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जिला पंचायत में महिलाओं का वर्चस्व, दूसरी बार महिला बनी अध्यक्ष, आकांक्षा ने संभाली जिम्मेदारी

Baladoa Bazar News: बलौदा बाजार जिला पंचायत चुनाव में 18 में से 10 महिलाएं निर्वाचित हुई हैं. इस बार महिलाओं का वर्चस्व अलग ही नजर आया है.

जिला पंचायत में महिलाओं का वर्चस्व, दूसरी बार महिला बनी अध्यक्ष, आकांक्षा ने संभाली जिम्मेदारी

Chhattisgarh News: बलौदा बाजार जिला पंचायत चुनाव में इस बार महिलाओं का प्रभाव साफ दिखा, क्योंकि 18 निर्वाचित सदस्यों में से 10 महिलाएं हैं. इससे पंचायत में महिला नेतृत्व को मजबूती मिलने की उम्मीद है. आकांक्षा गोलू जायसवाल को अध्यक्ष और पवन साहू को उपाध्यक्ष चुना गया है. आकांक्षा जायसवाल ने मंगलवार को शपथ ग्रहण कर पदभार की जिम्मेदारी ली.

महिलाओं के बढ़ते वर्चस्व के साथ जिला पंचायत में विकास और कल्याणकारी योजनाओं को प्राथमिकता देने की संभावना बढ़ गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाओं के अधिकारों, शिक्षा, स्वास्थ्य और आजीविका से जुड़े मुद्दों पर अब अधिक प्रभावी निर्णय लिए जा सकते हैं. इस बार के चुनाव में महिलाओं की भागीदारी ने प्रशासनिक ढांचे में एक नया आयाम जोड़ा है. आकांक्षा गोलू जायसवाल के अध्यक्ष बनने के साथ ही जिला पंचायत में 18 में से 10 महिलाओं का चुना जाना इस बदलाव की झलक दिखाता है.

महिला सदस्यों की सूची

आकांक्षा गोलू जायसवाल (अध्यक्ष), गीता डोमन वर्मा, इंदू जांगड़े, अंजली विमल साहू, प्रेमलता बालेश्वर वैष्णव, दामिनी कुजांम, गायत्री बेदराम बरिहा, सुनीता विमल देवांगन, शशि आनंद बंजारे, दीप्ती गोविंद वर्मा 

पुरुष सदस्यों की सूची

पवन साहू (उपाध्यक्ष), डॉ. मोहन लाल वर्मा, ईशान वैष्णव (बिट्टू), राजा जायसवाल, अमर कुमार ध्रुव, महेंद्र मोनू साहू, रवि बंजारे, शैलेन्द्र बंजारे हैं.

नई पंचायत की प्राथमिकताएं

अध्यक्ष आकांक्षा जायसवाल ने कहा कि उनकी प्राथमिकता ग्रामीण विकास, महिलाओं के लिए स्वरोजगार के अवसर बढ़ाना और शिक्षा व स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करना है. सभी के सहयोग से क्षेत्र का विकास करेंगे. जनता का मदद करेंगे, सरकार की सभी योजनाओं को जनता तक पहुंचाने का प्रयास करेंगे. उपाध्यक्ष पवन साहू ने भी पंचायत के विकास कार्यों को गति देने का आश्वासन दिया.

राजनीतिक समीकरण और चुनौतियां

महिला नेतृत्व के उभरने से यह भी देखा जाना बाकी है कि प्रशासनिक और राजनीतिक स्तर पर इसका क्या प्रभाव पड़ेगा. पंचायत में विभिन्न विचारधाराओं के प्रतिनिधि होने के कारण विकास कार्यों में सामंजस्य बैठाने की चुनौती भी होगी. वर्तमान समय में देखने को मिल रहा है कि महिलाएं चुनाव में निर्वाचित होकर आ तो जाती हैं लेकिन काम करने की बड़ी जब आती है तो उनके पति बेटे और घर के पुरुष ही पूरी जिम्मेदारी निभाते हैं. महिला जनप्रतिनिधि चूल्हा चौका पर ही रह जाती है. इस नए बदलाव के बाद अब देखना होगा कि प्रतिनिधि बनाने का सिलसिला खत्म होता है या पूर्व की भांति बरकरार रहता है.

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