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पलायन के बाद 'मौत' लेकर लौट रहे हैं आदिवासी! कहां फेल हो रहा है सिस्टम? देखिए NDTV की पड़ताल

छत्तीसगढ़ विधानसभा में आसंदी ने पलायन को माथे पर कलंक बताया, पलायन की वजह से कई जिंदगियां तबाह हो चुकी है. आइए आपके ऐसे गांव की जमीनी हकीकत दिखाते हैं जो यह बताने के काफी है कि कैसे 'स्वर्ग' से आदिवासियों का पलायन हो रहा है और काम की तलाश में गए मजदूर बीमार होकर लौट रहे हैं.

पलायन के बाद 'मौत' लेकर लौट रहे हैं आदिवासी! कहां फेल हो रहा है सिस्टम? देखिए NDTV की पड़ताल

Tribal migration in Chhattisgarh: प्रकृति का स्वर्ग कहे जाने वाले छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के बस्तर (Bastar) से पलायन (Migration) रोकने सरकार नाकाम नजर आ रही है. नतीजतन कुछ आदिवासी पलायन (Tribals Migration) की मौत मर चुके हैं, तो कई जिंदगी और मौत के बीच संघर्ष कर रहे हैं. पलायन कर राज्य के बाहर गए कई आदिवासी जान बचाने के लिए लौट तो आए हैं, लेकिन अब उनके सामने रोजगार (Employment) की समस्या है. NDTV की टीम ने पलायन की समस्या से जूझ रहे गांव का दौरा किया, हमने पाया कि बेहतर रोजगार की तलाश में आदिवासी जान गंवा रहे हैं. तेलंगाना के पत्थर फैक्ट्री में काम करने गए 5 आदिवासियों की मौत हो गई, जबकि 30 से ज्यादा आदिवासी बीमार हैं. देखिए एनडीटीवी (NDTV) की खास रिपोर्ट.

Tribal migration in Chhattisgarh: ये उन आदिवासियों के कदम हैं जो काम की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर बढ़ जाते हैं.

Tribal migration in Chhattisgarh: ये उन आदिवासियों के कदम हैं जो काम की तलाश में दूसरे राज्यों की ओर बढ़ जाते हैं.

क्यों बस्तर कहलाता है 'स्वर्ग'?

घने जंगल... सुंदर घाटियां... और कलकल करती नदियों से घिरा दंतेवाड़ा प्रकृति के प्रेमियों के लिए धरती में स्वर्ग के जैसा है. ये हम नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़ सरकार की आधिकारिक वेबसाइट कह रही है. दंतेवाड़ा प्रकृति के प्रेमियों के लिए धरती में स्वर्ग है, लेकिन इसी स्वर्ग से प्रकृति के पूजक आदिवासी पलायन करके पत्थर तोड़ने जा रहे हैं.

अब जानिए यहां के लोगों का क्या कहना है? 

सुंदरी इसी गांव में रहती हैं, उनका कहना है कि क्रशर का काम करते थे, पत्थर का रेती, पत्थर का दाना निकालते थे, पावडर निकालते थे, फिर उसी को बोरी में पैक करते थे, हम लोग के गांव से छह लोग गए थे, एक लड़की गई थी. वही हम लोगों को लेकर गई थी, वो बोली भी चलो, पहली बार गए थे. वहीं बीमार दिख रही लक्ष्मी से जब हमने पूछा कि तबीयत कब से खराब है? तब उसने कहा कि 2 साल से खराब है, वे कहती हैं कि उनको वहां 12 हजार रुपये मिलता था.

Tribal migration in Chhattisgarh: ये उन आदिवासियों के घर की तस्वीर है जो काम की तलाश में दूसरे राज्य गए

Tribal migration in Chhattisgarh: ये उन आदिवासियों के घर की तस्वीर है जो काम की तलाश में दूसरे राज्य गए

सुंदरी और लक्ष्मी... निराला की तोड़ती पत्थर की नायिका नहीं हैं. उनके लिये ये मौत है. पत्थर तोड़ने वाले फेफड़े की गंभीर बीमारी से जूझ रहे 8 आदिवासी दिसंबर 2024 के तीसरे सप्ताह में दंतेवाड़ा से राजधानी रायपुर के मेकाहारा अस्पताल में इलाज के लिए रेफर किए गए. ये उस 29 सदस्यीय दल में शामिल हैं. जो रोजगार की तलाश में धरती के स्वर्ग से पलायन कर हैदराबाद की एक कंपनी में अच्छे रोजगार की तलाश में गए थे, लेकिन जानलेवा बीमारी लेकर लौटे. दल में शामिल सुकेश कुंजाम और लक्ष्मी कड़ती की हालत ज्यादा खराब थी.

दंतेवाड़ा जिले के सीएमएचओ अजय रामटेके का कहना है कि नॉलेज में आया था कुछ मजदूर जो काम करने गए थे, उन्हें सांस लेने में दिक्कत हो रही थी, पूछताछ करने पर पता चला कि उस फैक्ट्री में काम करने गए 4 मजदूरों की मौत हो चुकी है, हम लोग कैंप लगाकर लोगों की जानकारी ली, 7 लोगों की स्थिति ज्यादा खराब होने पर उन्हें रायपुर रेफर किया गया है, एक महीने से उनका इलाज चल रहा है.

फैक्ट्री में नहीं होता नियमों का पालन : पीड़ित

रायपुर के मेकाहारा अस्पताल में भर्ती इन मरीजों ने हमें बताया कि 10 से 15 हजार रुपये प्रति महीने वेतन की उम्मीद में दंतेवाड़ा के कई गांवों के आदिवासी पलायन कर हैदराबाद की एक क्रशर फैक्ट्री में जाते हैं. सुरक्षा के मापदंडों का पालन नहीं होने की वजह से ना सिर्फ फेफड़े की गंभीर बीमारी से पीड़ित हो गए हैं, बल्कि पिछले एक साल में करीब 10 लोगों की मौत भी हो चुकी है. गांव की महिला कुमारी का कहना है कि गांव से दस लोग गए थे, कोई ठीक नहीं है, गांव का ही एक जन ले गया था, 15 हजार रुपये मिलता था.

मेकाहारा अस्पताल में भर्ती मरीजों से बात करने के बाद हमने दंतेवाड़ा से आदिवासियों के पलायन की वजह और उसे रोकने किए जा रहे सरकारी प्रयासों की पड़ताल शुरू की. रायपुर से करीब 400 किलोमीटर दूर हम दंतेवाड़ा के कुटरेम गांव पहुंचे.

यहां पहुंचते ही हमें सुकराम मिले. सुकराम के भाई सोना पलायन कर हैदराबाद की कंपनी में काम करने गए थे, लेकिन गंभीर बीमारी लेकर लौटे. कुछ दिन इलाज चला लेकिन जान नहीं बच सकी.

सुकराम का कहना है कि पावडर कंपनी में काम करने के लिए गए थे, यहीं आकर खत्म हुआ, बहुत बीमार होकर आया, अस्पताल लेकर गया था, लेकिन ठीक नहीं हुआ खत्म हो गया, वहीं से बीमार होकर आया था, पावडर पूरा शरीर में घूस गया था.

Tribal migration in Chhattisgarh: ये आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं

Tribal migration in Chhattisgarh: ये आंकड़े बहुत कुछ कहते हैं
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

NDTV टीम के द्वारा की गई पड़ताल में हमें अब तक पता चला चुका था कि दंतेवाड़ा के किरंदुल से लगे कुटरेम, भांसी, मदाड़ी, अर्बे समेत कई गांवों से बड़ी संख्या में पलायन होता है. हैदराबाद की कंपनी से बीमार होकर लौटे 29 आदिवासी युवाओं में से करीब 15 कुटरेम के ही रहने वाले हैं. हैदराबाद की फैक्ट्री में काम करने गए 21 से 25 साल के 4 लोगों की मौत हो चुकी है.
Tribal migration in Chhattisgarh: कौन ले रहा है आदिवासियों की जान?

Tribal migration in Chhattisgarh: कौन ले रहा है आदिवासियों की जान?
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

कौन ले जा रहा है मौत की फैक्ट्री तक?

गांव के जगन्नाथ कुंजाम बताते हैं कि मालूम नहीं है कि सबसे पहले वहां का रास्ता कौन दिखाया है, लेकिन सबसे पहले वही गई, उधर से वापस आने के बाद लिंगे, गांव वालों को बोली की थोड़ा-थोड़ा बोरी उठाना है, प्रतिदिन का 500 रुपये मिलेगा, वैसी बोलकर ले गई है, ये अपना भाई भी गया था, ये भी मौत से लड़ रहा है. अपने गांव में अब तक पांच-छह लोग खत्म हो गए, इस एरिया में जितने लोग उस कंपनी में गए हैं, एक भी कोई बचा नहीं है, पूरा खत्म हो रहे हैं.

NDTV की टीम यह भी जानने की कोशिश की कि क्या सिर्फ हैदराबाद की फैक्ट्री में ही ग्रामीण काम करने जा रहे हैं या पलायन दूसरे कामों के लिए भी हो रहा है. इस पर भीमा कुंजाम कहते हैं कि मिर्ची तोड़ने भी जाते हैं, इसके अलावा हैदराबाद भी जाते हैं, अपनी मर्जी से जाते हैं, बता कर जाते तो अच्छा रहता, हम लोगों को पता रहता.

Tribal migration in Chhattisgarh: क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े

Tribal migration in Chhattisgarh: क्या कहते हैं सरकारी आंकड़े
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

छत्तीसगढ़ के श्रम विभाग की आधिकारिक वेबसाइट में राज्य से पलायन करने वालों की दर्ज संख्या महज 4265 है. सरकारी आंकड़े मुताबिक दंतेवाड़ा जिले से पलायन करने वालों की पंजीकृत संख्या महज 9 है. जबकि नवंबर-दिसबंर 2024 में हैदराबाद से बीमार होकर लौटे आदिवासियों की संख्या 29 है, ये सभी पलायन कर बेहतर रोजगार की तलाश में गए थे. वहीं एक अनुमान के मुताबिक राज्य से 10 लाख से ज्यादा श्रमिक बेहतर रोजगार के लिए दूसरे प्रदेश में पलायन करते हैं. कोरोना लॉकडाउन के समय राज्य में पलायन का मुद्दा सुर्खियां बना था. कोरोना लॉकडाउन के दौरान राज्य के बाहर पलायन कर गए करीब 7 लाख 32 हजार श्रमिकों ने वापसी के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया था. तब दंतेवाड़ा जिले से ही पलायन करने वाले 4,200 श्रमिक वापस लौटे थे. दंतेवाड़ा के गांवों से पलायन करने वाले 30 से ज्यादा आदिवासी गंभीर बीमारी लेकर लौटे हैं.

Tribal migration in Chhattisgarh: ऐसे कोरोना काल के आंकड़े

Tribal migration in Chhattisgarh: ऐसे कोरोना काल के आंकड़े
Photo Credit: Ajay Kumar Patel

जब पलायन कर रहे हैं लोग तो सरकार को पता भी नहीं रहता है. हैदराबाद की फैक्ट्री से बीमार होकर लौटे लोगों की जानकारी स्वास्थ्य विभाग जुटा रहा है. बीमारों के इलाज का इंतजाम भी स्वास्थ्य विभाग कर रहा है, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि प्रशासन ने पलायन रोकने क्या कदम उठाए?

सरकार पर उठे सवाल

कुटरेम गांव के युवा जोगा कुंजाम कहते हैं कि गांव में रोजगार के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई है. वहीं देवा का कहना है कि काम मिलता नहीं है, मजबूरी में गए थे न, काम मिलता ही नहीं है न तो क्या करें? बुधराम कहते हैं कि काम नहीं मिलता है न सर.

जबकि सीएमएचओ अजय रामटेके का कहना है कि जिला प्रशासन द्वारा अपील जारी किया गया था कि जो भी उस फैक्ट्री में काम करने गए थे, वो संपर्क करें, इसके अलावा आसपास के जिलों को भी जानकारी दी गई थी कि जो भी उस फैक्ट्री में काम करने गए हैं, उनकी जानकारी जुटा ली जाए, उस फैक्ट्री में काम करने न जाएं इसकी भी अपील की गई है.

आदिवासियों को पलायन करा कौन रहा है?

दंतेवाड़ा के सामाजिक कार्यकर्ता रामनाथ नेगी कहते हैं कि मानव तस्करी और दलाल भी एक्टिव हैं, कम पैसे में मजदूर दूसरे राज्यों में काम के लिए जाते हैं, वहां के लोकल मजदूर काम नहीं करते, क्योंकि उन्हें पता है कि वहां काम करना जानलेवा होता है, यहां से दलाल उन्हें लेकर जाते हैं.

खनिज न्यास मद से होने वाली आय के मामले में दंतेवाड़ा राज्य का दूसरा सबसे अमीर जिला है. इस मद से ही 500 करोड़ रुपये से ज्यादा की सालाना आय होती है. इस अमीर जिले के कुटरेम गांव में ऐसा नहीं है कि पलायन इकलौती समस्या है. गांव में हमने जो देखा, वो आप भी देख लीजिए.

पलायन को भले ही छत्तीसगढ़ के माथे पर कलंक कहा गया है, दंतेवाड़ा के मामले बताते हैं कि कैसे पलायन आदिवासियों की जान ले रहा है, लेकिन सरकारी फाइलों में ये कम हो गया है. छत्तीसगढ़ के श्रम मंत्री लखन लाल देवांगन का कहना है कि पलायन अब कम हो गया है, फिर मैं आपके माध्यम से अपील करना चाहता हूं कि छत्तीसगढ़ में ही रोजगार के बेहतर अवसर उपलब्ध हैं, पलायन कर दूसरे राज्यों में न जाएं.

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