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छत्तीसगढ़ में आज से शुरू हो जाएगा हरेली तिहार के त्योहार का दौर, इस दौरान किसान करेंगे अपने कृषि औजारों की पूजा

Chhattisgarh News: हरेली का त्योहार छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण और प्राचीन त्योहारों में से एक है. ग्रामीण परिवेश में सबसे ज्यादा इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. हरेली शब्द का अर्थ हरियाली से है. इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य खेती और हरियाली के महत्व को बताता है.

छत्तीसगढ़ में आज से शुरू हो जाएगा हरेली तिहार के त्योहार का दौर, इस दौरान किसान करेंगे अपने कृषि औजारों की पूजा
Chhattisgarh Latest News: छत्तीसगढ़ में शुरू हो जाएगी हरेली तिहार की धूम

Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में परंपरा और संस्कृति को जीवित रखने के लिए हरेली एक महत्वपूर्ण त्योहार है. इस त्योहार के माध्यम से लोग अपने धरोहर और पूर्वजों की परंपरा को संजोए रखते हैं. प्रदेश के लोगों के लिए खुशी की बात है कि आज से इस त्योहार का दौरा शुरू हो जाएगा.

किसान कृषि औजारों की करते हैं पूजा

छत्तीसगढ़ में कृषि का अलग ही महत्व है और यह प्रदेश अपने परंपरागत खेती के लिए भी अपनी पहचान रखता है. कृषि कार्यों में सबसे ज्यादा कृषि उपकरणों का प्रयोग होता है. इसलिए हरेली त्योहार के दौरान लोग अपनी पारंपरिक वेशभूषा तो पहनते ही हैं, इसके अलावा किसान अपने खेतों में उपयोग किए जाने वाले हल, गेती, हसिया, रापा,कुल्हाड़ी, बसूला,सब्बल सहित अन्य कृषि उपकरणों की पूजा अर्चना कर आशीर्वाद लेते हैं.

इस दौरान मीठे पकवान भी बनाए जाते हैं

इस त्योहार की इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के विभिन्न पारंपरिक मीठे पकवान भी बनाए जाते हैं. जिसमें चावल दाल सब्जी तो है ही है इसके अलावा सबसे प्रमुख पकवान होता है चीला, गुलगुला भजिया, बबरा. इन पकवानों को महिलाओं के द्वारा बड़े ही उत्साह के साथ घर के सदस्यों के द्वारा मिलकर बनाया जाता है. इस निर्माण में सामाजिक महत्व भी बहुत अधिक होता है क्योंकि घर के सभी लोग मिलजुल कर इस कार्य को करते हैं.

घर वाहनों व प्रतिष्ठानों में नीम की डाली लगाई जाती है

हरेली  त्योहार के अवसर पर यादव समाज के लोग गायों की सेवा करते हैं. उसे चराते हैं उनके द्वारा किसानों के घरों में पहुंचकर नीम की डाली लगाई जाती है, और व्यापारी के दुकानों व वाहनो में भी जाकर नीम की डाली लगाकर उन्हें सुख समृद्धि की कामना करते हैं ताकि उनका रोजगार और घर यूं ही उनके दिए हुए सहयोग से चलता रहे.

भगवान गौरी गौरा की भी की जाती है पूजा

हरेली तिहार के अवसर पर कई जगह महिलाएं भगवान गौरी गौरा की भी पूजा करते हैं. इस दौरान मिट्टी से बनी भगवान की मूर्तियां बनाकर उसे सजाया जाता है और विभिन्न घर में बने हुए पकवान का भोग लगाकर उसकी पूजा अर्चना की जाती है. और बाद में उसे गांव के तालाब या नदी में विसर्जन कर दिया जाता है.

चुरेलीन दाई के पूजा का विशेष महत्व

गांव में जो चुरैलिन दाई की जगह होती है,किसान काली चूड़ी समर्पित करते हुए हुम देकर दाई से आशीर्वाद प्राप्त करते हैं. हरेली तिहार के दिन किसान अपने खेतों की ओर नहीं जाते हैं बल्कि इस दौरान वह अपने गांव में ही रहकर इस त्योहार का आनंद लेते हैं. इस दौरान विभिन्न खेलों का आयोजन किया जाता है. जिसमें सबसे लोकप्रिय खेल "गेड़ी"है. जिसमें युवा बुजुर्ग सभी चढ़ते हैं यह विशेष रूप से बांस की लकड़ी से बनाया जाता है. इसके अलावा कबड्डी, खो-खो, नारियल फेक सहित अन्य पारंपरिक ग्रामीण खेलों को खेला जाता है जिसमें महिलाएं,युवती युवा, बच्चे बुजुर्ग सभी शामिल होते हैं.

छत्तीसगढ़ का है प्राचीन त्योहार

हरेली का त्योहार छत्तीसगढ़ का एक महत्वपूर्ण और प्राचीन त्योहारों में से एक है. ग्रामीण परिवेश में सबसे ज्यादा इसे बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है. हरेली शब्द का अर्थ हरियाली से है. इस त्योहार का मुख्य उद्देश्य खेती और हरियाली के महत्व को बताता है. किसान अपने खेतों की अच्छी फसल और समृद्धि की कामना करते हैं, ताकि उनकी फसल हरी भरी रहे और राज्य भी हमेशा सुख समृद्धि की ओर आगे बढ़े. इसी कामना को लेकर किसान हरेली तिहार बड़े ही धूमधाम से मनाते हुए सुख समृद्धि की कामना कर पूजा अर्चना करते हैं और भगवान को मीठे पकवान लगते हैं. 

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