
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश के कुल लौह अयस्क (iron ore) भंडार का पांचवां हिस्सा छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) में है और यहां की खदानें सबसे अच्छी क्वालिटी की इस्पात का उत्पादन (production of steel)भी करती हैं लेकिन इस उजली तस्वीर के पीछे एक ऐसी स्याह तस्वीर भी छुपी है जो आपको झकझोर देगी. दरअसल दंतेवाड़ा और जगदलपुर (Dantewada and Jagdalpur) इलाके में NMDC यानी नेशनल मिनरल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (National Mineral Development Corporation) लौह अयस्क का खनन करती है,
ये हालात दशकों से जारी है मतलब सरकारें बदलती रहीं लेकिन स्थानीय आदिवासी समुदाय (tribal community) के सामने धीमा जहर पीने की मजबूरी बदस्तूर जारी रही. आज हम बात करेंगे एक ऐसे ही इलाके 'लोहा गांव' की.
सुंदर और हरेभरे वादियों के बीच बसा लोहा गांव अब मौत के मुहाने पर खड़ा है. कभी इस गांव में 30 परिवार रहा करते थे लेकिन कुछ ही सालों में इनकी संख्या घटकर 15 रह गई. इसके पीछे की मुख्य वजह लाल पानी है. गांव के उपसरपंच छन्नू मरकाम इसकी तस्दीक करते हुए कहते हैं कि हमारे आधे गांव को लाल पानी ने लील लिया है. उनका कहना है कि एनडीएमसी उनके गांव के आसपास के खदानों से अरबों रुपए कमाती है और CSR के तहत बड़े-बड़े दावे करती है लेकिन दशकों से यहां के हालात नहीं बदले. ये हालत तब है जबकि कंपनी ने वितीय वर्ष 2021-22 में 9,398 करोड़ रुपये का लाभ कमाया है. अब ये जान लेते हैं कि समस्या कैसे पैदा हुई और कितनी गंभीर है.
लोहे के खनन से 'लोहा गांव' यूं हो रहा बर्बाद
NDMC प्रतिदिन 60 हजार टन से अधिक अयस्क का उत्पादन करती है
लौह अयस्क उत्खनन से रेड ऑक्साइड निकलता है, नदियां दूषित होती हैं
इलाके की शंखिनी और डंकिनी नदियां लाल दलदल वाले क्षेत्रों में बदल गई
दोनों नदियों का विस्तार करीब 100 किमी इलाके का है, लाल पानी बहता है
यहां का पानी पीने से डायरिया और दस्त जैसी बीमारियां होने की आशंका
बच्चों में बीमारियां बढ़ती हैं,महिलाओं को गर्भ धारण करने में परेशानी
NDMC से निकलने वाले पानी से सैकड़ों गावों का जल दूषित हुआ
गांव के उप सरपंच की कहानी है दर्दनाक
लोहा गांव के उप सरपंच छन्नू मरकाम की कहानी बहुत कुछ यहां के हालात को बता देती है. छन्नू ने दो शादियां की है. उसकी पहली पत्नी से उसे पांच बच्चे हुए लेकिन बचा सिर्फ एक. उसके दो बेटे और दो बेटियां असमय ही काल के गाल में समा गईं. सबसे छोटे बेटे को जन्म देते समय पत्नी ने भी दम तोड़ दिया. बच्चे को लाल पानी से बचाने के लिए छन्नू कई किलोमीटर दूर किरंदुल जाकर रोज दूध लाता था और उसे पिलाता था. लेकिन उसे बचाया नहीं जा सका. इसकी वजह से उसने दूसरी शादी की लेकिन 10 सालों बाद भी कोई बच्चा नहीं हुआ.

एक साल में 12 से अधिक लोगों की मौत
लोहा गांव में हर गुजरते वक्त के साथ हालात गंभीर होते जा रहे हैं. यहां बीते एक साल 12 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है. जिसमें नवजात से लेकर पांच साल के बच्चे भी शामिल हैं. लाल पानी और उससे होने वाली बीमारियां यहां लोगों की जिंदगी लील रही है. कोई बीमार पड़ता है तो फिर गांव वालों को करीब 10 किमी ऊपर पहाड़ पर चढ़कर किरंदुल जाना पड़ता है. जहां छोटे से अस्पताल में इलाज की मामूली सुविधाएं ही हैं. दुखद ये है कि आजादी के बाद से अब तक यहां के हालात नहीं बदले हैं. इस गांव में कभी भी कोई हेल्थ कैंप नहीं लगा है. गांव तक जाने के लिए कोई सड़क नहीं है इसकी वजह से बीमार लोगों को यहां के लोग कांवड़ में बिठाकर कई किलोमीटर चल कर डॉक्टर के पास ले के जाते हैं.
कलेक्टर ने कहा- SDM से रिपोर्ट मांगी
जब यहां के हालात जिले के कलेक्टर विनीत नंदनवार से NDTV ने बात की तो उन्होंने दावा किया कि लोहा गांव के लिए कई सारी चीजें की गई हैं लेकिन आपके माध्यम से जो जानकारी मिली है हम उस पर ध्यान देंगे. उन्होंने कहा कि इलाके SDM से कहा गया है कि वे गांव में जाएं और देखें क्या-क्या परेशानी आ रही है और उसे दूर करने के लिए क्या-क्या किया जा सकता है. नंदनवार का दावा है कि जल्द ही समस्याओं का निराकरण किया जाएगा.