
Bhopal Municipal Corporation: कहते हैं,जहां चाह होती है,वहां राह निकल ही आती है...भोपाल नगर निगम ने भी कचरे में कमाई की राह तलाश ली है. ये एक पंथ दो काज वाली कहावत जैसी बात है. दरअसल भोपाल नगर निगम घाटे में चल रहा है और पैसा कमाने का हर मुमकिन प्रयास कर रहा है. इसी के तहत जो कपड़ा वेस्ट की श्रेणी में आता है निगम उसे डोर टू डोर जाकर इकट्ठा करेगा...चाहे वो घर हो या मंदिर...सभी जगह से फिर उसे रिसाइकल करके तरह-तरह के प्रोडक्ट बनाएगा.
नगर निगम से इसके लिए बकायदा एक कंपनी से समझौता भी किया है जो अगले 10 साल तक लगातार इस काम को अंजाम देगी. अच्छी बात ये है कि निगम ने ये काम स्वच्छता सर्वेक्षण शुरू होने से पहले ही किया है ताकि स्वच्छता का सिरमौर बनने का भी सपना पूरा हो सके.यानि अब तक आप जिन कपड़ों को बेकार समझकर कचरे में फेंक देते हैं भोपाल नगर निगम ने उसी से कमाई का रास्ता निकाल लिया है. अपने इस स्वच्छता अभियान के लिए निगम ने मंत्र बनाया है- "रिड्यूस, रीयूज़ और रीसाइकल".

बता दें कि मध्यप्रदेश में पहली बार किसी नगर निगम ने ये पहल की है. जिसके तहत पुराने कपड़ों को ट्रीट कर धागे, खिलौने और भी कई चीजें बनाने का काम शुरू कर दिया गया है. इसका दोहरा फायदा होगा-पर्यावरण बचेगा, और निगम की तिजोरी भी भरेगी. नगर निगम के कमिश्नर हरेंद्र नारायण का कहना है कि इससे एक तो रेवेन्यू तो जनरेट होगा ही साथ ही प्रदूषण भी कम होगा.

भोपाल: प्लांट में कपड़ों को अलग-अलग गठरियों में तैयार करती महिलाएं
इसके लिए ग्रेडेन नाम की कंपनी से समझौता करके बकायदा प्लांट भी स्थापित किया गया है. कंपनी के डायरेक्टर नवनीत गड़के के मुताबिक उनकी कंपनी बेकार कपड़ों को ट्रीट करती है. इनसे सॉफ्ट टॉय थ्रेड और कॉटन बनाती है. वे बताते हैं कि अगले दस सालों में विभिन्न प्रोडक्ट बनाने है। हम नगर निगम से कपड़े लेंगे और उसके निर्धारित अमाउंट देंगे. प्लांट में काम कर रही है मजदूर रेखा नागले ने बताया- मैं रोज सुबह 10 से 5:30 तक काम करती हूं. प्रतिदिन कपड़ों को अलग अलग कर 60 से ज़्यादा गठरियां तैयार करती हूं. हर दिन यहां टनों के हिसाब से कपड़े आते हैं. अब देखना ये है कि नगर निगम की ये कवायद किस हद तकशहर की आबोहवा बदलने में सफल होती है.
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