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बेसहारा पशुओं का सहारा बने कोरिया के अनुराग, 12 साल से कर रहे गायों की सेवा

Chhattisgarh के कोरिया के रहने वाले अनुराग दुबे में गाय की सेवा का ऐसा जज्बा है कि सूचना मिलते ही बेसहारा गायों के इलाज के लिए पहुंच जाते हैं. मृत गायों के अंतिम संस्कार के लिए भी वह अकेले ही दौड़ पड़ते हैं.

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बेसहारा पशुओं का सहारा बने कोरिया के अनुराग, 12 साल से कर रहे गायों की सेवा

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ के कोरिया (Koriya) के रहने वाले अनुराग दुबे (Anurag dubey) 12  सालों से बेसहारा गायों की सेवा कर रहे हैं. बेसहारा गायों की तकलीफ को देखते हुए उन्होंने अपने घर के आंगन को ही गौशाला बना दी है. गायों की देखभाल के लिए वे 3 रोटी बैंक चला रहे हैं. शहर के हर हिस्से से लोग एक रोटी गाय के नाम लेकर पहुंचते हैं. जो कि सुबह-शाम बेसहारा गायों को खिलाई जाती है. इनके इस नेक काम की हर कोई तारीफ करता है.

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1600 से ज्यादा गौ वंशों का करवा चुके हैं अंतिम संस्कार
इनमें गाय की सेवा का ऐसा जज्बा है कि सूचना मिलते ही बेसहारा गायों के इलाज के लिए पहुंच जाते हैं. मृत गायों के अंतिम संस्कार के लिए भी वह अकेले ही दौड़ पड़ते हैं. बैकुंठपुर शहर और आसपास के क्षेत्र में गौवंश की मौत होने पर भी सम्मान पूर्वक नगर पालिका की मदद से अंतिम संस्कार करवाते हैं. नगर पालिका की JCB उपलब्ध नहीं होती है, तो प्राइवेट जेसीबी मगंवाकर मृत गौवंशों का अंतिम संस्कार करवाते हैं. अब तक इन्होंने 1600 से ज्यादा गौवंशों का अंतिम संस्कार करवाया है.

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रोटी बैंक रिक्शा
इन्होंने जन सहयोग से पहली बार घर-घर से रोटी इकट्ठा करने के लिए 5 फरवरी 2019 को एक पैडल वाले रोटी रिक्शा बैंक की शुरुआत की थी. जिसे देखते हुए अगस्त 2021 में नगर पालिका प्रशासन बैकुंठपुर की मदद बैटरी और एक इंजन वाला रिक्शा प्रदान किया गया था.  यह रिक्शा बैकुंठपुर के समस्त वार्डों से रोटी कलेक्ट करता है और रात में जहां भी  गौ वशों का डेरा रहता है वहां उनको रोटी खिलायी जाती है. रोटी रिक्शा बैंक की तारीफ मुख्यमंत्री भूपेश बघेल भी कर चुके हैं.

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नहीं मिल रही मदद
ये करीब 45 गौ वंशों की देखभाल कर रहे हैं. जगह की कमी के कारण बैकुंठपुर घड़ी चौक में बाल मंदिर प्रांगण में इनकी निगरानी में छोटे-बड़े 20 गौवंशों  को रखा गया है. उनकी देखभाल भी इन्हीं के द्वारा ही की जाती है. अनुराग का कहना है कि गौसेवा के लिए प्रशासन से लगातार गोठान की मांग कर रहे हैं. लेकिन अब तक किसी भी तरह की मदद नहीं मिली है.

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