जबलपुर के गढ़ा बाजार स्थित फूल सागर का कोष्टा परिवार बीते 4 पीढ़ियों से आदिशक्ति और हुसैन दोनों का उपासक है. इनका देव स्थान दादा दरबार के नाम से विख्यात है, जहां हर साल इस दरबार में श्रद्धा रखने वाले लोग माथा टेकने पहुंचते हैं. दादा दरबार के मुख्य मुजावर हृदयलाल कोष्टा ने बताया कि बीते 4 पीढ़ियों या कहें कि करीब 125 साल से उनका परिवार आदिशक्ति की आराधना के साथ-साथ मोहम्मद पैगंबर के नवासे हजरत इमाम हुसैन की इबादत करता चला आ रहा है. कोष्टा इसके पीछे बुजुर्गों की प्रेरणा का हवाला देते हैं.
जब साथ पड़े मुहर्रम और नवरात्र तब भी की इबादत
मुजावर हृदयलाल ने एनडीटीवी को बताया कि करीब 4-5 साल पहले ऐसा मौका आया था जब नवरात्र और मुहर्रम एक साथ पड़े थे, उससे करीब 30 साल पहले भी ऐसा मौका आया था. उन्होंने बताया कि जब ऐसा मौका आया तो मैंने आदिशक्ति की आराधना की और भतीजे के साथ-साथ अन्य परिजन ने हजरत इमाम हुसैन की इबादत में सवारी रखी थी. क्षेत्र के लोग और रिश्तेदार सभी इस काम में सहयोग करते चले आ रहे हैं.
हरदयाल क कहना है की यह पूरा विश्वास का मामला है जिसमें जिसकी सच्ची आस्था है, सच्ची लगन है उसकी मन्नत पूरी भी होती है, हम लोग कई पीढ़ियों से यह संभालते आ रहे हैं , हम लोग फूल पत्तियों भभूत वितरित करते हैं जो लोगों को मुरादें पूरी होती है. वह लोग भी आते हैं जिनहे श्रद्धा होती है, जिनको बच्चे नहीं होते उन्हें बच्चे हो जाते हैं. जिनकी शादियां नहीं होती उनकी शादियां हो जाती है, जिनको धन दौलत नहीं मिलती हमें मालिक धन दौलत देता है.
कोस्टा बताते हैं , लोग कहते हैं कि मोहर्रम मुसलमानों का त्योहार है लेकिन सभी के पहुंचने का रास्ता परमपिता परमेश्वर के पास है कोई श्रीराम से पहुंचता है कोई पैगंबर से पहुंचता है. लोग गलत धारणा बनते है कहलाते हैं तुम हिंदू होकर मुसलमानों का त्योहार क्यों मनाते हैं. मैं इसके प्रति कुछ नहीं कहना चाहता अपनी अपनी श्रद्धा है मैं यही मानता हूं कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना.
शेखर कोस्टा ने बताया कि मेरे बुजुर्ग जो विरासत छोड़कर गए हैं , जब मां भगवती की आराधना का समय आता है तब हम मां की भी पूजा करते हैं पूरी भक्ति के साथ और यह चौथी पीढ़ी है जब दोनों त्योहारों को पूरी श्रद्धा और भक्ति के साथ मना रही है जब मैं 11 साल का था कब से मुझे मोहर्रम के समय हाजिरी आती है और आज 50 वर्ष का हुआ है
दूरदराज से लोग आते हैं माथा टेकने
हृदयलाल के भतीजे शेखर कोष्टा ने बताया कि उनके दरबार में दूरदराज से लोग आते हैं, शेखर खुद छत्तीसगढ़ में जा बसे हैं लेकिन नवरात्र और मुहर्रम में अपने दरबार आ जाते हैं. उन्होंने बताया कि गाडरवारा से उनके रिश्तेदार मत्था टेकने यहां पहुंचे हैं. दादा दरबार से उनकी मुराद पूरी हुई थी, इसलिए वे हर साल दरबार में आते हैं, उनके जैसे सैकड़ों श्रद्धालु और भी हैं.
कत्ल की रात को कूदेंगे अलाव
हृदयलाल कोष्टा ने बताया कि हर साल मुहर्रम पर बीती 4 पीढ़ियों से उनका परिवार आग के शोलों से गुजरता है. कोष्टा परिवार का अलाव देखने भी हजारों की संख्या में लोग जुटते हैं. इस साल 51 मन लकड़ी का अलाव कूदने वाले हैं. उन्होंने बताया कि हुसैन की चाहत में आग के शोले भी फूलों में बदल जाते हैं। ईश्वर एक है, उस तक पहुंचने के मार्ग भले ही जुदा हैं, धर्म और संस्कृति का पालन करते चले आ रहे हैैं.