Two children changed Durg hospital: क्या हो अगर आपको यह पता चले कि जिस बच्चे को आप 8 दिनों से अपनी गोद में पाल रहे हैं. वो आपका नहीं, बल्कि किसी और का है? कुछ ऐसा ही हुआ है दुर्ग के जिला चिकित्सालय में, जहां दो नवजात शिशुओं के अदला-बदली होने का मामला सामने आया है. अस्पताल प्रशासन की लापरवाही के कारण अब 12 दिन के मासूम को डीएनए टेस्ट से गुजरना पड़ेगा, ताकि यह तय हो सके कि उसकी असली मां-बाप कौन है?
जिला अस्पताल से दो बच्चों की अदला-बदली
दुर्ग जिला चिकित्सालय में 23 जनवरी को शबाना कुरैशी और साधना सिंह ने सिजेरियन डिलीवरी के जरिए बेटे को जन्म दिया. शबाना का बेटा सुबह 1:25 बजे और साधना का बेटा 1:34 बजे जन्म लिया. अस्पताल के नियमानुसार, नवजात की पहचान सुनिश्चित करने के लिए उसकी कलाई पर एक पहचान टैग लगाया जाता है, लेकिन यहीं अस्पताल की सबसे बड़ी गलती हो गई.
तस्वीर देखते ही परिवार में मचा हड़कंप
डिस्चार्ज के 8 दिन बाद यानी 2 फरवरी को शबाना के परिवारवालों की नजर बच्चे की कलाई पर बंधे टैग पर पड़ती है, जिसमें साधना सिंह का नाम लिखा हुआ था. इतना देखते ही परिवार में हड़कंप मच गया. सवाल उठने लगे कि कहीं उनके बच्चे की अदला-बदली तो नहीं हो गई? जिसके बाद परिवार ने डॉक्टरों को इसकी जानकारी दी. वहीं इसकी सूचना मिलते ही अस्पताल में भी हड़कंप मच गया. जन्म के समय खींची गई तस्वीरों को खंगाला गया और एक चौंकाने वाली सच्चाई सामने आई.
जन्म के दौरान खींची गई तस्वीरों ने खोली पोल
जन्म के वक्त खींची गई तस्वीरों में साधना सिंह के पास जो बच्चा है, उसके मुंह के पास काला निशान है. वहीं शबाना के पास जो बच्चा है, उसका रंग ज़्यादा गोरा दिख रहा था. हॉस्पिटल की तस्वीर के मुताबिक, शबाना के पास जो बच्चा है, वह वास्तव में साधना का है और साधना के पास जो बच्चा है, वो शबाना का है.
साधना ने बेटे को वापस देने से किया इनकार
जब शबाना के परिवारवालों ने हॉस्पिटल से अपना बच्चा वापस मांगा, तो डॉक्टरों ने साधना सिंह और उनके पति को बुलाकर बच्चों की अदला-बदली की बात कही, लेकिन साधना सिंह ने यह मानने से इनकार कर दिया. उन्होंने इसे एक साजिश करार देते हुए कहा कि जो बच्चा उनके पास है, वही उनका बेटा है और वो उसे किसी भी कीमत पर नहीं सौंपेंगी.
अब दोनों बच्चे का होगा डीएनए टेस्ट
अब मामला पुलिस और प्रशासन के बीच फंस चुका है. शबाना का परिवार हॉस्पिटल और पुलिस के चक्कर लगा रहा है, लेकिन कोई समाधान नहीं निकल पाया है. 24 घंटे की मशक्कत के बाद अस्पताल प्रशासन ने आखिरकार फैसला किया कि दोनों बच्चों का डीएनए टेस्ट कराया जाएगा, ताकि पता लगाया जा सके कि उनका असली माता-पिता कौन है? लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस लापरवाही के लिए जिम्मेदार कौन है? आखिर बच्चों को एक्सचेंज कैसे किया गया? किसकी गलती से यह हुआ? और क्या भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कोई सख्त कदम उठाए जाएंगे?
इस मामले ने अस्पताल प्रशासन की लापरवाही को उजागर कर दिया है. एक मां अपने बच्चे को पहचानने के लिए अस्पताल की तस्वीरों का सहारा ले रही है, जबकि दूसरी मां उसे छोड़ने के लिए तैयार नहीं है. अब सच्चाई का फैसला डीएनए टेस्ट करेगा, लेकिन क्या इस बड़ी गलती के लिए अस्पताल प्रशासन के खिलाफ कोई कार्रवाई होगी? यह देखना बाकी है.
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