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Lack of Doctors: अस्पताल भी, मरीज भी, लेकिन डॉक्टर नहीं... बस्तर संभाग में 355 में सिर्फ 45 विशेषज्ञ डॉक्टर मौजूद

Bastar Doctors: बस्तर जिले में विशेषज्ञ डॉक्टरों की भारी कमी है. मतलब, यहां किसी बीमारी का इलाज कराने के लिए मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ता है. आइए आपको इस समस्या के बारे में विस्तार से जानकारी देते हैं.

Lack of Doctors: अस्पताल भी, मरीज भी, लेकिन डॉक्टर नहीं... बस्तर संभाग में 355 में सिर्फ 45 विशेषज्ञ डॉक्टर मौजूद
जगदलपुर के नए बने अस्पताल में डॉक्टरों की कमी

Lack of Doctors in Bastar: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) का बस्तर संभाग प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध तो है, लेकिन दूसरी तरफ, स्वास्थ्य सेवाओं के नाम पर बेहद गरीब है. यहां इलाज कराना एक लंबी लड़ाई लड़ने जैसा है. संभाग में विशेषज्ञ डॉक्टरों के 355 स्वीकृत पद हैं और हकीकत ये है कि सिर्फ 45 डॉक्टर ही अपनी सेवाएं दे रहे हैं. यानी, लगभग 310 पद आज के समय तक भी खाली पड़े हुए हैं. ये खाली पद सिर्फ़ आंकड़े नहीं हैं, ये वो खाली कुर्सियां हैं जिन पर किसी की जान बच सकती थी. हर अस्पताल में डॉक्टरों का इंतज़ार हो रहा है.

बस्तर संभाग में विशेष डॉक्टरों की भारी कमी

बस्तर संभाग में विशेष डॉक्टरों की भारी कमी

बस्तर के हर जिले में डॉक्टरों की स्थिति दयनीय

हर मरीज अस्पताल की ओर देख रहा है. लेकिन, डॉक्टरों की मौजूदगी सिर्फ़ पोस्टर या योजनाओं तक सिमटी है. विशेषज्ञ डॉक्टरों की भूमिका साधारण नहीं होती. ये वे लोग होते हैं, जिनके पास किसी महिला की सुरक्षित डिलीवरी से लेकर किसी वृद्ध के हार्ट अटैक तक का इलाज होता है. जिनकी मौजूदगी से एक छोटा सीएचसी भी बड़ा जीवनदाता बन सकता है. लेकिन, बस्तर के हर जिले की तस्वीर अलग नहीं, बल्कि एक जैसी दयनीय है.

इन जिलों में हैं इतने विशेषज्ञ डॉक्टरों की स्वीकृति

  • बस्तर - 67 पद स्वीकृत, 12 डॉक्टर कार्यरत
  • कांकेर - 68 पद में से 14 डॉक्टर कार्यरत
  • कोंडागांव - 51 पद में 7 डॉक्टर कार्यरत
  • नारायणपुर - 31 पद में 5 डॉक्टर कार्यरत
  • दंतेवाड़ा - 44 पद में 4 डॉक्टर कार्यरत
  • बीजापुर - 62 पद में 3 डॉक्टर कार्यरत
  • सुकमा - 32 पद लेकिन एक भी विशेषज्ञ डॉक्टर नहीं

मरीजों की संख्या बहुत

बस्तर संभाग का ये हाल तब है, जब इन जिलों में नक्सल, सड़क हादसे, प्रसव जटिलताएं और वायरल बीमारियों की भरमार है. जब छोटे अस्पतालों में इलाज नहीं होता तो दबाव सीधे ज़िला अस्पतालों पर आता है. जगदलपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा जैसे प्रमुख संस्थानों पर रोज़ाना सैकड़ों मरीज पहुंचते हैं. कई गंभीर केस हैं, लेकिन डॉक्टर कम है. ओपीडी में भीड़, ऑपरेशन थिएटर में प्रतीक्षा, और वार्डों में इलाज की बजाय उम्मीदें पड़ी होती हैं.

डॉक्टरों के लिए भी बड़ी परेशानी

सिर्फ मेडिकल संसाधन नहीं, मानसिक थकावट भी डॉक्टरों के अंदर दिखने लगी है. एक विशेषज्ञ डॉक्टर एक साथ तीन विभाग संभाल रहा है. जांच, परामर्श और ऑपरेशन. क्या ये किसी भी इंसान के लिए संभव है? मरीजों की मजबूरी उन्हें रायपुर, विशाखापट्टनम या हैदराबाद ले जाती है. सैकड़ों किलोमीटर की दूरी, हजारों का खर्च और कई बार वक्त की देरी जान पर भारी पड़ती है. इसी बीच एक और हैरान करने वाली सच्चाई सामने आती है सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल, जो जगदलपुर में केंद्र सरकार की योजना से बनकर तैयार हो गया है, आज तक शुरू नहीं हुई है.

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आज भी शुरू नहीं हुआ सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल

भवन तैयार है, मशीनें लग चुकी हैं, लेकिन डॉक्टर नहीं हैं. इस वजह से जगदलपुर में बना सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल आज भी शुरू नहीं हो सका है. यानि एक और इमारत, एक और इनागरेशन, लेकिन मरीजों के लिए कोई उपयोग नहीं... इन नियुक्तियों में सबसे बड़ी रुकावट है फंडिंग और प्राथमिकता. जिला खनिज न्यास निधि (DMF) जैसे फंड मौजूद हैं, जिनका उपयोग स्वास्थ्य सेवाओं में हो सकता है, लेकिन अधिकतर जिलों में यह फंड अन्य योजनाओं या कागजी योजनाओं में ही खप गया.

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