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डायनासोर की 29 करोड़ वर्ष पुरानी विरासत पर संकट, एशिया के सबसे बड़े जीवाश्म पार्क में संरक्षण की अनदेखी

मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर जिले में 29 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म की अनदेखी का मामला सामने आया है. वन विभाग और जिला प्रशासन ने जीवाश्म को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च किए, लेकिन जीवाश्म को संरक्षित करने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई.

डायनासोर की 29 करोड़ वर्ष पुरानी विरासत पर संकट, एशिया के सबसे बड़े जीवाश्म पार्क में संरक्षण की अनदेखी

Chahattisgarh Hindi News: मनेंद्रगढ़-चिरमिरी-भरतपुर (एमसीबी) जिले के मनेंद्रगढ़ के पास हसदेव नदी के तट पर मिले 29 करोड़ वर्ष पुराने जीवाश्म को लेकर गंभीर लापरवाही का मामला सामने आया है. यहां जीवाश्म गोंडवाना मैरिन फॉसिल्स पार्क (Gondwana Marine Fossils Park) क्षेत्र में मिला था, जिसे एशिया का सबसे बड़ा जीवाश्म पार्क (Dinosaur Park) माना जा रहा है. वन विभाग और जिला प्रशासन ने इसे पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए करोड़ों रुपये खर्च कर रॉक गार्डन, डायनासोर और अन्य जीवों की पत्थर पर कलाकृतियां बनवाईं, लेकिनजिस स्थान पर वास्तविक जीवाश्म पाए गए, उन्हें संरक्षित करने की कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई.

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कांग्रेस के जिला अध्यक्ष और पार्षदों ने हाल ही में स्थल का निरीक्षण किया और बताया कि जीवाश्म खुले में पड़े हैं और बारिश के पानी के चलते वह नष्ट हो रहे हैं. उनका कहना है कि इन धरोहरों को कांच के बॉक्स या किसी अन्य तकनीकी तरीके से संरक्षित करना अत्यंत आवश्यक था, जो नहीं किया गया.

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जीवाश्म का संरक्षण किया नजरअंदाज

कांग्रेस नेताओं ने वन विभाग पर सीधे तौर पर आरोप लगाते हुए कहा कि गोंडवाना मैरिन फॉसिल्स पार्क (Gondwana Marine Fossils Park) के विकास में केवल दिखावटी कार्य किए गए हैं. जैसे बाउंड्री वॉल, बैठक व्यवस्था, सीमेंट का काम और पत्थरों पर कलाकृतियां, लेकिन मूल कार्य यानी जीवाश्म का संरक्षण पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया है. उन्होंने इसे सरकारी बजट के दुरुपयोग और भ्रष्टाचार की संज्ञा दी.

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चार साल बाद सभी बह जाएंगे

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा कि चार साल पहले जो फॉसिल थे, उनमें से कई अब नहीं दिखते, क्योंकि वो बह गए हैं. यदि अभी कोई ठोस कार्य नहीं किया गया तो चार साल बाद जो बचे हैं वे भी समाप्त हो जाएंगे.

जीवाश्म को ढकने की योजना

वहीं, पर्यटन विभाग के नोडल अधिकारी ने कहा कि जीवाश्म को मेग्नीफाइंग ग्लास या कवर से ढकने की योजना है, ताकि पानी और धूप से उसकी वास्तविक स्थिति सुरक्षित रहे. उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि यदि मौके पर लापरवाही हुई है तो उसे दुरुस्त किया जाएगा. विभाग का प्रयास है कि जीवाश्म संरक्षित रहें, ताकि शोधकर्ता और पर्यटक दोनों लाभान्वित हो सकें.

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