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'अमित शाह की डेडलाइन से पहले खत्म होगा नक्सलवाद", NDTV Chhattisgarh Conclave में बोले पिंगुआ

छत्तीसगढ़ के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार पिंगुआ एनडीटीवी छत्तीसगढ़ कॉन्क्लेव (NDTV Chhattisgarh Conclave 2025) में शामिल हुए. छत्तीसगढ़ के नक्सल मुक्त होने पर उन्होंने कहा कि क्रेंदीय गृह मंत्री अमित शाह ने जो डेडलाइन दी है. उससे पहले ही नक्सलवाद खत्म हो जाएगा.

'अमित शाह की डेडलाइन से पहले खत्म होगा नक्सलवाद", NDTV Chhattisgarh Conclave में बोले पिंगुआ

NDTV Chhattisgarh Conclave 2025: 'छत्तीसगढ़ के बेमिसाल 25 साल' पूरे होने का NDTV जश्न मना रहा है. छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में आयोजित एनडीटीवी छत्तीसगढ़ कॉन्क्लेव (NDTV Chhattisgarh Conclave 2025) में बड़ी-बड़ी हस्तियां शामिल हो रही हैं. इस कॉन्क्लेव में छत्तीसगढ़ के एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार पिंगुआ भी शामिल हुए. इस दौरान छत्तीसगढ़ के नक्सल मुक्त होने पर उन्होंने कहा कि क्रेंदीय गृह मंत्री अमित शाह ने जो डेडलाइन दी है. उससे पहले ही नक्सलवाद खत्म हो जाएगा. आइए, विस्तार से जानते हैं एनडीटीवी छत्तीसगढ़ कॉन्क्लेव (NDTV Chhattisgarh Conclave 2025) में एडिशनल चीफ सेक्रेटरी मनोज कुमार पिंगुआ ने और क्या कहा...? 

सवाल. पुलिस मॉडर्नाइजेशन में ऐसे क्या बदलाव हुए जो पिछले एक दो साल में फोर्स को इतनी बड़ी कामयाबी मिली?

जवाब. यह एक लंबा प्रोसेस है, पहले पुलिस के पास पुराने हथियार होते थे, अब अत्याधुनिक हथियार हैं. हथियारों के अलावा अन्य साधन जैसे कम्यूनिकेशन सिस्टम और ड्रॉन से सर्विलेंस, इसकी एक लंबी लिस्ट है. ये सारी चीजें दिलाई गईं, इसके साथ ही जो जरूरी होता है एक मजबूत नेतृत्व, जो एक रिजल्ट दे सके, एक डायरेक्शन, यह सब प्राप्त हुआ, इसके कारण एक दो साल में यह रिजल्ट दिखाई दे रहा है.  

25 साल में सुरक्षा और विकास को एक साथ पहुंचाने में सबसे बड़ा अवरोध क्या रहा ? 

देखिए, जब छत्तीसगढ़ की यात्रा चालू हुई थी, उस समय बस्तर और बाकी क्षेत्रों में विकास की लगभग एक ही स्थित थी. लेकिन, इसे गलत तरीके से प्रचारित कर लोगों को यह बताने की कोशिश की गई कि आपको जानबूसकर विकास की दौड़ से दूर रखा जा रहा है. इससे लोग कटते चले गए और जब प्रशासन की तरफ से विकास कार्य करने की कोशिश तो गई तो वह करने नहीं दिए गए. सड़के हो, स्कूल की बिल्डिंग हों, इन्हें बम से उड़ा दिया गया. इस कारण विकास कार्य रुका. विकास कार्य तब सपन्न हो पाए जब उन्हें सुरक्षा दी गई. रेलवे ट्रेक, सड़कों का निर्माण, मोबाइल टावर सब सुरक्षा के अधीन लग रहे हैं. इसी कारण यह काम हो पा रहा है. पहले नक्सली विकास के काम नहीं करने देते थे. 

जंगल के इलाके या जहां पहुंचना मुश्किल वहां सरकार और उसकी योजनाएं कैसे पहुंच रही? 

एक तो सिंपली इंडीकेटर हैं ही और सांख्यकीय आंकड़े भी मिलते हैं कि हैं कि कौन सी स्कीम का कहां तक इम्प्लीमेंटेशन हो गया. लेकिन, इस सबसे भी ज्यादा जरूरी है लोगों का विश्वास होना. जैसे पहले लोग सरकार के आसपास नहीं आते थे, लेकिन अब वे खुद कैंप में आकर बताते हैं कि हमें यह चीज मिली यह नहीं मिली, यह मिलनी चाहिए. लोग अब अपनी मांग रख रहे हैं, पहले ऐसा नहीं था. इसके अलावा एक निजी कंपनी से भी सर्वे कराया जा रहा है कि कौन सी योजना कहां तक पहुंची है.     
 

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