
जैन मुनि विद्यासागर महाराज के देवलोक गमन से जैन समुदाय में शोक की लहर है. मुनि विद्यासागर ने शनिवार रात 2:30 बजे अपना शरीर त्याग दिया और मोक्ष को प्राप्त हुए. आचार्य विद्यासागर के जीवन से हर कोई बहुत प्रभावित रहता था. न सिर्फ जैन समाज के बल्कि हर समाज और धर्म को मानने वाले लोग मुनि विद्यासागर की भक्ति करते थे इसीलिए मुनि विद्यासागर को 'विश्व संत' कहा जाता है.
मुनि विद्यासागर कई प्रकार के कठिन नियमों का पालन करते थे. 22 साल की आयु में घर छोड़कर संन्यास लेने वाले मुनि जी के नियमों के बारे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं. आइए जानते हैं कि किस तरह के कठिन नियमों का पालन करके उन्होंने संयमित जीवन व्यतीत किया.
दूध-दही के अलावा इन चीजों का त्याग
संत विद्यासागर ने सन्यास जीवन में कभी भी चीनी, नमक, चटाई, हरी सब्जी, फल, सूखे मेवे, तेल, एलोपेथिक दवाई, दूध-दही जैसी चीजों का सेवन नहीं किया. उनके आहार में ये चीजें पूर्ण रूप से निषेध थीं.
अंजुली में आहार
संत आचार्य मुनि विद्यासागर हाथों की अंजुली बनाकर उसपर ही आहार ग्रहण करते थे. जब आचार्य श्री आहार लेते थे तो खड़े होकर हाथों में ही तरल और ठोस पदार्थों को लेकर खाते थे.
सोने के नियम
संत आचार्य मुनि विद्यासागर कठिन नियम का पालन करते थे. उनके न सिर्फ खाने के बल्कि सोने के भी नियम तय थे. वे लकड़ी के तखत पर एक करवट ही सोते थे. न ही गद्दा-चादर, न ही चटाई उस पर बिछाई जाती थी.
सीमित आहार
संत आचार्य मुनि विद्यासागर के भोजन के नियम तय थे. जितने कौर भोजन के तय किए थे, उससे ज्यादा कभी नहीं खाया.
पानी पीने का नियम
हथेलियों की अंजुली में भरकर आचार्य श्री दिन में एक बार पानी पीते थे. 5 अंजुली पानी आहार के पहले, 5 अंजुली पानी आहार के बाद और 5 अंजुली पानी आहार के दौरान ग्रहण करते थे.
कठिन साधना
आचार्य मुनि विद्यासागर हमेशा शहर से दूर खुले मैदानों में नदी के किनारों या पहाड़ों पर अपनी साधना करते थे.
पैसों को नहीं किया कभी स्पर्श
आचार्य मुनि विद्यासागर ने कभी किसी से भी पैसा नहीं लिया. न ही कभी कोई ट्रस्ट बनवाया. आचार्य संत धन लेने के सख्त खिलाफ रहे.
विहार के नियम
आचार्य मुनि विद्यासागर अनियत विहारी थे. उन्होंने कभी भी विहार का शेड्यूल नहीं बनाया. उनके विहार जब होते थे तो किसी को नहीं पता होता था कि वे किस ओर जाएंगें. भक्तों के पूछने पर भी वे कभी इस बात की जानकारी नहीं देते थे.
बता दें जैनों के प्रमुख संत आचार्य मुनि विद्यासागर जी (Muni Shree Vidyasagar) का जन्मदिवस हर साल शरद पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है. शरद पूर्णिमा (Sharad Purnima) के दिन जन्मे दिगंबर सरोवर के राजहंस विद्यासागर को सत्य, अहिंसा, तपस्या की मूर्ति कहा जाता है.