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This Article is From Jul 04, 2023

दिल्ली के अलावा छत्तीसगढ़ में भी है 'राष्ट्रपति भवन' ! जानिए ये घर क्यों है खास ?

देश के राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास नई दिल्ली में है...लेकिन आपको ये जानकर हैरत होगी कि छत्तीसगढ़ के आदिवासी इलाके सरगुजा के पंडोनगर में भी एक राष्ट्रपति भवन है.दिल्ली का राष्ट्रपति भवन (President's House) जहां 330 एकड़ में फैला हुआ है वहीं पंडोनगर का राष्ट्रपति भवन बेहद छोटे से इलाके में है.

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दिल्ली के अलावा छत्तीसगढ़ में भी है 'राष्ट्रपति भवन' ! जानिए ये घर क्यों है खास ?

देश के राष्ट्रपति का आधिकारिक निवास (official residence of the president) नई दिल्ली में है...लेकिन आपको ये जानकर हैरत होगी कि छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के आदिवासी इलाके (tribal areas) सरगुजा के पंडोनगर (Pandonagar of Surguja) में भी एक राष्ट्रपति भवन है.  दिल्ली का राष्ट्रपति भवन (President's House) जहां 330 एकड़ में फैला हुआ है वहीं पंडोनगर का राष्ट्रपति भवन बेहद छोटे से इलाके में है. दिल्ली वाले भवन में 340 कमरे हैं जबकि पंडोनगर वाले भवन में महज एक कमरा, छोटा सा आंगन और बगीचा है. दिल्ली वाले भवन में भारी संख्या में सुरक्षाकर्मी तैनात हैं तो यहां सरगुजा में  सुरक्षा का कोई बंदोबस्त नहीं है. दिल्ली का भवन बेहद आलीशान है तो यह भवन एक झोपड़ीनुमा घर है. ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि इस साधारण से घर को राष्ट्रपति भवन क्यों कहा जाता है ?

देश के दूसरे 'राष्ट्रपति भवन' की कहानी

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ऐसा हा छत्तीसगढ़ में बने 'राष्ट्रपति भवन' का गेट. ग्रामीण आज भी इसे बड़ी श्रद्धा की नजर से देखते हैं.

दरअसल, देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद (Dr. Rajendra Prasad) 22 नवंबर 1952 को सरगुजा जाने के दौरान हेलीकॉप्टर से जंगल में वनवासियों को देखा था. जिसके बाद वे सूरजपुर के इस छोटे से गांव पंडोनगर में आए. उन्होंने इस गांव के एक मकान में रात्रि विश्राम किया था.

उस समय सरगुजा रियासत के महाराजा रामानुज शरण सिंह देव भी डॉ. राजेंद्र प्रसाद के साथ इस मकान में मौजूद थे. इसे यादगार बनाने के लिए दोनों की एक तस्वीर खींची गई जो अब भी इस भवन में मौजूद है.

यहां रहने के दौरान देश के पहले राष्ट्रपति डॉ प्रसाद ने गांव में रहने वाली पंडो जनजाति की स्थिति देखी. बाद में उन्होंने इस समुदाय केलोगों को गोद ले लिया. तभी से इस जनजाति को विशेष संरक्षित जनजाति का दर्जा मिला हुआ है. खुद राष्ट्रपति ने उन्हें अपना दत्तक पुत्र घोषित किया था. 

धूमधाम से मनाया जाता है डॉ प्रसाद का जन्मदिन

तब से लेकर अब तक 70 साल से अधिक का वक्त गुजर चुका है लेकिन पंडो जनजाति हर साल डॉ राजेन्द्र प्रसाद की जयंती यहीं पर धूमधाम से मनाती है. डॉ प्रसाद का जन्म 3 दिसंबर 1984 को हुआ था. डॉ प्रसाद के प्रति उनका सम्मान ही है कि लोग इस कार्यक्रम में धूमधाम से मनाते हैं.  डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने यहां दो पेड़ भी लगाए थे, जिसमें से एक पेड़ अब तक मौजूद है.. इस राष्ट्रपति भवन को देखने दूर-दरार के लोग आते हैं जिससे इलाके में पयर्टन का भी विकास हो रहा है. 

 

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