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खतरों के बीच अफीम की खेती, न दिन का चैन न रात की नींद, मंदसौर में किसान ऐसे काट रहे हैं ‘वनवास’

Mandsaur Opium Farmers: मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में किसान अफीम की फसल की रखवाली के लिए खेतों में चार महीने का वनवास काटते हैं. उनकी फसल को नीलगाय, चोर, और नशेड़ियों से बचाने के लिए उन्हें हर समय सावधान रहना पड़ता है. पढ़ें विशेष रिपोर्ट.

खतरों के बीच अफीम की खेती, न दिन का चैन न रात की नींद,  मंदसौर में किसान ऐसे काट रहे हैं ‘वनवास’
अफीम की खेती

MP Opium Farming: मध्य प्रदेश के मंदसौर जिले में इन दिनों कुछ खेत ऐसे हैं, जिन्हें देखकर लगेगा मानो कोई परिवार पिकनिक मनाने आया हो. खुले आसमान के नीचे एक पलंग, उस पर बिछा बिस्तर, पास ही चूल्हा सुलगता है, जिसमें सब्जी बन रही है लेकिन हकीकत पिकनिक से कोसों दूर है.   

यह हाल है बसंतीलाल और उनके परिवार का, जो पिछले एक महीने से अपने खेत में डेरा डाले बैठे हैं. कारण सिर्फ एक अफीम की फसल की रखवाली. खेतों के बीच चूल्हा, उसपर खाना.... आप कहेंगे इसमें अलग क्या है? मंदसौर के सैकड़ों किसान साल दर साल इसी तरह अपने खेतों में चार महीने का अनौपचारिक वनवास काटते हैं. न दिन का चैन, न रात की नींद, बस हर समय नजर खेत पर. 

बसंतीलाल की अफीम की फसल अब अपने अंतिम चरण में है. पारंपरिक विधि से चीरा लगाकर अफीम निकाल चुके हैं, लेकिन खेत में जो डोडा बचा है, उसमें अभी सबसे कीमती हिस्सा खसखस आना बाकी है. और इसी खसखस के लिए जोखिम भी सबसे ज्यादा है. 

रिस्की है काम

किसान बसंतीलाल बताते हैं, “रिस्की काम है ना साहब, मेहनत बहुत करना पड़ता है, महीने भर से यही हैं पूरे समय रहता है.” कई बार रात में नीलगाय आ जाती है, चोर हर वक्त घात में रहते हैं, तीसरा रात को घूमते नशेड़ियों तक हर ओर से किसान की फसल खतरे में है. सूखा डोडा, जिसमें खसखस होता है, नशे के लिए भी उपयोग होता है, और बाजार में इसकी कीमत भी अच्छी मिलती है. इसलिए ये फसल कानून के दायरे में भी है और अपराधियों की नजरों में भी. शासन इन डोडों को खरीदता है और चूरा को नष्ट करने का निर्देश भी देता है लेकिन खसखस का स्वामित्व किसान के पास ही रहता है, और यही उनकी आमदनी का महत्वपूर्ण हिस्सा बनता है. 

बसंतीलाल की पत्नी खेत में रखवाली करने को लेकर कहती हैं, “रहना पड़ता है, नजर रखनी पड़ती है नहीं तो नुकसान हो जाएगा, 3-4 महीने तो रहना पड़ता है, रेगुलर रहना पड़ता है. 

कुलमिलाकर अफीम की फसल कितनी मेहनत से किसान पैदा करते हैं ये सहज समझा जा सकता है. वे एक बच्चे की तरह देखभाल करते हैं. 

पढ़ाई छोड़कर खेत में किसान का बेटा

बसंतीलाल का बेटा, जो अभी स्कूल में है, इस वक्त पढ़ाई छोड़कर खेत में चूल्हा जलाने और डंडा लेकर निगरानी करने में मदद करता है. हर झोंका, हर सरसराहट, हर परछाईं शक के घेरे में है. किसान अपने खेतों की रखवाली एक नवजात शिशु की तरह करते हैं. जैसे जरा-सी लापरवाही उनके पूरे साल की मेहनत को मिट्टी में मिला सकती है. 

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