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MP Police: जेलर, TI,कॉस्टेबल और डॉक्टर पर चलेगा हत्या का केस! 2015 में पुलिस कस्टडी में हुई थी कैदी की मौत

Bhopal Prisoner Death Case: भोपाल में साल 2015 में पुलिस हिरासत में 22 साल के मोहसिन नाम के युवक की मौत हो गई थी, लेकिन प्रशासन ने सच्चाई छुपाने की कोशिश की. इतना ही नहीं डॉक्टर से झूठी रिपोर्ट बनवाकर मृत मोहसिन को मानसिक रोगी बताकर ग्वालियर रेफर कर दिया था.

MP Police: जेलर, TI,कॉस्टेबल और डॉक्टर पर चलेगा हत्या का केस! 2015 में पुलिस कस्टडी में हुई थी कैदी की मौत

Bhopal Police custody Prisoner Death Case: मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में साल 2015 में पुलिस कस्टडी में 22 साल के मोहसिन नाम के युवक की मौत के मामले में टीआई, जेलर, 5 पुलिसकर्मी और एक डॉक्टर की मुश्किलें बढ़ गई हैं. अपर सत्र न्यायाधीश प्रीति साल्वे ने इन सभी की रिवीजन याचिका खारिज कर दी है. अब इनके खिलाफ हत्या, साक्ष्य मिटाने और आपराधिक षड्यंत्र के आरोप में केस चलेगा. 

मोहसिन की मौत मामले में 8 लोगों पर लगाईं थीं आपराधिक धाराएं

मोहसिन की मौत के बाद परिजनों ने कोर्ट में प्राइवेट शिकायत दर्ज कराई थी. न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रथम श्रेणी आशीष मिश्रा ने जांच के बाद 8 लोगों पर आपराधिक धाराएं लगाईं थीं.

मजिस्ट्रेट के आदेश को सत्र न्यायालय में दी थी चुनौती

आरोपियों में तत्कालीन टीटी नगर थाना प्रभारी मनीष राज भदौरिया, जेलर आलोक बाजपेयी, डॉ. आरएन साहू सहित घटना के वक्त क्राइम ब्रांच में पदस्थ आरक्षक मुरली, चिंरोजीलाल, दिनेश खजूरिया, अहसान, एएसआई डीएल यादव (अब रिटायर) शामिल हैं. सभी ने मजिस्ट्रेट के आदेश को सत्र न्यायालय में चुनौती दी थी, जिसे अब खारिज कर दिया गया है.

72 घंटे पहले ही हो गई थी मौत, शरीर पर चोटों के थे निशान

बता दें कि मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में साल 2015 में पुलिस हिरासत में 22 साल के मोहसिन नाम के युवक की मौत हो गई थी, लेकिन प्रशासन ने सच्चाई छुपाने की कोशिश की. डॉक्टर साहू से झूठी रिपोर्ट बनवाकर मोहसिन को मानसिक रोगी बताया गया और ग्वालियर रेफर कर दिया गया. वहां पहुंचने पर वो मृत घोषित हुआ. हालांकि पोस्टमार्टम रिपोर्ट में पता चला कि मौत 72 घंटे पहले ही हो चुकी थी. उसके शरीर पर कई चोटों के निशान थे. हाथ की कलाई, एड़ी पर रस्सी बांधने के निशान व प्राइवेट पार्ट में सूजन भी पाई गई थी.

14 लोगों ने दी थी गवाही

इस मामले में कोर्ट में कुल 14 लोगों ने गवाही दी थी. जिसमें 11 गवाह सरकारी कर्मचारी थे, जबकि 2 परिजन और एक साथी कैदी.

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