सूरजपुर जिले से सामने आई बाघ की मौत की घटना ने वन्यजीव संरक्षण व्यवस्था पर एक बार फिर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. गुरु घासीदास–तैमोर–पिंगला टाइगर रिजर्व के अंतर्गत घुई वन परिक्षेत्र के भैंसामुंडा क्षेत्र में तीन दिन पहले एक बाघ का शव मिलने से हड़कंप मच गया. शुरुआती जांच में सामने आया कि बाघ की मौत करंट लगने से हुई है, जो स्पष्ट रूप से अवैध शिकार की ओर इशारा करता है.
पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में बाघ के जबड़े और नाखून गायब हैं. पीठ पर करंट से झुलसने के निशान मिले हैं. इतना ही नहीं, शिकारी बाघ के दांत, नाखून और जबड़ा निकालकर फरार हो गए थे. यह घटना किसी एक व्यक्ति की नहीं, बल्कि संगठित शिकार गिरोह की ओर इशारा करती है.
5 आरोपी गिरफ्तार, एक महिला शामिल
मामले में अब तक बड़ी कार्रवाई की गई है. वन विभाग ने गुरुवार 5 आरोपियों को गिरफ्तार किया है, जबकि इससे पहले एक महिला को पहले ही गिरफ्तार कर जेल भेजा जा चुका है. पूछताछ के दौरान महिला ने उसके बाल और नाखून जब्त किए गए हैं. आरोपियों के पास से करंट लगाने में इस्तेमाल होने वाली सामग्री भी बरामद की गई है.
वहीं, लापरवाही के आरोप में बिट गार्ड रविशंकर विश्वकर्मा को सस्पेंड कर दिया गया है और घुई रेंजर व वनपाल को कारण बताओ नोटिस जारी किया गया है. विभाग को आशंका है कि इस गिरोह से जुड़े और भी आरोपी सामने आ सकते हैं.
हाईकोर्ट ने लिया संज्ञान
इस पूरे मामले ने छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट को भी सख्त रुख अपनाने पर मजबूर कर दिया है. हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए प्रधान मुख्य वन संरक्षक (PCCF) से व्यक्तिगत शपथपत्र के साथ जवाब तलब किया है. चीफ जस्टिस रमेश सिन्हा और जस्टिस बीडी गुरु की डिवीजन बेंच ने कहा कि करंट लगाकर बाघ का शिकार होना बेहद गंभीर मामला है और इसे किसी भी सूरत में नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.
वन्यजीवों की सुरक्षा लिए क्या हैं ठोस इंतजाम?
कोर्ट ने राज्य सरकार और वन विभाग से पूछा है कि प्रदेश में वन्यजीवों की सुरक्षा के लिए वर्तमान में क्या ठोस इंतजाम हैं और भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए क्या प्रभावी योजना बनाई गई है. गौरतलब है कि इससे पहले 10 दिसंबर की सुनवाई में सरकार ने कोर्ट को बताया था कि हाल के दिनों में शिकार की कोई नई घटना नहीं हुई है, लेकिन सूरजपुर की घटना ने इन दावों की पोल खोल दी.
फिलहाल वन विभाग की जांच जारी है और आसपास के इलाकों में सतर्कता बढ़ा दी गई है, लेकिन यह घटना एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करती है कि करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद क्या वन्यजीव संरक्षण के दावे केवल कागजों तक ही सीमित रह गए हैं.