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Women's day Special: बिना किसी ट्रेनिंग के 30 वर्षों से तराश हैं लकड़ी, इनकी नक्काशी करती है हैरान

शांतिबाई पर्यावरण का पूरा धयान रखती हैं, वे जंगल में पेड़ से टूटकर गिरी लकड़ियों का उपयोग करती हैं या मिल से खरीदकर लकड़ी लाती हैं, लेकिप वे पेड़ नहीं काटती,उनके बनाए गए खंभे की प्रदर्शनी मुम्बई में लगती है.

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Women's day Special: बिना किसी ट्रेनिंग के 30 वर्षों से तराश हैं लकड़ी, इनकी नक्काशी करती है हैरान

International Women's Day 2024: आज 8 मार्च का दिन दुनिया भर में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस (International Women's Day) के रूप में मनाया जाता है. ये खास दिन दुनिया भर की महिलाओं के अधिकारों और उपलब्धियों के सम्मान के रूप में याद किया जाता है. आज महिला दिवस (Women's Day) के मौके पर NDTV आपके लिए महिलाओं से जुड़ी कुछ खास कहानियां लेकर आया है. तो चलिए यहां पर कोंडागांव की महिला की कहानी बताते हैं. कहते हैं कि कला किसी की मोहताज नहीं होती. मन में अगर लगन हो तो किसी भी क्षेत्र में महारत हासिल की जा सकती है. इसे साबित कर रही हैं कोंडागांव की एक महिला शिल्पी. इन्होंने कभी जिंदगी में किसी स्कूल में कदम नहीं रखा, पर आज इनके द्वारा बनाई गई कलाकृति की मांग देश के महानगरों तक में है.

International Womens Day : कोंडागांव की महिला शिल्पी शांतिबाई

International Women's Day : कोंडागांव की महिला शिल्पी शांतिबाई

लकड़ी पर इनकी नक्काशी को देखकर हर कोई रह जाता है हैरान

महिला शिल्पी (Female Craftsman) शांतिबाई जिनके हुनर चर्चे आज बड़े बड़े महानगरों में है. इस महिला शिल्पी ने ना किसी शिल्प कला की ट्रेनिंग ली है ना कभी स्कूल गयी हैं. वैसे तो लकड़ी की मूर्ति हर कोई बनाता है पर शांतिबाई इन बेजान लकड़ियों में अपनी कला के माध्यम से जान डाल देती हैं.

शांतिबाई 30 साल से लकड़ी में आकृति बनाने का कार्य करती आ रही हैं. शांतिबाई आज तक 30 से ज्यादा खंभों में 'जिंदगी' उकेर चुकी हैं.

खुद अशिक्षित है पर दूसरों को देती हैं शिक्षा 

शांतिबाई आज तक भले ही स्कूल में कदम नहीं रखा हो, पर वे शिल्पकला की शिक्षा लोगों को देती हैं. बचपन में पत्थर के शिल्पियों के साथ हेल्पर (सहायक) के रूप में काम करने वाले शांतिबाई, आज दक्ष हाथों से काष्ठकला का नायाब उदाहरण प्रस्तुत करती हैं. शांतिबाई की कलाकारी में ना कोई माॅर्डन आर्ट (Morden Art) है और ना ही कोई कालपनिक कला, जो उनको भूत, भविष्य और वर्तमान में दिखता है वे उसे उकेर देती हैं. वे अपनी कला के माध्यम से लोगों को एक संदेश दे रही हैं कि जीवन में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं, पर इंसान से लेकर हर प्राणी के लिए पर्यावरण जरूरी है.

शांतिबाई पर्यावरण का पूरा धयान रखती हैं, वे जंगल में पेड़ से टूटकर गिरी लकड़ियों का उपयोग करती हैं या मिल से खरीदकर लकड़ी लाती हैं, लेकिप वे पेड़ नहीं काटती,उनके बनाए गए खंभे की प्रदर्शनी मुम्बई में लगती है.

कठिन है खंभा आर्ट

काष्ठ कला तो कोई भी कर लेता है, छोटी-छोटी लकड़ियों से मूर्तियां बनाना आसान है पर लकड़ी के खम्बे पर कलाकारी करना काफी कठिन है. खम्भे की कलाकारी काफी मेहनत भरी होती है. एक खम्भे को तैयार करने में पांच महीने तक लगते हैं. दिन-रात पेड़ के मोटे-मोटे तने पर पेन्सिल से डिजाइन बनाना फिर उसके बाद उसे छेनी-हथौड़ी से आकार देना और आखिरी में इसे फिनिशिंग टच के बाद मांग के अनुसार महानगरो में भेजना. काफी लंबी प्रोसेस है.

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