
Fever Nut: लताकरंज, जिसका वैज्ञानिक नाम कैसलपिनिया क्रिस्टा है, आयुर्वेद में एक महत्वपूर्ण औषधि मानी गई है. इसे सामान्यत पूतिकरंज या अंग्रेजी में फीवर नट के नाम से भी जाना जाता है. यह एक कांटेदार झाड़ी या बेल है जो भारत के उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाई जाती है. आयुर्वेद में लताकरंज के विभिन्न भागों, जैसे पत्ते, जड़, छाल और विशेष रूप से इसके कड़वे बीज का औषधीय उपयोग किया जाता है. सुश्रुत संहिता में लताकरंज की जड़ का उपयोग बुखार, विशेषकर मलेरिया और अन्य प्रकार के विषम ज्वर, और पेट के कीड़ों को कम करने के लिए किया जाता है, जिस वजह से इसे 'फीवर नट' भी कहते हैं.
चरक संहिता में भी है उल्लेख
चरक संहिता में लताकरंज का उल्लेख विरेचका फालिनी और पुष्पिका के रूप में किया गया है; इसके प्रयोग से मल त्यागने में आसानी होती है. वहीं, बवासीर में लताकरंज का उपयोग अलग-अलग तरीकों से किया गया है; इसके जड़, छाल, पत्ते आदि का उपयोग किया जाता है. इसके पत्तों को पीसकर रोगी को पिलाने से फायदा मिलता है.
इन बीमारियों में है फायदेमंद
छोटे बच्चों को अक्सर पेट में कीड़े हो जाते हैं. इन कीड़ों को भगाने में लताकरंज बहुत लाभकारी है. इसके तेल को पिलाने से कीड़े मर जाते हैं.
लताकरंज का उपयोग उल्टी को रोकने के लिए भी किया जाता है. बस उल्टी के दौरान इसके पाउडर को शहद में मिलाकर चाटने से आराम मिलता है. वहीं, आप इसका चूर्ण भी बना सकते हैं और इसकी गोलियां बनाकर भी रख सकते हैं; उसका भी उपयोग उल्टियों को रोकने में किया जा सकता है. लताकरंज के विभिन्न भागों का उपयोग आंखों की समस्याओं और कान बहने (कर्ण स्राव) जैसी स्थितियों में भी किया जाता है.
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