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दीपों के त्योहार में अंधेरे का एहसास! भिंड में एक परिवार के 10 सदस्य हैं जन्मजात दृष्टिहीन

दीपावली के त्योहार में भिंड के मुकुट सिंह के पुरा गांव में एक परिवार के 10 सदस्य जन्मजात दृष्टिहीन हैं. यह Blind family Bhind और Visually impaired children की कहानी पूरी तरह दिल छू लेने वाली है. तीसरी पीढ़ी तक अंधकार में जीने वाले इस परिवार की उम्मीद, आत्मसम्मान और संघर्ष को दर्शाती है.

दीपों के त्योहार में अंधेरे का एहसास! भिंड में एक परिवार के 10 सदस्य हैं जन्मजात दृष्टिहीन

Blind family Bhind: दीपावली रोशनी और खुशियों का त्योहार है, लेकिन भिंड जिले के मुकुट सिंह के पुरा गांव में रहने वाले एक परिवार के लिए यह दिन हर साल की तरह फिर वही अंधेरा और बेबसी लेकर आया. जहां दुनिया दीयों से जगमगा रही थी, वहीं यह परिवार दूसरों की मदद और दया पर जीवन बिताने को मजबूर है, क्योंकि उनके घर में कुल 10 लोग जन्म से दृष्टिहीन हैं.

तीन पीढ़ियों तक पहुंचा अंधकार

रामशरण सिंह और उनकी पत्नी सरस्वती दोनों ही जन्मजात नेत्रहीन हैं. उनकी चारों बेटियां चांदनी, अंकिता, रचना और पूजा भी नेत्रहीन हैं. समाजसेवियों की मदद से तीन बेटियों की शादी तो हो चुकी है, लेकिन दुर्भाग्य यहीं खत्म नहीं होता. चांदनी और अंकिता के दो-दो बेटे भी आंखों की रोशनी से वंचित हैं. यानी इस परिवार में अंधकार सिर्फ एक किस्मत नहीं, बल्कि एक पीढ़ीगत विरासत बन चुका है.

सरकारी मदद से बना घर 

कभी टूटी-फूटी झोपड़ी में रहने वाला यह परिवार अब तत्कालीन कलेक्टर इलैया राजा टी की मदद से बने पक्के घर में रहता है. लेकिन घर बनने भर से हालात नहीं बदले. दीपावली हो या रोज़मर्रा, उनका हर काम किसी न किसी के सहारे ही चलता है. सरस्वती बताती हैं कि जब उनकी सास थीं, तो पूजा हो जाती थी… अब तो दीपक जलाना भी अपने बस की बात नहीं.

दीपावली पर भी अनिश्चितता की छाया

दीपावली की सुबह NDTV की टीम जब उनके घर पहुंची, तो सरस्वती झाड़ू लगा रही थीं. एक कोने में मिठाई तो रखी थी, पर यह तय नहीं था कि पूजा भी होगी या नहीं. पति घर लौट रहे थे दोनों ने एक-दूसरे को देखने से नहीं, बल्कि आहट से पहचाना. यह दृश्य जितना शांत था, उतना ही मार्मिक भी.

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आंखें नहीं, पर उम्मीद अब भी जिंदा है

सरस्वती कहती हैं कि "हम रोशनी नहीं देख सकते, पर विश्वास है कि भगवान एक दिन सच्ची दीपावली दिखाएंगे.” यह परिवार अंधकार में जरूर जी रहा है, लेकिन दिलों में उम्मीद, भावनाओं में पवित्रता और आत्मसम्मान अब भी पूरी शिद्दत से जिंदा है.

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