी कि प्रदेश में 2 साल में ठगी के 992 मामले सामने आए-
- 2 साल में ठगी के 992 मामले सामने आए
- जिसमें कुल ठगी ₹152 करोड़ रु की हुई
- 2023 में 444 मामलों में ₹19 करोड़ की ठगी हुई
- वहीं 2024 में 521 मामलों में ₹94 करोड़ की ठगी
- यानी मामले 20% बढ़े, वहीं ठगी की रकम 5 गुना ज़्यादा
पुलिस पर उठे सवाल
आंकड़े हैं, लेकिन पुलिस के शिकायत का रजिस्टर ऐसे खुलता है जैसे गर्मी में आम मीठे नहीं होते, बस सड़ते रहते हैं. रजिस्टर में शिकायतें हैं, पुलिस के पास नीयत नहीं. हर दिन बीस लोग साइबर फ्रॉड का शिकार होते हैं, सबसे ज़्यादा ठगी AI से हो रही है- यानी ठग अब गुंडे नहीं कोडर हैं. Python में स्क्रिप्ट लिखते हैं और दिल में स्कैम.
लोगों की भावनाओं से खिलवाड़
साइबर एक्सपर्ट मानते हैं कि AI के जरिए लोगों की भावनाओं से खेला जा रहा है.” अब ठग प्यार में डालते हैं, फिर पेटीएम में. पहले प्रेम पत्र आते थे, अब फ्रॉड लिंक. AI अब सिर्फ चैट या फोटो एडिटिंग तक सीमित नहीं है. ठग अब इसका इस्तेमाल कर लोगों की आवाज़, चेहरा और पहचान चुराकर उनके नाम पर ठगी कर रहे हैं. ये एक नई किस्म की साइकोलॉजिकल क्राइम है—जहां पीड़ित खुद नहीं जान पाता कि वो कब शिकार बना. हर राज्य की पुलिस कहती है—“ये हमारे अधिकार क्षेत्र से बाहर है.”
पुलिस का डिजिटल सिस्टम धीमा!
FIR ऑनलाइन करने की सुविधा होती है लेकिन ठग उससे तेज़ हैं. पुलिस का डिजिटल सिस्टम धीमा है, ठगों का AI रियल टाइम में काम करता है. जब एक साध्वी, एक सामान्य नागरिक और हजारों लोग इस डिजिटल जंगल में रास्ता खो चुके हैं, तो क्या कोई सिस्टम है जो उन्हें वापस निकाल सके? या फिर हम एक ऐसे युग में प्रवेश कर चुके हैं, जहां इंसान का नाम, चेहरा और आवाज़ उसके नियंत्रण में नहीं, बल्कि एक अनजान, अदृश्य कोड के पास है?
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