मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में 2 दिसंबर 1984 की सर्द रात... वो काली रात थी जिसने न सिर्फ हजारों लोगों की जान ले ली बल्कि त्रासदी के 39 साल बाद भी यह जिंदा बचे लोगों को एक भयंकर सपने की तरह याद आती है. 2 और 3 दिसंबर, 1984 को भोपाल के यूनियन कार्बाइड फैक्ट्री से निकली जहरीली गैस से हजारों लोग मौत के मुंह में समा गए. वहीं, 5 लाख से ज्यादा लोगों शारीरिक रूप से प्रभावित हुए. उस रात हुए धमाके में कई परिवार बेघर हुए... कितनों के दामन जले और कितनों ने अपने परिवारों को तड़प-तड़प कर मरते हुए देखा. हर तरफ चीख-पुखार मच गई.
उस खौफनाक रात के सालों बीत जाने के बाद भी लोग इस त्रासदी से हुई दुर्गति से उबर नहीं पाए हैं. भोपाल गैस रिसाव का दंश झेल रही 5000 से ज्यादा विधवा महिलाओं को आज भी समय पर पेंशन नहीं मिल पाती. इन्हें हर 2-4 महीनों के बाद अपने हक के पेंशन का फिर महीनों इंतज़ार करना पड़ता है. NDTV की टीम ने इन महिलाओं से बात की. हमसे बातचीत करते समय महिलाओं ने हादसे से मिले सितम बयां किए. NDTV के संवाददाता ने भोपाल की शकीला बी और मुन्नी बाई से बात की.
भोपाल गैस त्रासदी की पीड़ित शकीला बी के फेफड़ों में इतनी ताकत भी नहीं कि चूल्हा सुलगा लें... 30 साल पहले रिसी गैस से परिवार तबाह हो गया, पति को कैंसर हुआ, 14 साल पहले मौत हो गई. उनके घर में उज्जवला जैसे मुंह चिढ़ा रही है. लकड़ियां बिखरी पड़ी हैं. अंगूठे के निशानों ने भी धोखा दे दिया, सो सरकारी राशन भी रूठा है. ज्यादातर शकीला भूखे पेट ही जमीन पर चादर बिछाकर सो जाती हैं. पेंशन बुढ़ापे की लाठी थी. लेकिन सरकारी वादों से परे शकीला बी को सहारे की दरकार है.
सीने में घुटन लेकर जीने को मजबूर
जब आप शकीला बी की झोपड़ी को गौर से देखेंगे तब आपको शायद शकीला बी का दर्द महसूस होगा. शकीला 1 छोटे से झोपड़ी में ही रहती हैं. महीनों से पेंशन का पैसा अटका हुआ है. घर परिवार में कोई बचा रहा है तबीयत ख़राब रहती है. उन्हें 1 वक्त खाना भी नसीब नहीं होता हैं. शकीला बताती है कि पैसा आना बंद हो गया है. दो जोड़ी कपड़ों में वह जीवन निकाल रही हैं. घर में कोई नहीं है. सालों पहले पति की मौत हो चुकी है.
इसके बाद NDTV ने एक और घर की रुख किया. जेपी नगर में ही छोटे से घर में मुन्नी बाई रहती है. आज के मौसम में महंगाई ने कमर तोड़ दी है. तीन साल के पेंशन का पैसा आजतक अटका है. वो मिला नहीं है. दो महीने से वापिस पेंशन बंद है. पहले झाड़ू पोंछा कर काम चलता था, लेकिन अब शरीर ने साथ देना बंद कर दिया है.
मुन्नी बाई
गैस पीड़ित विधवाओं के आंसू साफ़ बताते हैं कि देश की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी के जख़्म अब तक भरे नहीं हैं. जख़्म रह-रहकर तब उभरने लगते हैं. सरकार किसी की भी हो लेकिन ये लाडली बहनें नहीं बन पातीं... अगर बनतीं तो कम से कम हक का पैसा वक्त पर जरूर मिलता. गैस पीड़ितों के मामले में BJP और कांग्रेस आपस में ही एक दूसरे को घेर रहे हैं. साल 2019 में पेंशन बंद होने को BJP ने मुद्दा बनाया था. मार्च 2020 में BJP की सरकार आई,फिर घोषणा हुई. घोषणाएं होती रही पर पूरी कभी नहीं हुई. ना कांग्रेस ने एक सवाल उठाया.