
The game of corruption: दंतेवाड़ा जिले में DMF की बड़ी राशि के तहत हो रहे कामों में भारी भ्रष्टाचार की बू आ रही है. ताजा मामला जिले के नक्सल इलाके में सड़क निर्माण का है. यहां PMGSY विभाग ने महज 8 किमी की सड़क को 14 भागों में बांटकर करप्शन का लम्बा खेल खेला है. इसका खुलासा होते ही हड़कंप मच गया और कलेक्टर ने अफसर को तुरंत नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.

दरअसल दंतेवाड़ा जिले के मोखपाल से छोटेगुडरा गांव में एक सड़क 7.40 किलोमीटर दूरी की एक डामरीकृत सड़क का निर्माण किया जाना था. इसके लिए DMF (जिला खनिज न्यास निधि) मद से PMGSY विभाग को एजेंसी बनाकर पूर्व कलेक्टर विनीत नंदनवार के कार्यकाल में टेंडर करवाया गया था. जहां निविदा प्रक्रिया के नियमों को पूरी तरह से ताक में रखकर साढ़े 7 किमी की सड़क निर्माण कार्य को 14 भागों में बांट दिया.ताकि आसानी से निर्माण शाखा द्वारा गोपनीय टेंडर प्रक्रिया को दंतेवाड़ा ऑफिस में बैठकर ही पूरा कर लिया जाए.
ये है नियम
नियम ये है कि निर्माण शाखा के विभागीय ईई को 50 लाख रुपये तक की तकनीकी स्वीकृति देने का अधिकार होता है. इससे ऊपर की तकनीकी स्वीकृति के संभाग और प्रदेश स्तर से होती है. यही कारण है दंतेवाड़ा जिले में सभी कामो को जिला निर्माण समिति द्वारा पहले कई भागों में लगाकर मैन्युल पद्दति से किया जा रहा था. यहां जिले के रसूखदार ठेकेदार कमीशन की मोटी रकम अधिकारियों तक पहुंचाकर कामों की बंदरबांट करते हैं.
शिकायत पर कलेक्टर ने शुरू की जांच
दंतेवाड़ा कलेक्टर ने PMGSY विभाग के अंतर्गत सड़कों कीआई शिकायतों के निराकरण के लिए ठेकेदारों को नोटिस जारी कर 3 दिनों के अंदर जवाब मांगा है. छोटेगुडरा से मोखपाल सड़क पर प्रक्रियानुसार निविदा नियमों को दरकिनार कर लिया गया. जिसके लिए विज्ञापन भी गलत तरीके से छपवाया गया है. ठेकेदार पर प्री कांट्रेक्ट एग्रीमेंट के नियम 4 एवं 4.5 का उल्लंघन बताया गया है. बता दें कि दंतेवाड़ा जिले में इस तरह प्री कांट्रेक्ट एग्रीमेंट में कई ठेकेदार शामिल होकर नियम विरुद्ध टेंडर प्रक्रिया अपनाकर करोड़ों रुपये का काम कर रहे हैं. अगर पारदर्शिता से जांच हो जाए तो निर्माण की अन्य शाखाओ में भी बड़े खुलासे हो सकते हैं.
जानिए क्या है DMF
दरअसल DMF(डिस्ट्रिक मिनरल्स फंड) होता है. बस्तर की धरती से निकलने वाले लोहे के बदले कुछ अंश खनन राशि एनएमडीसी द्वारा हर साल दंतेवाड़ा जिला प्रशासन को दिया जाता है. यह राशि अनुमानित हर वर्ष 500 करोड़ रुपये से ऊपर बस्तर के पिछड़े इलाकों में स्वास्थ्य शिक्षा और मूलभूत विकास के नाम पर खर्च करने को मिलती है. लेकिन दंतेवाड़ा जिले में आज भी खनन प्रभावित क्षेत्रों में शिक्षा-स्वास्थ्य और गरीबी से ग्रामीण जूझ रहे हैं.
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