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Atal Bihari Vajpayee Jayanti: अटल जी से जुड़े ये किस्से जानकार रह जाएंगे दंग

अटल बिहारी वाजपेयी एक विराट व्यक्तित्व के धनी थे. सत्ता पक्ष और विपक्ष ने उन्हें हमेशा पूरा सम्मान दिया. उनके प्रधानमंत्री कार्यकाल में अनेकों ऐतिहासिक कार्य हुए हैं. सफल परमाणु परीक्षण भी उनके कार्यकाल की देन है. पूर्व प्रधानमंत्री सिर्फ जननेता ही नहीं बल्कि एक प्रखर वक्ता और ओजस्वी कवि भी थे.

Atal Bihari Vajpayee Jayanti: अटल जी से जुड़े ये किस्से जानकार रह जाएंगे दंग

Atal Bihari Vajpayee Jayanti: भारत रत्न और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी (Atal Bihari Vajpayee) की इस साल 25 दिसंबर को 100वीं जयंती है. अटल बिहारी वाजपेयी भारतीय राजनीति के ध्रुव तारा तो थे ही साथ ही अजातशत्रु भी थे. अटल बिहारी वाजपेयी का पूरे देशभर में धूमधाम से जयंती मनाई जाती है. हालांकि ग्वालियर में उनकी जयंती बेहद खास तरीके से मनाई जाती है, क्योंकि ग्वालियर उनका जन्म स्थल है. इसलिए अटल बिहारी वाजपेयी की जयंती को मध्य प्रदेश के ग्वालियर में ग्वालियर गौरव दिवस के रूप में मनाया जाता है. बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी ग्वालियर से हीं पढ़ाई की थी. साथ ही उन्होंने  ग्वालियर से सियासत और साहित्य का ककहरा सीखा था. मध्यप्रदेश के ग्वालियर में पूर्व प्रधानमंत्री दिवंगत अटल बिहारी वाजपेयी का पैतृक घर शिक्षा का केंद्र बन गया है, जहां पिछले कुछ वर्षों से स्थानीय बच्चों को मुफ्त कंप्यूटर शिक्षा दी जा रही है और उनकी याद में एक पुस्तकालय भी है.

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इतना ही अटल बिहारी वाजपेयी के जेहन में ग्वालियर के लड्डू और मंगोड़े का स्वाद और मेले की रौनक आखिरी सांस तक जीवंत रही. अविवाहित रहे अटल बिहारी ने अपना घर गरीब बच्चों को कम्प्यूटर सिखाने की संस्था को समर्पित कर दिया था. बहादुरा स्वीट्स के मालिक विकास शर्मा ने बताया, 'वाजपेयी को खाने-पीने का बहुत शौक था. बहादुरा के लड्डू और चाची के मंगोड़े उन्हें बेहद पसंद थे. जब भी कोई ग्वालियर से दिल्ली जाता था, तो उनके लिए ये दोनों व्यंजन ले जाना नहीं भूलता था.'

अटल बिहारी का परिवार कहां रहता था?

अटल बिहारी वाजपेयी का परिवार ग्वालियर के शिंदे की छावनी इलाके की एक संकरी गली कमलसिंह का बाग में रहता था. इसी इलाके में उनका बचपन बीता जिसके किस्से वो गाहे बगाहे अपने भाषणों, गोष्ठियों में सुनाते रहते थे. ग्वालियर के गोरखी स्कूल में उन्होंने इंटर तक की पढ़ाई की. उसके बाद उन्होंने ग्रेजुएशन की पढ़ाई विक्टोरिया कॉलेज (वर्तमान एमएलबी कॉलेज) से किया था. इसी दौरान वो राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के संपर्क में आये और अपना जींवन अविवाहित रहकर उसे सौंपने का निर्णय कर प्रचारक हो गए. इतना ही नहीं उन्होंने ग्वालियर से साहित्य और पत्रकारिता का ककहरा भी सीखा और फिर भारतीय साहित्य और राजनीति के अजातशत्रु व्यक्तित्व बनकर अनुकरणीय बनकर स्थापित हो गए.

क्या आप जानते हैं ये किस्से?

  • कारगिल युद्ध के बाद अटलजी को उनके कुछ मंत्रियों ने कहा, "हम आपको भारत रत्न देना चाहते हैं." अटलजी ने डांटते हुए कहा, "मैं खुद को भारत रत्न दे दूं क्या? भविष्य में किसी सरकार को लगेगा तो वो देगी, मैं खुद को नहीं दूंगा."
  • चुनाव हारकर फिल्म देखने चले गए थे. दिल्ली में नयाबांस का उपचुनाव था. आडवाणी और अटल ने काफी मेहनत की थी, लेकिन चुनाव हार गए. तब अटलजी ने आडवाणी से कहा कि चलो, कहीं सिनेमा देख आएं.
  • अटल जी पैदल ही संसद जाते-आते थे.
  • अमेरिका दौरे के वक्त फुर्सत के पलों में वे ग्रैंड कैनियन और डिज्नीलैंड जा पहुंचे. बाल सुलभ कौतूहल के साथ लाइन में लगे. टिकट खरीद कर राइड्स का आनंद लिया.

गरीब बच्चों को घर समर्पित

अटल बिहारी वाजपेयी ने ग्वालियर के कमलसिंह के बाग में स्थित जिस मकान में उनका बचपन बीता प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने इस पैतृक मकान में मिले अपने हिस्से में गरीब बच्चों के लिए एक कंप्यूटर ट्रेनिंग सेंटर खुलवाकर उसे दे दिया जिसके एक मंजिल पर पुस्तकालय और वाचनालय चलता है, जबकि प्रथम तल पर गरीब बच्चों के लिये कम्प्यूटर क्लासेस. यहां पढ़ने वाले बच्चे कहते हैं कि हम गौरवान्वित महसूस करते है कि हम यहां सीखने आते हैं, जहां भारत रत्न अटल जी पैदा हुए और उनका बचपन यहां बीता.

गोरखी स्कूल की प्रधानाचार्य राजबाला माथुर ने कहा, 'दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी बचपन से ही एक प्रतिभाशाली छात्र और अच्छे लेखक थे. उनके शब्दों का जादू उनके स्कूली दिनों से ही स्पष्ट था और यह स्कूल के शिक्षकों द्वारा बताया गया था.' प्रधानाचार्य ने कहा कि स्कूल अब पूरी तरह से बदल गया है और 'स्मार्ट' बन गया है, जहां छात्रों को ब्लैकबोर्ड के बजाय डिजिटल बोर्ड पर पढ़ाया जा रहा है। लेकिन आज भी स्कूल से जुड़ी वाजपेयी की यादें देखी जा सकती हैं. उन्होंने कहा, 'मैं भाग्यशाली हूं कि मैं उस स्कूल में काम कर रही हूं जहां भारत रत्न और देश के पूर्व प्रधानमंत्री ने पढ़ाई की. स्कूल में उनके जैसे कई छात्र हैं जो बहुत ही होनहार और ऊर्जावान हैं; जो वर्तमान परिस्थितियों के साथ-साथ सुंदर चीजों का वर्णन करने के लिए खुद को काव्यात्मक तरीके से व्यक्त करते हैं.” उन्होंने कहा कि यह कहना गलत नहीं होगा कि स्कूल के छात्रों के बीच कहीं न कहीं उनकी उपस्थिति महसूस की जा सकती है. माथुर ने कहा कि उनकी जयंती भी हर साल यहां मनाई जाती है.

इसी तरह, कमल सिंह का बाग इलाके में स्थित वाजपेयी का पैतृक घर उनकी यादों को संजोए हुए है और उनके सपने को साकार कर रहा है. आज भी पूर्व प्रधानमंत्री के पिता की याद में छात्रों को मुफ्त कंप्यूटर शिक्षा दी जा रही है. शिक्षिका ज्योति पांडे ने कहा कि इसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं. उन्होंने कहा, 'घर में पुस्तकालय भी है और छात्रों के लिए कंप्यूटर इंस्टीट्यूट भी है. इसमें एक रीडिंग रूम है, जहां लोग देश-दुनिया की ताजा खबरें जान पाते हैं. कई साल बीत गए, लेकिन आज भी उनके घर में वाजपेयी के व्यक्तित्व की झलक देखने को मिलती है, जो उनके जीवन से जुड़ी कई कहानियां बयां करता है. उनकी जिंदगी सादा जीवन और उच्च विचार का उदाहरण थी.'

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ग्वालियर के आम लोगों की तरह अटल बिहारी खाने के बड़े शौकीन थे. वो ग्वालियर आएं और बहादुरा के प्रसिद्ध लड्डू और फुटपाथ पर बैठकर मंगौड़े बनाकर बेचने वाली अम्मा के मंगोड़े न खाए ये तो होता ही नहीं था. उनके करीब रहे लोग बताते हैं कि सांसद और राष्ट्रीय नेता होने के बावजूद अचानक बिना बताए कभी भी सिर्फ लड्डू और मंगोड़े खाने ग्वालियर आ जाते थे. जब प्रधानमंत्री बने थे तो वे ग्वालियर से लड्डू मंगवाते थे. खासकर उनके जन्मदिन की पार्टी में ये लड्डू होते ही थे.
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इस दुकान के मालिक का कहना है कि जब मैं बहुत छोटा था तो अटल बिहारी विपक्ष के नेता थे. तब हमारी दुकान पर काफी आया जाया करते थे. बाद में जब उनके भांजे अनूप मिश्रा दिल्ली जाते थे, खासकर उनके जन्मदिन पर तो वो यहां से लड्डू जरूर लेकर जाते थे. इसी तरह जब अटल जी पीएम बनने के बाद एक बार अपना जन्मदिन मनाने ग्वालियर आये थे तो उन्होंने सभी से मुलाकात की, लेकिन मंगौड़े वाली अम्मा और बहादुरा लड्डू वालों को खासतौर पर मिलने के लिए आमंत्रित किया था. 

ग्वालियर के मेला देखने के बड़े शौकीन थे अटल जी

ग्वालियर में आज 25 दिसम्बर से ग्वालियर व्यापार मेला की शुरुवात हो रही है. ये मेला लगभग सवा सौ साल पहले से लगता चला आ रहा है. जाहिर है उस दौर में मेला ही मनोरंजन का एकमात्र साधन हुआ करता था. अटल बिहारी भी बचपन से ही परिवार के साथ मेला घूमने तांगा से पहुंचते थे, लेकिन उनका ये शौक ताउम्र वैसा ही रहा. वो भले ही किसी भी पद पर रहे हों लेकिन मेला घूमना नहीं भूलते थे.

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उनके नजदीकी रहे और ग्वालियर व्यापार मेला प्राधिकरण के अध्यक्ष रह चुके वयोवृद्ध भाजपा नेता राज चड्ढा बताते हैं कि अनेक बार तो ऐसा होता था कि बगैर प्रशासन को सूचना दिए अचानक दिल्ली से मेला घूमने ग्वालियर आ जाते थे. स्टेशन से सीधे मेला पहुंच जाते थे और जब तक लोगों में इस बात का शोर होता था कि अटल बिहारी झूला झूल रहे हैं... मूंगफली खरीद रहे थे.. तब नेता और प्रशांसन उन्हें ढूंढने पहुंचते थे, लेकिन तब तक वो ट्रेन पकड़कर वापिस दिल्ली लौट जाते थे. चड्ढा कहते है कि मैंने प्राधिकरण का अध्यक्ष रहते मेले के शताब्दी वर्ष में अटल बिहारी को बुलाया था और उन्होंने इस समारोह में मंच से मेले से जुड़े अनेक भावुक किस्से सुनाए थे.

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