आज हम आजादी के अमृत काल वर्ष का समापन करने जा रहे हैं. आजादी के 75 साल पूर्ण होने की बेला में देश में गिनती के ही स्वतंत्रता संग्राम के सेनानी जीवित बचे हैं. जिन्होंने आजादी के आंदोलन में हिस्सा लिया था. उन्हीं में से एक हैं जबलपुर के कोमलचंद जैन. करीब 90 वर्ष की आयु में भी कोमलचंद जैन की धुंधली यादों में आजादी की लड़ाई का आंदोलन जीवंत है. कोमलचंद जैन ने एनडीटीवी से बातचीत में बताया कि किस तरह गांधी जी ने 'अंग्रेजों भारत छोड़ो' और 'करो या मरो' के दो नारे दिए थे, जिसके बाद वे अपने घर को छोड़कर आजादी के आंदोलन में हिस्सा लेने सड़कों पर उतर आए थे.
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एक तरफ नेता जी बिगुल फूंक रहे थे, दूसरी तरफ महात्मा गांधी
कोमल चंद जैन ने बताया कि पूर्व दिशा नेताजी सुभाषचंद्र बोस की अगुवाई में आजाद हिंद फौज आगे बढ़ी चली जा रही थी. वहीं, देश में अंग्रेजों भारत छोड़ो की गूंज फैली हुई थी.
ये वह दौर था जब द्वितीय विश्वयुद्ध भी चल रहा था. कोमलचंद जैन ने आजादी के दौरान बंटवारे की यादों को भी साझा किया. उन्होंने बताया कि उस वक्त उनकी 13 वर्ष की ही उम्र थी. लेकिन देशभक्ति की ललक ने उन्हें आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया.
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोमलचंद जैन का भरा पूरा परिवार है. उनके दो बेटे और दो बेटियां हैं. नाती-पोते और पोतियां भी हैं. कोमलचंद जैन के बेटे शरद जैन और बसंत जैन पारिवारिक व्यापार संभालते हैं.
शरद क्रॉकरी का व्यापार करते हैं. वहीं, बसंत इलेक्ट्रॉनिक्स के व्यापारी हैं. वहीं, जैन के एक पोता गजेटेड ऑफिसर भी हैं. कोमल चंद जैन ने 'भारत छोड़ो आंदोलन' में हिस्सा लिया था. अगस्त 1942 में उन्हें 28 दिन कारावास में गुजारने पड़े थे.