
Chhattisgarh News: छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के गरियाबंद जिले (Gariband) के क्षेत्र में बसा एक ऐसा गांव भी है, जहां आजादी के 76 वर्ष बीत जाने के बाद भी लोग बुनियादी सुविधाओं को तरस रहे हैं. ये क्षेत्र सड़क, बिजली, शिक्षा, स्वास्थ्य की सुविधाओं से पूरी तरह से वंचित है.
मूलभूत सुविधाओं को तरस रहे हैं ग्रामीण
यहां पर विशेष पिछड़ी जनजाति कमार जनजाति के लोग निवास करते है, लेकिन इनकी सुध ना तो यहां का प्रशासन ही ले रहा है और ना ही यहां के जन प्रतिनिधि. सबसे बड़ी बात है कि चुनाव में भी नेता इनसे वोट मांगने इनके गांव नही पहुंचते हैं. ये ग्रामीण वोट डालने 8 किलोमीटर के पहाड़ी का सफर तय करके कर बारुका पंचायत पहुंचते थे. जिला मुख्यालय से 25 किलोमीटर की दूरी पर बसा ये गांव गाहंदर है, जो आज भी मूलभूत सुविधाओं को तरस रहा है, बारूका पंचायत का आश्रित गांव गाहंदर जहां की आबादी तकरीबन 50 लोगों की है, मगर उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं है.
आपको जानकर अचरज होगा कि गरियाबंद जिले का पहला ऐसा गांव है, जहां लोग मतदान तो करते है, पर उनका जनप्रतिनिधि उनका विधायक, उनके क्षेत्र का सांसद कौन है? ये वो नही जानते. यहां तक कि प्रदेश के मुख्यमंत्री तक के नाम से ग्रामीण अंजान हैं.
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गाहंदर गांव में रहने वाले लोगो ने बताया कि उनके बच्चे पढ़ने के लिए बारूक़ा, गरियाबंद के हॉस्टल में रहने को मजबूर है, क्योंकि उनके गांव में स्कूल नहीं है. अगर इस गांव में रहने वाले लोगों की तबीयत खराब हो जाए तो उसे कांवर में उठाकर इलाज के लिए बारऊका पंचायत या गरियाबंद ले जाया जाता है.
ग्रामीण बताते है, बहुत पहले एक कलेक्टर आए थे, तो सोलर पैनल लगा था, लेकिन अब वो भी ठीक तरीके से काम नही करता है. ग्रामीणों से जब पूछा गया कि इस बार विधानसभा चुनाव में वो वोट करने जाने वाले है, तो उन्होंने बताया कि कल एक गुरुजी आए थे, पर्ची छोड़ के गए है, कौन प्रत्याशी है, ये तो उन्हें नहीं मालूम है लेकिन मतदान केंद्र तक जाने की व्यवस्था हो जायेगी तो वो जरूर जाएंगे.