Chitrakoot Diwali Deepdaan: भगवान राम (Shri Ram) की जन्मभूमि अयोध्या (Ayodhya Diwali) में जिस तरह दीपोत्सव का काफी महत्व है. ठीक उसी तरह से उनकी तपोभूमि चित्रकूट (Chitrakoot Dham) का भी महत्व है. कहा जाता है कि अयोध्या में लोगों ने प्रभु राम की वापसी की खुशी और स्वागत में दिए जलाए थे. जबकि लंका विजय के बाद प्रभु श्रीराम ने चित्रकूट में स्वयं मंदाकिनी नदी (Mandakini River) पर दीपदान (Deepdan) किया था. यही वजह है कि चित्रकूट में पांच दिन तक दीपोत्सव होता है. धनतेरस से मेला शुरू होता है और भाई दूज पर समापन होता है. दीपावली पर मंदाकिनी नदी पर टिमटिमाते दीये लोगों के आकर्षण का केंद्र बनते हैं.
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देश भर से पहुंचते हैं श्रद्धालु
देश के कोने-कोने से आने वाले लाखों श्रद्धालु मंदाकिनी नदी में दीपदान कर समृद्धि का वरदान मांगते हैं. ऐसी मान्यता है कि वनवास काल में साढ़े 11 साल चित्रकूट में गुजारने वाले प्रभु श्रीराम अब भी यहां के कण-कण में हैं. उनके प्रसाद के रूप में कामदगिरि के चार प्रवेश द्वारों पर कामतानाथ स्वामी विराजमान हैं. लंका विजय के बाद भगवान ने ऋषि-मुनियों के साथ मंदाकिनी नदी में दीपदान कर सबका आभार जताया था, फिर अयोध्या गए थे.
Step into the spiritual vibes of Chitrakoot, where Deepotsav lights up the soul for five magical days, from Dhanteras to Govardhan Pooja. Witness a celebration where tradition meets divinity. Dive into the devotion of Shri Ram and experience timeless grace.
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मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित पावन चित्रकूट धाम अवश्य पधारें
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चित्रकूट मंदाकिनी नदी के किनारे पर बसा भारत के सबसे प्राचीन तीर्थस्थलों में एक है। यहां प्रभु श्रीराम ने माता सीता और लक्ष्मण के साथ वनवास के साढ़े ग्यारह वर्ष बिताए थे।#DekhoApnaDesh #MadhyaPradesh @MPTourism pic.twitter.com/LuuIei6TdU
लोक संस्कृति के भी होते हैं दर्शन
मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश की सीमा पर चित्रकूट तीर्थ क्षेत्र में आयोजित होने वाले पांच दिवसीय दीपदान मेला में लोक संस्कृति और अनेकता में एकता की झलक दिखाई पड़ती है. मेला के दौरान होने वाले आयोजन लोक परंपराओं पर आधारित होते हैं, जो लोगों की परंपरागत लोक कलाओं के दर्शन कराते हैं.
खास होता है दीवाली नृत्य
इस साल भी दीपदान मेला में सांस्कृतिक रंग देखने को मिल रहे हैं. बुंदेलखंड के प्रसिद्ध लोकनृत्य दिवारी की धूम रही. दीपावली के दूसरे दिन पूरा मेला क्षेत्र बेहद खूबसूरत नजर आ रहा है. मोर पंख और लाठी के साथ नृत्य करती टोली जगह-जगह बुंदेलखंड के लोकनृत्य से परिचय करा रही है.
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अंतिम दिन लगेगी गधों की बोली
दीपावली में मदाकिनी तट पर विशाल गधा मेला भी लगता है. इसमें एमपी समेत अलग-अलग प्रांतों के व्यापारी गधों को बेचने और खरीदने आते हैं. पांच दिन में यहां पर गधों की खरीद-बिक्री में करोड़ों रुपये का व्यापार होता है. यह मेला सतना जिला की नगर पंचायत नयागांव लगवाती है.
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