Chhattisgarh High Court: 'पार्टनर की मर्जी के बिना किया गया यौन कृत्य दुष्कर्म नहीं'

CG High Court Verdict: हाई कोर्ट की एकल पीठ ने आदेश में भारतीय दंड सहिंता की धारा 204, 376 और 377 के तहत दर्ज सभी अपराधों से बरी करते हुए कहा कि पति द्वारा अपनी पार्टनर या पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना बनाए गए किसी भी तरह के यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता है. 

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Chhattisgarh High Court Historic Verdict
बिलासपुर:

Chhattisgarh High Court: बॉलीवुड फिल्म 'पिंक में एक डॉयलाग था कि, 'नो मतलब नो होता है' यानी कोई महिला अगर न कहती हैं, तो उसका मतलब न होता है, न का मतलब सहमति नहीं हो सकता है. सोमवार को छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक ऐतिहासिक फैसले में पार्टनर की सहमति के बगैर बनाए गए यौन कृत्य करने के दोषी पति को बरी कर दिया है. 

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हाई कोर्ट की एकल पीठ ने आदेश में भारतीय दंड सहिंता की धारा 204, 376 और 377 के तहत दर्ज सभी अपराधों से बरी करते हुए कहा कि पति द्वारा अपनी पार्टनर या पत्नी के साथ उसकी सहमति के बिना बनाए गए किसी भी तरह के यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता है. 

सभी आरोपों से बरी करते हुए कोर्ट ने पति को रिहा करने का आदेश दिया

छत्तीसगगढ़ हाई कोर्ट की एकल पीठ ने सोमवार को फैसला सुनाते हुए आरोपी पति को बरी कर दिया, जिस पर अपनी पत्नी के साथ उसकी मर्जी के बिना यौन कृत्य करने का आरोप था. कोर्ट ने आरोपी पति को भारतीय दंड संहिता की तीनों धाराओं 304, 376 और 377 के तहत लगे सभी आरोपों से बरी करते हुए उसे तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया.

सहमति के बिना आरोपी पति ने पार्टनर के साथ अप्राकृतिक संबंध बनाए थे

गौरतलब है मामले में अदालत ने पिछले साल 19 नवंबर को फैसला सुरक्षित रख लिया था और सोमवार (10 फरवरी) को बड़ा फैसला सुनाया. हाईकोर्ट ने यह फैसला जगदलपुर, बस्तर निवासी याचिकाकर्ता पति के पक्ष में सुनाया, जिस पर आरोप था कि उसने 11 दिसंबर 2017 की रात को पत्नी की सहमति के बिना उसके साथ अप्राकृतिक संबंध बनाए थे.

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अप्राकृतिक यौन कृत्य के कारण पत्नी को असह्य पीड़ा हुई और इलाज के दौरान अस्पताल में उसकी मौत हो गई. पुलिस ने केस दर्ज कर पति को गिरफ्तार किया और मामले की सुनवाई के बाद अधीनस्थ अदालत ने पति को दोषी ठहराते हुए 10 साल की आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. 

निचली अदालत ने पति को 10 साल की आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी

छ्तीसगढ़ हाई कोर्ट द्वारा सभी बरी किए गए पति को निचली अदालत द्वारा आईपीसी की धारा 377 (अप्राकृतिक यौन कृत्य) 376 (दुष्कर्म) और 304 (गैर इरादतन हत्या) के तहत पति को दोषी ठहराया था और उसे 10 साल कारावास की सजा सुनाई गई थी. अदालत के इस फैसले के बाद पति ने उच्च न्यायालय में अपील दायर की.

'पत्नी की उम्र 15 वर्ष से कम नहीं है तो यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता'

मामले की सुनवाई के बाद उच्च न्यायालय ने माना कि अगर पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो पति द्वारा किसी भी यौन संबंध या यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता. न्यायालय ने यह भी माना कि इन परिस्थितियों में पत्नी की सहमति स्वमेव महत्वहीन हो जाती है, इसलिए अपीलकर्ता पति के खिलाफ धारा 376 और 377 के तहत अपराध नहीं बनता है.

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उच्च न्यायालय ने माना कि अगर पत्नी की आयु 15 वर्ष से कम नहीं है तो पति द्वारा किसी भी यौन संबंध या यौन कृत्य को दुष्कर्म नहीं कहा जा सकता. कोर्ट ने माना कि इन परिस्थितियों में पत्नी की सहमति स्वमेव महत्वहीन हो जाती है, इसलिए पति के खिलाफ अपराध नहीं बनता है.

'निचली अदालत के फैसले में धारा 304 के तहत कोई विशेष निष्कर्ष दर्ज नहीं'

शीर्ष अदालत की एकलपीठ ने अपने फैसले में कहा कि निचली अदालत ने अपने फैसले में आईपीसी की धारा 304 के तहत भी कोई विशेष निष्कर्ष दर्ज नहीं किया, इसलिए याचिकाकर्ता पति को सभी आरोपों से बरी कर दिया गया है और उसे तत्काल जेल से रिहा करने का आदेश दिया गया है.

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