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Tribal News: आम के पत्तों से दिया जाता है निमंत्रण, 700 साल से चली आ रही अनोखी परंपरा

इस जिले में हर साल फागुन के महीने में वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है. इस आयोजन में शामिल होने के लिए मेला समिति के सदस्य साप्ताहिक बाजार में आए व्यापारियों, ग्रामीणों को आम की टहनी से निमंत्रण देते हैं.

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Tribal News: आम के पत्तों से दिया जाता है निमंत्रण, 700 साल से चली आ रही अनोखी परंपरा
साकेंतिक फोटो
कोंडागांव:

Tribal News: देश और दुनिया कितनी भी आधुनिकता की तरफ चली जाए लेकिन कुछ लोगों के लिए उनकी परंपराएं, मान्यताएं आज भी किसी भी अन्य चीज से ज्यादा महत्व रखती हैं. छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में आदिवासी समुदाय (Tribal Community) अपनी परंपराओं, मान्यताओं को पूरी शिद्दत के साथ मानने के लिए जाने जाते हैं. यहां के कोंडागांव जिले के लोग आज भी आम के पत्ते से निमंत्रण देते हैं.

निमंत्रण के लिए आम का पत्ता और टहनी

आज के दौर में जहां तरह- तरह के निमंत्रण कार्ड के माध्यम से, सोशल मीडिया या किसी अन्य माध्यम से लोगों को निमंत्रण दिया जाता है वहीं आज भी कोंडागांव में पुराने तौर तरीकों से निमंत्रण देने के प्रथा जारी है. हर साल कोंडागांव में वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है. इस आयोजन के दौरान यहां के लोग वार्षिक मेले में आने के लिए आम के पत्ते के माध्यम से निमंत्रण देते हैं और कील ठोककर लोगों की सुरक्षा करते हैं.

फागुन महीने में होता है वार्षिक मेला

इस जिले में हर साल फागुन के महीने में वार्षिक मेले का आयोजन किया जाता है. इस आयोजन में शामिल होने के लिए मेला समिति के सदस्य साप्ताहिक बाजार में आए व्यापारियों, ग्रामीणों को आम की टहनी से निमंत्रण देते हैं. गांव का कोटवार आम के पत्ते को लेकर मेला समिति के सदस्यों के साथ साप्ताहिक बाजार में घूमकर मेले में शामिल होने के लिए आम की टहनी के जरिए निमंत्रण देते हैं. 

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700 साल पुरानी है परंपरा

ये परंपरा 700 साल पुरानी है और आज भी जारी है. आम का पत्ता शुभ माना जाता है और हर धार्मिक अनुष्ठान में आम के पत्ते का उपयोग किया जाता है. समिति के सदस्यों का कहना है कि यदि आम के पत्ते से मेले का निमंत्रण नहीं दिया जाता तो मेले में कम लोग आते हैं. विशेषरूप से स्थानीय व्यापारी मेले में नहीं आते हैं. 

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गाड़ी जाती है कील

मेले में लोगों को आमंत्रित करने के बाद लोगों की सुरक्षा की व्यवस्था के लिए कील गाड़ी जाती है ताकि मेले में आए लोगों पर कोई आपदा न आए. इस रस्म को 'मांडो रस्म' कहा जाता है. मेला आयोजन समिति के सदस्यों के अनुसार यहां होने वाले मेले में गांव के देवी- देवताओं की अनुमति प्राप्त करना, देवी पहुंचानी की रस्म अदा करने के साथ सभी ग्राम देवी-देवताओं को मेले में शामिल होने का निमंत्रण दिया जाता है.

यहां की रस्म के अनुसार, मेले को बिना किसी रूकावट के संपन्न कराने के लिए, साथ ही यहां आने वाले लोगों की सुरक्षा के लिए मेला स्थल के कोनों में कील गाड़ने की रस्म निभाई जाती है ताकि मेला और यहां आने वालों पर कोई आपदा न आए और मेला बिना किसी रूकावट के संपन्न हो जाए.

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