गौठान...यानी गांव की जगह, यानी किसी एक शख्स का मालिकाना हक इस पर नहीं होता. छत्तीसगढ़ ने इसी जमीन के नाम पर एक अनूठी योजना शुरू की, जिसका नाम है- गौठान. भूपेश सरकार की यह योजना अनूठी थी लिहाजा इसने देशभर में सुर्खिया बटोरी..तीन साल पहले बड़े तामझाम से ये योजना शुरू हुई और बड़े-बड़े दावे किए गए लेकिन वक्त बीतने के साथ जमीनी हकीकत बदलने लगी है.
जाहिर है जिस गौठान योजना को भूपेश सरकार गांवों की तकदीर बदलने की नेक नीयत से लाई थी उसका 'गुड़ गोबर होता दिख रहा है. आइए जानते हैं ग्राउंड रिपोर्ट क्या है ?
बरबंदा गौठान: रोज 10-20 रुपये की ही कमाई
हमारी टीम सबसे पहले पहुंची राज्य की राजधानी रायपुर से महज 25 किमी दूर धरसीवा विधानसभा. यहां हम सबसे पहले पहुंचे बरबंदा गौठान. यहां हमें कुछ महिलाएं काम करती मिली लेकिन जो शेड बकरी पालन के लिए बना था, वहां हमें बकरी ढूंढे नहीं मिली. कुछ ऐसा ही हाल मुर्गी पालन शेड का भी था. गायों को जहां रखने का इंतजाम किया गया था वहां भी चारे की व्यवस्था नहीं दिखी. यहां मौके पर हमें सिर्फ एक गाय मिली. इस गौठान में काम कर रही स्वयंसहायता समूह की सदस्य सुषमा विश्वकर्मा ने हमें बताया कि योजना की शुरुआत तो धूमधाम से हुई सेकिन अब वो तामझाम गायब है. जब हमने सुषमा से पूछा कि वो कितना कमा लेती हैं तो हंसते हुए उन्होंने कहा- रोज का 10-20 रुपया. बीते एक साल में उनके खाते में 6 हजार रूपये ही आए हैं. इसी केन्द्र पर वर्मी कम्पोस्ट निकाल रही मीना बघेल ने बताया कि गौठान में पहले कई महिलाएं जुड़ी थीं लेकिन लाभ नहीं होने से धीरे महिलाएं कम हो गई है. अब मुश्किल से 10 से 14 महिलाएं ही काम पर आती हैं. गौठान में गाय नहीं होने के सवाल पर मीना ने कहा गाय इधर-उधर घूमती रहती है गोठान में चारा मिलता ही नहीं है. जब हमने इस केन्द्र की बदहाली पर सवाल उठाए तो महिलाएं खामोश हो गई. बरबंदा ग्राम पंचायत सरपंच जीतेन्द्र पटेल भी इस सवाल पर खामोश हो जाते हैं. जाहिर है ये खामोशी सिस्टम की पोल खोलने के लिए काफी है.
गिधौरी गौठान: गेट पर लटका मिला ताला
बरबंदा गोठान के बाद हम पहुंचे करीब 5 किमी दूर टोर ग्राम पंचायत के गिधौरी गौठान पर. यहां तो और भी बुरा हाल था. हमें इसके गेट पर ताला लगा हुआ मिला. आसपास कोई नजर नहीं आ रहा था. हम जब लौटने लगे तो रास्ते में एक बुजुर्ग मिले जिनका नाम इतवारी था,
आगे जाने पर गिधौरी के चौराहे पर कुछ लोग खड़े मिले. उनमें से एक संजय गायकवाड़ ने बताया कि गौठान गांव से काफी दूर है. दूसरा वहां सिर्फ सरकारी खर्च करके निर्माण कार्य हुआ है और फैंसिंग कर दी गई है. लेकिन इससे गांव को कोई फायदा नहीं है. टोर पंचायत सचिव दीपक वर्मा गांव में नहीं थे उनसे फ़ोन पर बात की तो उन्होंने गौठान के बंद होने पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया.
धनौली गौठान: किसानों को हुई बंपर कमाई
हालांकि जब NDTV की टीम रायपुर से 225 km दूर पेंड्रा मारवाही जिले पहुंचे तो हालात दूसरी जगहों के मुकाबले अच्छे मिले. हम यहां के गौरेला विकासखंड के धनौली पंचायत में गए थे. यहां की गौठान समिति में एंट्री से लेकर अंदर तक पक्की सड़क दिखी. गोधन के लिए चारागाह, प्राथमिक उपचार के इंतजाम, वर्मी कम्पोस्ट खाद और मुर्गी-बतख पालन होते दिखा.यहां गोबर बेचने आए खेमचंद ने बताया कि वो साल में 50 से 60 हजार रुपयों का गोबर बेच लेते है जिससे उनकी आमदनी बढ़ गई है. उनके साथ मौजूद नेम सिंह ने भी इसकी तस्दीक की.गांव के सरपंच जीवन सिंह ने भी इसे जिले का सबसे अच्छा गौठान बताया.
झगड़ाखांड गौठान : न गाय और न ही कोई इंतजाम
इसके बाद हमारी टीम धनौली से जंगलों के बीच होते हुए झगड़ाखांड पहुंची. लेकिन यहां गौठान की बिल्कुल उल्टी तस्वीर नजर आई. यहां न तो गायों के खाने एवं पीने की व्यवस्था न ही गोधन के बैठने के लिए शेड. चारों तरफ बिल्कुल सन्नाटा था. हमने गांव के सरपंच को फोन किया तो उन्होंने कुछ भी बोलने से मना कर दिया.
बीजेपी का आरोप: 1300 करोड़ का घोटाला हुआ
बहरहाल प्रदेश के अधिकांश गौठानों की तस्वीर ख़राब होने लगी है, आर्थिक गतिविधियाँ बंद होने के कगार पर आ खड़ी हुई हैं. उधर चुनावी साल होने की वजह से भाजपा सरकार पर गौठान घोटाले का आरोप जोर-शोर से लगा रही है.
DMF, मनरेगा और अन्य मद से सरकार ने इसमें खर्च किया. प्रदेश में 10 हजार गौठान है उससे जनता जान रही है कितना बड़ा घोटाला हुआ है, गाय के नाम पर सिर्फ कांग्रेस सरकार राजनीति कर रही है.
कांग्रेस का जवाब: मुद्दाविहीन भाजपा बदनाम कर रही है
दूसरी तरफ कांग्रेस सरकार में कृषक कल्याण बोर्ड के चेयरमैन सुरेन्द्र शर्मा गौठानों बदहाल होने की बात को नकारते हुए कहते हैं कि अभी धान बुआई का सीजन आ गया है. खेती के काम में बड़ी संख्या में महिलाएं जुडी हुई है. बुआई की वजह से किसान के जानवर भी बंधे रहते हैं इसलिय गौठान में रोजगार मूलक गतिविधियां कम हो जाती है. भाजपा के आरोप निराधार हैं. चुनाव सर पर है मुद्दाविहीन भाजपा सरकार को बदनाम करने का आरोप लगा रही है. गौठान योजना से ग्रामीण अर्थव्यस्था में सकारात्मक बदलाव दिखना शुरू हो गया है.
कब शुरू हुई थी गौठान योजना ?
राज्य सरकार ने गांधी जयंती 2 अक्टूबर 2019 को सुराजी योजना के तहत नरवा गरुवा घुरुवा बाड़ी योजना को लांच किया था. इसी के तहत प्रदेश भर में गौठान निर्माण किए गए. प्रदेश में 30 अप्रैल 2023 तक 10206 गौठान संचालित है सरकार की मंशा है की गौठान में रूरल इंडस्ट्रियल पार्क बने जिसपर सरकार की कागजी गति से काम शुरू हुआ है. इसके तहत गौठान में स्थानीय स्तर पर रोजगार दिलाने के मकसद से पापड़ बनाने , साबुन निर्माण जैसे कई कार्य किये जाने हैं. वैसे यहां यह भी गौरतलब है कि गौठान योजना पूरी तरह से सरकारी नहीं है. सरकार केवल उसे बनवाने में सहयोग कर रही है. गौठान दरअसल गांव का, गांव के लिए है. गौठान की समिति बनाने से लेकर उसके संचालन तक सारी ज़िम्मेदारी ग्रामसभा को ही संभालनी है. ऐसी स्थिति में सिर्फ सरकार को ही इस योजना की बदहाली के लिए जिम्मेदार ठहराना पूरी तरह से सच नहीं होगा.