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Gene Editing : क्या जीन एडिटिंग थेरेपी कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज में साबित होगी कारगर? जानें क्या कहती है रिपोर्ट

Gene Editing Technique :  जीन एडिटिंग थेरेपी क्या उम्मीद की किरण बन पाएगी. कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज में कारगर साबित हो पाएगी? इसको लेकर क्या कह रही है अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल द लैंसेट ऑन्कोलॉजी में छपी रिपोर्ट.

Gene Editing : क्या जीन एडिटिंग थेरेपी कोलोरेक्टल कैंसर के इलाज में साबित होगी कारगर? जानें क्या कहती है रिपोर्ट

Gene Editing Therapy : कोलन और आंतों के एडवांस कैंसर (कोलोरेक्टल कैंसर) से लड़ने में सीआरआईएसपीआर/कैस 9 नाम की जीन एडिटिंग तकनीक से अच्छे नतीजे मिले हैं. यह जानकारी एक अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल द लैंसेट ऑन्कोलॉजी में छपी पहली मानव परीक्षण (क्लीनिकल ट्रायल) की रिपोर्ट से सामने आई है.

इस शोध में वैज्ञानिकों ने एक खास तरह की रोग-प्रतिरोधक कोशिका (जिसे ट्यूमर-इंफिल्ट्रेटिंग लिम्फोसाइट्स या टीआईएलएस कहते हैं) को जीन एडिटिंग के जरिए बदला. उन्होंने सीआईएसएच नाम के एक जीन को बंद कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि इन बदली हुई कोशिकाओं ने कैंसर कोशिकाओं को पहले से बेहतर पहचानना और नष्ट करना शुरू कर दिया.

सीआरआईएसपीआर तकनीक का इस्तेमाल किया गया

मिनेसोटा यूनिवर्सिटी के डॉक्टर एमिल लोउ ने कहा, “कैंसर पर बहुत रिसर्च के बावजूद स्टेज 4 कोलोरेक्टल कैंसर आज भी ज्यादातर मामलों में लाइलाज है.” उनके सहयोगी प्रोफेसर ब्रैंडन मोरियारिटी ने बताया कि सीआईएसएच नाम का यह जीन कैंसर से लड़ने वाली कोशिकाओं को ठीक से काम करने से रोकता है. इसे रोकने के लिए परंपरागत तरीकों से कुछ नहीं हो सकता था, इसलिए सीआरआईएसपीआर तकनीक का इस्तेमाल किया गया.

किसी को कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं हुआ

यह इलाज 12 ऐसे मरीजों पर आजमाया गया जिनका कैंसर बहुत ज्यादा फैल चुका था. इलाज से किसी को कोई गंभीर साइड इफेक्ट नहीं हुआ. कई मरीजों में कैंसर बढ़ना रुक गया और एक मरीज में तो कैंसर पूरी तरह खत्म हो गया. उस व्यक्ति में कैंसर दो साल तक दोबारा नहीं लौटा.

दूसरी कैंसर दवाओं के उलट, यह जीन एडिटिंग एक बार की जाती है और फिर यह बदलाव स्थायी रूप से शरीर की कोशिकाओं में बना रहता है.

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ऐसा पहले कभी संभव नहीं हुआ था

डॉक्टर लोउ ने कहा, “हमारी प्रयोगशाला में हुई रिसर्च अब मरीजों तक पहुंच रही है, और यह इलाज एडवांस कैंसर के मरीजों के लिए नई उम्मीद दे सकता है.” वैज्ञानिकों ने बताया कि उन्होंने 10 अरब से भी ज़्यादा बदली गई टीआईएल कोशिकाएं बिना किसी नुकसान के शरीर में दीं, जो पहले कभी संभव नहीं हुआ था.

हालांकि, यह इलाज कारगर दिख रहा है, लेकिन यह अभी भी बहुत महंगा और तकनीकी रूप से जटिल है. वैज्ञानिकों का कहना है कि यह समझना जरूरी है कि यह इलाज किन कारणों से कुछ मरीजों में इतना अच्छा काम कर पाया.

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