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जुर्म माफ़,सियासत साफ़ ! सरेंडर नक्सलियों को साय कैबिनेट के 'तोहफे' पर क्यों मचा सियासी घमासान ?

Naxal in Chhattisgarh: छत्तीसगढ़ में नक्सलवाद को खत्म करने की दिशा में विष्णु देव साय सरकार ने बड़ा फैसला लेते हुए आत्मसमर्पित नक्सलियों पर दर्ज आपराधिक केस वापस लेने की कवायद शुरू कर दी है. इस कदम पर राज्य में सियासी बवाल मच गया है, क्योंकि विपक्षी दल कांग्रेस और नक्सल हिंसा के पीड़ित इसे शहीदों और पीड़ितों का अपमान बता रहे हैं.

जुर्म माफ़,सियासत साफ़ ! सरेंडर नक्सलियों को साय कैबिनेट के 'तोहफे' पर क्यों मचा सियासी घमासान ?

Naxals Case Withdrawal: छत्तीसगढ़ में नक्सलियों को खत्म करने की जो मुहिम चल रही है, उस दिशा में विष्णु देव साय सरकार ने एक ऐसा बड़ा पत्ता खेला है, जिस पर राज्य में सियासी हंगामा खड़ा हो गया है. सरकार ने हथियार छोड़कर आम ज़िंदगी जीने लौट रहे नक्सलियों पर दर्ज अपराधिक केस वापस लेने की तैयारी शुरू कर दी है. लेकिन इस पर कांग्रेस और नक्सली हमलों में अपनों को खोने वाले पीड़ितों का संघ भड़क गया है. उनका साफ कहना है कि यह पीड़ितों की बेइज्जती है.

सरेंडर करने वालों को सरकार का 'बड़ा ईनाम'

दरअसल,10 दिसंबर को साय कैबिनेट ने इन सरेंडर कर चुके नक्सलियों को राहत देने के लिए एक अहम फैसला लिया. उपमुख्यमंत्री अरुण साव ने बताया कि ऐसे केसों की जांच के लिए एक छोटी कमिटी (उप-समिति) बनाई जाएगी, जो देखेगी कि किन केसों को कोर्ट से वापस लिया जा सकता है.

अरुण साव का कहना है कि "यह फैसला हमारी नई नक्सली पुनर्वास नीति-2025 के हिसाब से है. अगर कोई नक्सली अच्छा व्यवहार कर रहा है और नक्सलवाद को खत्म करने में मदद कर रहा है, तो उसके केसों पर विचार किया जाएगा."

सरकार का सीधा तर्क है यह ऑफर उन नक्सलियों को और हिम्मत देगा जो बंदूक छोड़कर आम आदमी की तरह जीना चाहते हैं. सरकार उन्हें रहने,खाने,सुरक्षा और खुद का काम शुरू करने में भी मदद दे रही है.

कांग्रेस का गुस्सा:'झीरम के गुनहगारों को भी माफ़ी?'

साय कैबिनेट के इस माफ़ी वाले फैसले पर कांग्रेस ने तुरंत हल्ला बोल दिया. कांग्रेस संचार प्रमुख सुशील आनंद शुक्ला ने कहा कि यह फैसला हैरान करने वाला है और नक्सली हिंसा के शिकार लोगों की तौहीन है.

कांग्रेस नेता सुशील आनंद शुक्ला का कहना है-"क्या झीरम घाटी और ताड़मेटला जैसे बड़े हमलों के दोषियों के गुनाह भी माफ़ किए जा सकते हैं? सरकार को यह फैसला तुरंत वापस लेना चाहिए."

बता दें कि सरकार का यह कदम ऐसे समय में आया है, जब 2024 से 2025 के बीच 2200 के करीब नक्सलियों ने सरेंडर किया है, जो बताता है कि सरकारी प्रयास ज़मीन पर असर कर रहे हैं.

ये हमारे घावों पर नमक है: पीड़ित परिवार

सरकार के इस कदम पर उन परिवारों ने भी गहरी नाराज़गी जताई है जिन्होंने नक्सली हमलों में अपनों को खोया है. नक्सल पीड़ित परिवार छत्तीसगढ़ के संघ प्रमुख धीरेन्द्र साहू ने दर्द भरी अपील करते हुए कहा कि सरकार यह फैसला वापस ले. धीरेन्द्र साहू ने अपना पक्ष रखते हुए कहा- इन लोगों की वजह से हम जैसे कई लोग बर्बाद हो गए, गांव छोड़ना पड़ा, कई औरतें विधवा हो गईं और हज़ारों जवान शहीद हुए.इनके केस वापस लेना पीड़ितों का अपमान है.

बीजेपी का पलटवार-'कांग्रेस नहीं चाहती शांति'

हालांकि बीजेपी सरकार अपने फैसले पर डटी हुई है. छत्तीसगढ़ बीजेपी नेता अनुराग अग्रवाल ने उल्टा कांग्रेस पर ही नक्सलियों का साथ देने का आरोप लगा दिया. बीजेपी प्रवक्ता अनुराग अग्रवाल ने सवाल पूछा- जब भूपेश बघेल झीरम घाटी के सबूत जेब में लेकर घूमते थे, तब पीड़ित का अपमान नहीं हुआ? कांग्रेस असल में चाहती ही नहीं कि नक्सल समस्या जड़ से खत्म हो जाए. यह पॉलिटिकल दांव एक तरफ नक्सलियों को शांत करने की कोशिश है, तो दूसरी तरफ यह न्याय और पीड़ितों के दर्द के बीच बड़ा विवाद पैदा कर गया है. अब देखना यह होगा कि माफ़ी वाली कमिटी किन-किन गुनहगारों पर नरमी दिखाती है और इस पर सियासत कितनी गरम रहती है.

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