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78th Independence Day: ऐसे युगपुरुष जिन्हें गिरफ्तार करने में British पुलिस भी सोचती थी दो बार, जानें-कैसा था इनका जीवन 

Independence Day 2024: आजादी की लड़ाई में उस वक्त में छत्तीसगढ़ से गए एक ऐसे भी स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्हें अंग्रेज गिरफ्तार करने से भी डरते थे. पूरी लड़ाई में लालचंद जैन का अपना एक अलग दबदबा था. 

78th Independence Day: ऐसे युगपुरुष जिन्हें गिरफ्तार करने में British पुलिस भी सोचती थी दो बार, जानें-कैसा था इनका जीवन 
स्व. लालचंद जैन (Profile Photo)

Freedom Fighter from CG: स्वतंत्रता संग्राम के ग्रामीण इतिहास में स्वर्गीय लालबंद जैन (Lalchand Jain) का अपना अलग योगदान रहा. आजादी के आंदोलन काल (Struggle Time) में भी लालचंद जैन का इतना वैभव और दबदबा था कि अंग्रेज पुलिस (British Police) इन्हें गिरफ्तार करने से भी घबराती थी... Independence के पहले अंग्रेज पुलिस कप्तान ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि क्रांतिकारी लालचंद जैन एक ऐसा शख्स हैं, जिसके खिलाफ कोई गवाही नहीं देता. सतगढ़ जमींदारी क्षेत्र में पेड़ा में लालचंद जैन का आलीशान बाड़ा नुमा घर एवं आड़त क्रांतिकारियों के अज्ञातवास काटने की स्थली रही. पूरे क्षेत्र में लालचंद जैन की आदत ही एक ऐसी जगह थी, जहां जर्मन रेडियो (German Radio) सुना जाता था. उन दिनों जर्मन रेडियो सुनने पर प्रतिबंध था. लेकिन, अज्ञातवास काटने वालें क्रांतिकारी जर्मन रेडियो ही सुनते थे. स्थानीय अंग्रेज दरोगा कई बार रेडियो जब्त करने की कोशिश में लालचंद जैन के बाड़े तक आया करते, लेकिन बाड़े में घुसने की हिम्मत नहीं हुई...

अंग्रेज थानेदार को करा दिया था निलंबित

सत गढ़ जमींदारी तहसील कांग्रेस अध्यक्ष रहते हुए नेता लालचंद जैन ने एक अंग्रेज थानेदार को निलंबित कराया था और एक अंग्रेज थानेदार को सार्वजनिक रूप से कनवुचची लगवा कर माफी दे दी थी. पसान के पास ग्राम बैरा के प्रतिष्ठित गौटिया को थानेदार ने सार्वजनिक रूप से हथकड़ी लगाकर गांव लाया था. इस घटना से आसपास के ग्रामीण क्षुब्ध थे. बाद में थानेदार ने गोटिया पर दबाव बनाकर कुछ लेनदेन करके छोड़ दिया. गोटिया के साथ अंग्रेज पुलिस द्वारा की गई इस अभद्रता की जानकारी जब ग्रामीणों ने नेताजी लालचंद को दी, तो वह गुस्से से आगबबूला हो उठे.

आजादी की लड़ाई में निभाई थी अहम भूमिका

आजादी की लड़ाई में निभाई थी अहम भूमिका

उन्होंने बैरा जाकर गांव के लोगों की बैठक ली और अंग्रेज थानेदार के खिलाफ गवाही तैयार की. अंग्रेज थानेदार को मजा चखाने की योजना तैयार की. ब्रिटिश काल में भी ऐसा रुल था कि यदि किसी व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार करती है, तो उसे नियम के अनुसार कोर्ट में प्रस्तुत करना होगा. पुलिस अपने मन से नहीं छोड़ सकती थी. लेकिन, अंग्रेज दरोगा ने गौटियां पर दबाव बनाकर पैसा लेकर छोड़ दिया था. इसलिए दरोगा घबराया और बैरा जाकर ग्रामीणों को गवाही न देने के लिए कहा. इस पर ग्रामीणों ने दरोगा को सीधे जवाब दिया कि अब नेताजी ही फैसला करेंगे.

इस आंदोलन से शुरू हुई आजादी की यात्रा

वैसे तो ब्रिटिश कालीन मध्य प्रांत में अविभाजित बिलासपुर जिला गांधीवादी राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन का प्रधान केंद्र रहा है. इस जिले में स्वाधीनता आंदोलन का आविर्भाव 1921 में महात्मा गांधी द्वारा प्रेरित राष्ट्रव्यापी असहयोग आंदोलन की युग परिवर्तनकारी घटना से हुआ. इसके साथ सतगढ़ जमींदार क्षेत्र पेंड्रा में सुभाष चंद्र बोस की विचारधारा से प्रेरित लालचंद जैन के आसपास स्वतंत्रता आंदोलन संचालित रही, जो लगातार प्रवाहित होता हुआ 1947 में स्वाधीन के सुनहरे सुबह के आगमन के बाद ही समाप्त हुआ. अविभाजित बिलासपुर जिले का लगभग आधा क्षेत्रफल एवं एक तिहाई आबादी वाला भू भाग सात जमींदारियों में जिला प्रशासन के राजनीतिक नियंत्रण में इन जमींदारियों के जमींदार सामंतों की भांति राज प्रबंधन करते थे. जहां स्वतंत्रता लोकतंत्र और बौद्धिक जागृति संबंधी आंदोलनों के लिए कठोर राजकीय प्रतिबंध एवं दमन चक्र विद्यमान था. सतगढ़ जमींदारी में केंदा, छूरी, लाफा, मातिन, चापा पोड़ी उपरोड़ा और पेंड्रा आदि सम्मिलित थी. ईस्टर्न गण जमींदारियों में पेंडा केंद्रवर्ती जमींदारी थी, जहां स्वतंत्रता आंदोलन क्रांतिकारी नेता लालचंद जैन संचालित करते रहे.

बाड़ेनुमा घर में रहते थे लालचंद जैन

बाड़ेनुमा घर में रहते थे लालचंद जैन

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इस काम का मिला था जिम्मा

सन्न 1923 से 1928 के वर्षों में पूरे छत्तीसगढ़ में काउंसिल वास का आंदोलन अपने चरम पर था. गांधीवादी आंदोलनों को सतगढ़ जमींदारों में प्रचारित एवं संगठित करने का जिम्मा पेंडा के लालचंद जैन को सौंपा गया था. जैन ने अपने साथियों के साथ सरकार जमींदारी में नवयुवक कार्यकर्ताओं के छोटे-छोटे दल बनाए और चरखा दर एवं मद्य निषेध कार्यक्रमों का प्रचार-प्रसार किया. पेंड्रा पसान कटघोरा एवं पोड़ी उपरोड़ा आदि स्थानों में किसान सक्रियता से जुड़ने लगे. जमींदारी हलकों में गांधीवादी कार्यक्रमों से जुड़े किसानों पर ही जमींदारी खेतों की प्रहार तथा मुकदमे बाजी के विरुद्ध सन्न 1928 में कटघोरा तथा पेंड्रा में प्रदर्शन हुए थे, जिसमें किसानों को जमींदारी दमन चक्र का शिकार होना पड़ा था. लालचंद जैन ने सन 1931 से 1952 तक छत्तीसगढ़ जमींदारी कटघोरा तहसील कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष रहे. कांग्रेस में ही सदर तहसील अध्यक्ष की हैसियत से लालचंद जैन ग्रामीण एवं सुदूर अंचलों में पैदल घोड़ी एवं बैल गाड़ियों से जाकर कांग्रेस की सदस्यता रसीद काटते थे. 

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इस वजह से पेंड्रा भेजा था कांग्रेस ने 

लालचंद जैन के पेंड्रा आने का मकसद त्रिपुरी कांग्रेस के लिए चंदा जमा करना था. स्व. लालचंद जैन एवं स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. दाताराम तिवारी समेत अनेक क्रांतिकारियों ने त्रिपुरी कांग्रेस सम्मेलन में हिस्सा लिया था. सन् 1937 में सत्याग्रह आंदोलन का दौर पूरे मध्य प्रांत में आरंभ हुआ. तब बिलासपुर जिले के कार्यकर्ता पेंड्रा पहुंचे. महाकौशल अंचल के युवा साथियों के सानिध्य में पेंड्रा के लालचंद मुंबई गए जहां नरीमन जैसे प्रख्यात राष्ट्रवादी नेता का सानिध्य प्रात हुआ. लालचंद इस समूचे कालावधि में सद्रुण जमींदरी कांग्रेस काउंसिल के अध्यक्ष रहे और महाकौशल कांग्रेस कमेटी तथा बिलासपुर जिला कांग्रेस काउंसिल के सहयोग से जमींदारों में स्वाधीनता सत्याग्रह आंदोलन का सफलता पूर्वक संचालन किया. उनके नेतृत्व में पेंड्रा तथा अन्य जमींदारियों के लगभग 5000 सत्याग्रह कार्यकर्ता संगठित थे.

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