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'बंदूक' छोड़कर पकड़ी 'सुई-धागा'. गरियाबंद में 6 इनामी नक्सली यूं बुन रहे हैं नई जिंदगी का सपना

छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में एक बहुत ही खूबसूरत बदलाव की कहानी लिखी जा रही है. जिन हाथों ने कभी बंदूक थामी थी, अब वही हाथ सिलाई मशीन की टक-टक में नई जिंदगी का संगीत गढ़ रहे हैं. दरअसल यहां 6 इनामी नक्सली जो पहले खौफ का पर्याय बने थे वो आज आज सरकार की पुनर्वास योजना की बदौलत लाइवलीहुड कॉलेज में नया सवेरा देख रहे हैं.

'बंदूक' छोड़कर पकड़ी 'सुई-धागा'. गरियाबंद में 6 इनामी नक्सली यूं बुन रहे हैं नई जिंदगी का सपना

Gariaband ex-naxals rehabilitation: छत्तीसगढ़ के गरियाबंद में एक बहुत ही खूबसूरत बदलाव की कहानी लिखी जा रही है. जिन हाथों ने कभी बंदूक थामी थी, अब वही हाथ सिलाई मशीन की टक-टक में नई जिंदगी का संगीत गढ़ रहे हैं. दरअसल यहां 6 इनामी नक्सली जो पहले खौफ का पर्याय बने थे वो आज आज सरकार की पुनर्वास योजना की बदौलत लाइवलीहुड कॉलेज में नया सवेरा देख रहे हैं. इसमें चार महिला नक्सली भी शामिल हैं जिन पर कभी 5 लाख से लेकर 8 लाख तक का इनाम घोषित था...क्या है ये बदलाव की कहानी पढ़िए इस रिपोर्ट में.

8 लाख की इनामी जानसी अब बन रही आत्मनिर्भर

दरअसल सरकार की पुनर्वास नीति और सुरक्षाबलों के बढ़ते ऑपरेशन की वजह से छत्तीसगढ़ में बड़ी संख्या में नक्सली सरेंडर कर रहे हैं. गरियाबंद में ऐसे ही छह इनामी नक्सली पुनर्वास की प्रक्रिया में शामिल हुए हैं. इस दल में जानसी भी शामिल है. जानसी पर कभी रु. 8 लाख का इनाम था और उसने 20 साल नक्सल मोर्चे पर बिताए थे. उसके साथ ही झुमकी, मंजुला और रनीता भी शामिल हैं. जिन पर भी 5−5 लाख का इनाम था. अब ये चारों महिलाएं सिलाई, कढ़ाई और बुनाई का प्रशिक्षण ले रही हैं. NDTV के पूछने पर झुमकी हंसते हुए कहती है- पहले जंगल में हर वक्त जान हथेली पर रहती थी. अब जिंदगी कढ़ाई के धागों में सजीव लगती है." 

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ड्राइविंग सीख रहे पुरुष, दसवीं का सपना देख रही महिलाएं

इन महिलाओं में से मंजुला और झुमकी ने सिर्फ कढ़ाई ही नहीं, बल्कि पढ़ाई को भी अपनाया है. वे दोनों 10वीं कक्षा के प्राइवेट एग्जाम की तैयारी में जुटी हैं. दसवीं की परीक्षा देने का सपना उनके चेहरे पर साफ चमकता है. वहीं, पूर्व नक्सली रमेश और संतराम, जिन पर भी 5−5 लाख का इनाम था, अब अपने लिए एक ईमानदार राह चुन रहे हैं. वे ड्राइविंग और प्लम्बिंग में हाथ आजमा रहे हैं. संतराम का कहना है, "अब हम भी अपने बच्चों के लिए रोटी-कपड़ा ईमान से जुटाना चाहते हैं. अब डर की नहीं, मेहनत की कमाई करनी है."

एस.पी. बोले- बदलाव मुमकिन है

लाइवलीहुड परियोजना अधिकारी सृष्टि मिश्रा ने बताया कि इन सभी में सीखने की गजब की ललक है. वे समय पर आते हैं और ईमानदारी से ट्रेनिंग लेते हैं. महिलाओं को सेल्स की ट्रेनिंग भी दी जा रही है और सुपर बाजार से तो ऑफर भी मिलना शुरू हो गए हैं. गरियाबंद के एसपी निखिल राखेचा ने कहा कि नक्सलियों के आत्मसमर्पण के बाद सरकार उनके पुनर्वास को लेकर पूरी तरह से गंभीर है. सरकार कई तरह की योजनाएं चला रही है ताकि उन्हें भविष्य में कोई परेशानी न हो. दरअसल गरियाबंद की इस कहानी ने साबित कर दिया है कि बदलाव मुमकिन है. बस बंदूक की जगह अगर सुई-धागा और औजार जैसे साधन थमा कर रोजगार दे दिए जाएं.

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