
MP News in Hindi: मध्य प्रदेश का भिंड - ग्वालियर नेशनल हाईवे (Bhind - Gwalior National Highway) 719 मौत को लोग मौत का हाईवे कहने लगे हैं.इसको 6 लेन बनाने की मांग को लेकर भाजपा नेताओं ने आश्वासन भी दिया था. इससे साधु-संतों का अखंड आंदोलन स्थगित जरूर हो गया, लेकिन स्थिति अभी भी जस की तश बनी हुई है. हाईवे पर आए दिन सड़क हादसों में लोगों की जाने जा रही हैं. इन हादसों से कई लोगों के घर उजड़ गए हैं.

भिंड के पास हाईवे पर आए दिन होती हैं दुर्घटनाएं
इटावा से ग्वालियर को जोड़ती है हाईवे
ग्वालियर से भिंड से होते हुए यूपी के इटावा जिले को जोड़ने वाले इस हाइवे का ज्यादातर हिस्सा टू लेन है. इसकी वजह से यहां आए दिन सड़क दुर्घटना होती है. साल 2024 में इस हाईवे पर 683 घटनाओं में 218 लोगों की जान चली गई थी. लेकिन, राजनेता और अधिकारियों ने इन हादसों पर चुप्पी साधी है. दो महीने पहले हाईवे पर एक शादी समारोह में आया परिवार लोडिंग गाड़ी में बैठकर अपने घर बापस जा रहा था. तभी तेज डंफर ने टक्कर मार दी थी. इसमें सात लोगों की मौत हो गई थी. 20 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे.
संतों ने की थी हाईवे चौड़ा करने की बात
इन हादसे को लेकर संत समाज आगे आया. संतों ने हाईवे को सिक्स लेन बनाने के लिए कई नेताओं से मुलाकात की और कई प्रदर्शन भी किए. लेकिन, सफलता नहीं मिली. इससे आक्रोशित होकर संत समाज अनिश्चितकालीन धरने पर बैठ गए. इस दौरान संतों ने भूख हड़ताल शुरू की, जिसमें तीन संतों की तबीयत खराब हो गई थी. 10 दिन चले इस आंदोलन में नेताओं के आश्वासन के बाद संतों ने अपना धरना स्थगित कर दिया. नेताओ ने संतों को 6 लेन तो नहीं, फोर लेन बनाने की प्रक्रिया शुरू हो गई है.
हाईवे पर हादसों की वजह
एनडीटीवी ने चंबल पुल से भिंड जिला मुख्यालय तक 20 किमी का सफार तय किया. इसमें पता लगा कि ये हाईवे नहीं, सिंगल रोड है. चंबल पुल मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सीमा को जोड़ता है. एनडीटीवी ने हाईवे की पड़ताल इसी पुल से शुरू की. चंबल पुल की चौड़ाई ज्यादा नहीं है. यहां सड़क काफी संकरी हो जाती है. जब पुल के दोनों तरफ से ट्रक या भारी वाहन गुजरते हैं, तो दोनों गाड़ियों के बीच बहुत कम स्पेस रहता है. चंबल पुल से मालनपुर तक 80 किमी हाईवे पर हर दो से तीन किलोमीटर की दूरी पर कोई न कोई गांव या कस्बा पड़ता है.
खास बात ये है कि इस हाईवे से चार विधानसभा क्षेत्र अटेर, भिंड, मेहगांव, गोहद भी जुड़े हुए हैं. इसके बाद भी हाईवे पर न पर्याप्त साइन बोई है, न ही डिवाइडर है. हाईवे पर दो-तीन साल पहले तक 16 डेंजर पॉइंट थे. प्रशासन का दावा है कि इनमें से 11 डेंजर पॉइंट को सुधार दिया गया है. यानी, अब केवल 5 डेंजर पॉइंट बचे हैं. लेकिन, एनडीटीवी की पड़ताल में सामने आया कि यहां हादसे थमे नहीं है.
एक हाइवे पर 6 डेंजर प्वाइंट
- पहला डेंजर पॉइंट - निबुआ की चौकी जो चंबल पुल से भिंड के रास्ते में पड़ती है. दोनों ओर से सीधी सड़कों का हाईवे से जुड़ाव है, लेकिन न कोई साइन बोर्ड है और न सुरक्षा संकेत. अचानक आने वाले वाहन अक्सर हादसों का कारण बनते हैं. भदाकुर मोड़ से लेकर मुख्य बाजार तक कई गंभीर हादसे हो चुके हैं.
- दूसरा डेंजर पॉइंट - कनकूरा से डिडी पुल तक है. यहां गांवों के रास्ते सीधे हाईवे से जुड़ते हैं, जिससे तेज रफ्तार में चल रहे वाहन टकराते हैं. क्वांरी पुल पर ब्रेकर और संकेतक मौजूद हैं. बावजूद हादसे हो रहे हैं.
- तीसरा डेंजर पॉइंट - भिंड बटालियन से सुभाष तिराहा तक एक साल में तेज रफ्तार के कारण यहां तीन से चार लोगों की जान जा चुकी है.
- चौथा डेंजर पॉइंट - दबोहा मोड़ है. यहां वाहन हाईवे पर सीधे चढ़ते हैं. स्पीड ब्रेकर और साइन बोर्ड होने के बावजूद हादसे लगातार हो रहे हैं.
- पांचवा डेंजर पॉइंट - लावन मोड़ और बरोही गांव हैं. यहां रिहाइशी इलाके होने के कारण हादसे होने की बात सामने आई.
- छठवां डेंजर पॉइंट - मेहगांव क्षेत्र. यहां सड़क चौड़ी की गई है. बस स्टैंड बनाए गए हैं और सेफ्टी जाली भी लगाई गई है. बावजूद इसके दुर्घटनाओं की रफ्तार नहीं थमी है.
हाईवे पर मौत के आंकड़े
भिंड ट्रैफिक पुलिस के आंकड़ों की मानें, तो ग्वालियर-इटावा हाईवे पर पिछले तीन सालों में 2014 हादसे हुए, इनमें 611 लोगों की मौत हुई. साल 2022 में कुल 712 हादसे हुए, जो 2023 में घटकर 619 रह गए. लेकिन, 2024 में फिर से बढ़कर 683 तक पहुंच गए. हाईवे से रोजाना 20 हजार से ज्यादा वाहन गुजरते हैं.
ट्रैफिक थाना प्रभारी ने कही ये बात
ट्रैफिक थाना प्रभारी राघवेंद्र भार्गव कहते हैं कि हम समय-समय पर जागरूकता अभियान चलाते हैं. लोगों को बताते हैं कि हाईवे पर चलते समय कौन सी सावधानियां रखें. जो नियमों को तोड़ते हैं उनके खिलाफ कार्रवाई भी करते हैं. देखा गया है कि दो पहिया वाहन चालक बिना हेलमेट के ही हाईवे पर गाड़ी चलाते हैं.
ये भी पढ़ें :- MP Road Accident: खरगोन में भीषण हादसा, दो मोटरसाइकिल की आपस में टक्कर, 3 की मौत, दो लोग घायल
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
एक्सपर्ट की मानें, तो इस हिस्से पर ट्रैफिक बहुत अधिक है. इस हाईवे का अधिकांश हिस्सा अनडिवाइडेड है. बीच में कोई डिवाइडर नहीं है. ऐसी स्थिति में कैपेसिटी के अनुसार, फोरलेन या सिक्सलेन करना सबसे सही रहेगा. इसके अलावा, देखा गया है कि जो रिहायशी क्षेत्र हैं, वहां टू-व्हीलर्स के हादसे बहुत ज्यादा होते हैं, जिसमें मौत तक हो जाती है. जरूरी है कि ऐसी जगहों पर सर्विस लेन का प्रावधान हो, जिससे उस इलाके के लोग हाईवे को आकर न मिलें.
ये भी पढ़ें :- Pahalgam Terror Attack: 'सख्ती से लागू होंगे गृह मंत्रालय के नियम', पहलगाम हमले के बाद सीएम यादव का पुलिस महकमे के साथ समीक्षा बैठक