किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं... पुरानी किताबों की विरासत धूल में गुम भोपाल की विरासत इकबाल लाइब्रेरी में बिखरी किताबें 85 साल पुरानी लाइब्रेरी 70,000 किताबें रखरखाव के अभाव में धूल फांक रही हैं 1939 में खुली पहली सार्वजनिक लाइब्रेरी आज बदहाल 2017 की बारिश में 80 हज़ार किताबें भीगकर खराब हो गईं हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी समेत कई भाषाओं की दुर्लभ किताबें लाइब्रेरी में अनुदान की कमी, रखरखाव के लिए आवश्यक मदद नहीं लाइब्रेरी के सुधरने की राह देखती किताबें शहर के साहित्यकारों की मांग - लाइब्रेरी का संरक्षण बेहद ज़रूरी किताबों का संरक्षण कब? राजधानी भोपाल की सबसे पहली सार्वजनिक और 85 साल पुरानी इकबाल लाइब्रेरी में करीब 70 हज़ार किताबें धूल फांक रही हैं. हज़ारों की संख्या में किताबें ज़मीन पर पड़ी हैं. यहां कुछ किताबें बहुत पुरानी हैं लेकिन रखरखाव का अभाव है और सरकार का ध्यान नहीं है. यहां हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी, तेलुगू, मलयालम भाषाओं की दुर्लभ किताबों से लेकर इंजीनियरिंग, मेडिकल की पाठ्यसामग्री तक सब कुछ है. 2017 की बारिश में भी 50 हज़ार से अधिक किताबें भीगकर खराब हो गईं.
इकबाल लाइब्रेरी का हाल बदहाल
ये किताबें भोपाल की सबसे पहली सार्वजनिक इकबाल लाइब्रेरी की हैं... सफदर हाशमी का संसार शायद इतना बड़ा हो गया कि इन किताबों को अलमारी में रखना दूभर था, इसलिये ये ज़मीन पर बिखरी हैं. हिंदी, उर्दू, संस्कृत, अंग्रेजी, फारसी, तेलुगू, मलयालम भाषाओं की दुर्लभ किताबों से लेकर इंजीनियरिंग, मेडिकल और न जाने क्या-क्या.
साल 1939 में किताबों की ये दुनिया एक कमरे में खुली. साल 2017 से पहले यहां करीब डेढ़ लाख किताबें थीं. साल 2017 की बारिश में करीब 80 हज़ार किताबें भीगकर खराब हो गईं. अब लाइब्रेरी में करीब 70 हज़ार किताबें हैं. हर साल उर्दू अकादमी से 30 हज़ार और शिक्षा विभाग से 68 हज़ार का अनुदान मिलता है. लाइब्रेरी में आने वाले लोगों से महज़ 50 रुपये लिए जाते हैं.
साल 2017 की बारिश से हाल बुरा
इकबाल लाइब्रेरी के सेक्रेटरी हसन एम सिद्दीकी का कहना है कि लाइब्रेरी में अलमारियों की बहुत कमी है. 2017 की बारिश में जो किताबें खराब हुईं, उन्हें धीरे-धीरे रिस्टोर किया जा रहा है, लेकिन बजट की कमी की वजह से यह काम समय पर नहीं हो पा रहा है. सभी विषयों की यहां किताबें हैं, करीब हज़ार किताबें अभी यहां हैं. लाइब्रेरी की बदहाल स्थिति है. अब उर्दू के लिए काम करने वाले रेख़्ता जैसे संस्थान इन किताबों को संजोने के लिए डिजिटलाइज करने की कोशिश कर रहे हैं. रेख़्ता ने बाकायदा यहां एक कर्मचारी नियुक्त कर रखा है जो किताबों को स्कैन कर रेख़्ता के लिए इन्हें डिजिटलाइज कर रहा है. अब तक 9 हज़ार किताबों को डिजिटलाइज किया जा चुका है. लाइब्रेरी में आने वाले लोगों की संख्या भी अव्यवस्थाओं के कारण धीरे-धीरे कम हो गई है. जो सालों से लाइब्रेरी के पाठक हैं, वे भी चाहते हैं कि इसका कायाकल्प होना चाहिए.
रेख़्ता के कर्मचारी रमीज़ राजा का कहना है कि बारिश के बाद जब किताबें भीगीं, 2018 से मैं यहां किताबों को डिजिटलाइज कर रहा हूं. यहां बुकशेल्फ की बहुत जरूरत है. बिल्डिंग से पानी टपकता है, मरम्मत की जरूरत है और ग्रांट बहुत कम है.
लाइब्रेरी के पाठक हरि कहते हैं कि बारिश के बाद खराब हुई किताबों को बहुत मुश्किल से बचाया गया है. सरकारी मदद न मिलने के कारण स्टाफ ने खुद किताबों को बचाने की कोशिश की है. यहां बहुत सारी किताबें आज़ादी से पहले की भी हैं. शेक्सपियर का मलयालम में संग्रह भी है. मैं 10 साल से लाइब्रेरी आ रहा हूं.
लाइब्रेरी की जिम्मेदारी बांटी जाए
भोपाल के जाने-माने साहित्यकार लाइब्रेरी के स्थान चयन को भी गलत मानते हैं. साहित्यकार राजेश जोशी कहते हैं कि लाइब्रेरी के संचालन का जिम्मा उर्दू अकादमी को दे देना चाहिए या इसे सेंट्रल लाइब्रेरी के हिस्से में शिफ्ट कर देना चाहिए. इकबाल लाइब्रेरी बहुत महत्वपूर्ण है और इसका संरक्षण बेहद ज़रूरी है. अब किताबों जैसी फिजूल बातों के लिए मंत्री-सांसद क्यों अपना वक्त खराब करें. हमने कई बार चक्कर लगाए, फोन किया, लेकिन भोपाल सांसद आलोक शर्मा और अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री कृष्णा गौर सब चुनाव जैसे बेहद अहम काम में व्यस्त थे.
दीमक चट गई हजारों किताबें
जमीन पर पड़ी जिन किताबों को अलमारी में होना चाहिए था, जिन किताबों को पढ़ा जाना चाहिए था, आज उन किताबों को दीमक खा रही है. कई सवाल हैं लेकिन उनके जवाब किसी के पास नहीं हैं. आखिर किताबों का संरक्षण कब और कैसे होगा? इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
किसी ने क्या खूब कहा है ?
किताबें करती हैं बातें
बीते जमानों की
दुनिया की, इंसानों की
आज की कल की
एक-एक पल की.
खुशियों की, गमों की
फूलों की, बमों की
जीत की, हार की
प्यार की, मार की.
सुनोगे नहीं क्या
किताबों की बातें?
किताबें, कुछ तो कहना चाहती हैं
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं.
किताबों में चिड़िया दीखे चहचहाती,
कि इनमें मिलें खेतियाँ लहलहाती.
किताबों में झरने मिलें गुनगुनाते,
बड़े खूब परियों के किस्से सुनाते.
किताबों में साईंस की आवाज़ है,
किताबों में रॉकेट का राज़ है.
हर इक इल्म की इनमें भरमार है,
किताबों का अपना ही संसार है.
क्या तुम इसमें जाना नहीं चाहोगे?
जो इनमें है, पाना नहीं चाहोगे?
किताबें कुछ तो कहना चाहती हैं,
तुम्हारे पास रहना चाहती हैं!
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