Kirtimukh Rakshas: हिन्दू धर्म में देवी-देवताओं की पूजा का महत्व बताया गया है. लोग सुबह उठकर सबसे पहले भगवान का नाम लेते हैं, अपने आराध्य देव की पूजा-अर्चना करते हैं, उसके बाद दिन की शुरुआत करते हैं. जिससे घर में सुख-समृद्धि का वास हो और सकारात्मक दृष्टि घर पर बने रहे, वहीं राक्षसों (Demons) को नकारात्मक दृष्टि से देखा जाता है और उन्हें दूर भगाने के लिए तंत्र-मंत्र, पूजा-पाठ भी की जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं? एक ऐसा राक्षस भी है, जिसे देवी-देवताओं के समान ही दर्जा (Kirtimukh rakshas story) दिया जाता है, आइए हम आपको बताते हैं इस राक्षस के बारे में.
ऐसे हुई थी कीर्तिमुख राक्षस की उत्पत्ति
पौराणिक कथा की मानें तो एक बार भगवान शिव ध्यान में लीन थे, तब राहु को अपनी शक्तियों के घमंड में चूर था, उसने महादेव के सिर पर विराजमान चंद्रमा पर ग्रहण लगा दिया. शिव जी ये देखकर क्रोधित हो गए और ग़ुस्से में उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी, तब महादेव ने राहु को मारने के लिए कीर्तिमुख की उत्पत्ति की थी.
भगवान शिव ने कीर्तिमुख को दिया था ये आदेश
महादेव ने कीर्तिमुख को राहु को खाने का आदेश दिया, ये बात सुनकर कीर्तिमुख राहु के पीछे दौड़ता यह देखकर राहु महादेव के पैरों में गिर पड़ा और अपनी गलती के लिए क्षमा मांगने लगा तो फिर महादेव को उस पर दया आ गई और उन्होंने राहु को माफ कर दिया, इसके बाद भगवान शिव पुनः ध्यान करने बैठ गए लेकिन कीर्तिमुख ने भगवान से कहा कि मैं भूखा हूं, अब मैं किसे खाऊं, तब भगवान शिव ने ध्यान में कह दिया कि तुम स्वयं को ही खा लो.
खुश होकर शिव जी ने दिया था ये वरदान
महादेव का आदेश सुनकर कीर्तिमुख ने ऐसे ही किया और ख़ुद को खाने लगा. महादेव का ध्यान टूटा तो उन्होंने देखा कि कीर्तिमुख अपने आपको खा रहा है, उसका केवल मुख और दो हाथ ही बचे हैं. ये देखकर भगवान शिव खुश हुए कि उसने महादेव की बात को मान लिया, तब शिव शंकर ने उसे वरदान दिया कि जहां तुम विराजित होंगे वहां किसी भी प्रकार की नकारात्मकता का वास नहीं होगा इसीलिए लोग घर के बाहर कीर्तिमुख को लगाते हैं, ताकि किसी भी प्रकार की नेगेटिविटी न आए.
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