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अपने ही गढ़ में कमजोर हुई BJP, राजनांदगांव लोकसभा सीट से हारे भूपेश बघेल, लेकिन पार्टी की स्थिति हुई मजबूत

Rajnandgaon Lok Sabha Election Results: राजनांदगांव लोकसभा सीट पर कांग्रेस को हार का मुंह देखना पड़ा. कांग्रेस ने यहां से पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल को मैदान में उतारा था. बीजेपी राजनांदगांव सीट जीत गई, लेकिन इसके बावजूद पार्टी को बड़ा नुकसान पहुंचा.

अपने ही गढ़ में कमजोर हुई BJP, राजनांदगांव लोकसभा सीट से हारे भूपेश बघेल, लेकिन पार्टी की स्थिति हुई मजबूत
रायपुर:

Chhattisgarh Election Results 2024: छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव लोकसभा सीट (Rajnandgaon Lok Sabha Election Results) पर कांग्रेस (Congress) के तेजतर्रार नेता भूपेश बघेल (Bhupesh Baghel) बीजेपी के मौजूदा सांसद संतोष पांडेय (Santosh Pandey) से चुनाव हार गए. इस चुनाव में भले ही भूपेश बघेल हार गए हो, लेकिन राजनांदगांव सीट पर कांग्रेस का प्रदर्शन बेहतर रहा. बघेल को इस सीट पर कुल मतदान का 46.18 प्रतिशत वोट मिला, जो 2019 के लोकसभा चुनाव में भोलाराम साहू को मिले वोटों से ज्यादा रहा.

रमन के गढ़ राजनांदगांव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत बढ़ा

इस लोकसभा चुनाव में भूपेश बघेल को 6,67,646 वोट और संतोष पांडेय को 7,12,057 वोट मिले. वहीं इस चुनाव में भूपेश बघेल को 44,411 वोटों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा.

2019 के आम चुनाव में संतोष पांडेय ने 6,62,387 वोट हासिल किए थे और कांग्रेस के उम्मीदवार भोलाराम साहू को 1,11,966 वोटों के अंतर से हराया था. बघेल को इस सीट पर कुल मतदान का 46.18 प्रतिशत वोट मिला, जो 2019 में उनकी पार्टी के उम्मीदवार भोलाराम साहू को मिले 5,50,421 (42.09 प्रतिशत) वोटों से ज्यादा है.

पिछेल चुनाव के मुकाबले इस बार कांग्रेस को मिले ज्यादा मत

इस बार संतोष पांडेय को राजनांदगांव सीट पर हुए कुल मतदान का 49.25 प्रतिशत वोट मिला, जो 2019 में उन्हें मिले 50.65 प्रतिशत वोटों से कम है. चुनाव पर्यवेक्षकों के अनुसार, बघेल लोकसभा चुनाव हार गए हैं, लेकिन उन्होंने सीट पर पार्टी के वोट शेयर को मजबूत किया और जीत के अंतर को कम करने में कामयाब रहे.

बघेल ने पिछले पांच वर्ष के दौरान हर चुनौती का सफलतापूर्वक सामना करते हुए छत्तीसगढ़ की राजनीति में अपनी स्थिति मजबूत की है, लेकिन वे तीसरी बार लोकसभा चुनाव में हार से बच नहीं सके. बघेल इससे पहले 2004 और 2009 में क्रमशः दुर्ग और रायपुर सीटों से लोकसभा चुनाव हार चुके हैं.

2007 के उपचुनाव में कांग्रेस ने दर्ज की थी जीत

साल 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में जीत के बाद मुख्यमंत्री बने बघेल ने अपनी छवि 'माटी पुत्र' के रूप में बनाई और पिछले कुछ सालों में राज्य में पार्टी के सबसे मजबूत नेताओं में से एक के रूप में उभरे. पिछले विधानसभा चुनाव में बघेल की छवि पर काफी हद तक निर्भर रहने वाली कांग्रेस ने उन्हें इस लोकसभा चुनाव में राजनांदगांव सीट से चुनाव मैदान में उतारा और उनकी लोकप्रियता को भुनाने की कोशिश की. साल 2000 में छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से कांग्रेस पार्टी ने कभी लोकसभा का आम चुनाव नहीं जीता है. हालांकि 2007 में हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने यह सीट जीत ली थी.

विधानसभा चुनाव में 5 सीटों पर कांग्रेस ने जमाया था कब्जा 

राजनांदगांव लोकसभा सीट में 8 विधानसभा क्षेत्र हैं और उनमें से पांच मोहला-मानपुर, खुज्जी, डोंगरगांव, डोंगरगढ़ और खैरागढ़ में पिछले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी, जबकि भाजपा तीन सीटों राजनांदगांव, कवर्धा और पंडरिया में विजयी हुई थी. विधानसभा चुनाव के नतीजों को देखते हुए कांग्रेस इस बार लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कब्जा करने की कोशिश कर रही थी.

चुनाव में महतारी वंदन योजना का फायदा

राजनांदगांव लोकसभा सीट पर भाजपा ने हिंदुत्व के मुद्दे पर आक्रामक प्रचार किया, जिसका पार्टी को फायदा मिला. सत्ताधारी भाजपा की महतारी वंदन योजना, जिसके तहत पात्र विवाहित महिलाओं को एक हजार रुपए प्रतिमाह दिए जा रहे हैं, का भी चुनाव में असर रहा. भाजपा ने भ्रष्टाचार को लेकर भूपेश बघेल पर निशाना साधा और आरोप लगाया कि पिछले कांग्रेस शासन के दौरान छत्तीसगढ़ कांग्रेस के लिए एटीएम (धन का स्रोत) बन गया था.

पहली बार 1993 में पाटन से विधायक बने थे भूपेश बघेल

बघेल ने भाजपा के बयान का मुकाबला करने की कोशिश की और लोकसभा चुनाव के लिए अपनी पार्टी द्वारा किए गए लोकलुभावन योजनाओं का प्रचार किया. छह बार विधायक रहे बघेल का जन्म 23 अगस्त, 1961 को दुर्ग जिले में एक कुर्मी किसान परिवार में हुआ था. कुर्मी एक प्रभावशाली ओबीसी समुदाय है, जो राज्य की लगभग 2.5 करोड़ की आबादी का लगभग 14 प्रतिशत है. उन्होंने 1980 के दशक में राजनीति में प्रवेश किया और पहली बार 1993 में पाटन से तत्कालीन अविभाजित मध्य प्रदेश की विधानसभा के लिए चुने गए.

किसानों, आदिवासी समुदायों और गरीबों के लिए उनकी पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई योजनाओं ने उनकी लोकप्रियता बढ़ाने में प्रमुख भूमिका निभाई. बघेल को राज्य के उन पहले नेताओं में से एक माना जाता है, जिन्होंने क्षेत्रीय गौरव की भावना को भुनाया, 'छत्तीसगढ़ियावाद' की बात की तथा क्षेत्रीय त्योहारों, खेल, कला और संस्कृति को बढ़ावा दिया.

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